Sunday 5 September 2021

खापलैंड का किसान भी गजब है; और वर्णवाद के काटे लोग यह सोचते हैं कि इनको गलत-सही दोनों में सर पर ही बैठा कर रखा जाए!

गज़ब क्योंकि, कल एक तरफ मुज़फ्फरनगर किसान महापंचायत की स्टेज से एक किसान खुद ही सीनियर पत्रकार अजित अंजुम के माथे का पसीना पोंछ रहा था (पोंछते हुए वजह भी बताई, वायरल वीडियो देखें) तो वहीँ दूसरी तरफ आजतक की पत्रकार चित्रा त्रिपाठी को ताड़े लगाए जा रहे थे (ताड़े लगाने की वजह भी बताई, वायरल वीडियो देखें)| ख़ास, बात दोनों एक ही बिरादरी के थे|

मुझे यह देख इतिहास की ऐसी ही नेगेटिव व् पॉजिटिव दो और हस्ती याद हो आई, जिनके साथ भी इस खापलैंड ने यही सलूक किया था|

एक सन 1761 की पानीपत की लड़ाई वाले पेशवा सदाशिवराव भाऊ: इन्होनें भी चित्र त्रिपाठी वाला सा किरदार अख्तियार करते हुए "खाप परिवेश" से निकले दादा महाराजा सूरजमल सुजान का "दोशालो पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट; राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट-गो-जाट" कह कर अपमान किया था| व् उसी मद में चौड़ा हो पानीपत लड़ने चढ़ा था| इस पर जाट सेना ने सिर्फ साथ नहीं दिया (दुश्मन से नहीं जा मिले थे) तो अब्दाली के हाथों ना सिर्फ मुंह की खाई वरन वह बनी कि दो कहावतें एक साथ चली;

एक "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया" व्
दूसरी "बिन जाट्टां किसने पानीपत जीते"|

और पुणे के इस पेशवे को जाट को सताए का श्राप इतना उल्टा पड़ा था कि हार जो हुई सो हुई; अंत में पूरे भारत में इसकी हारी हुई मरती-पड़ती घायल पिटी सेना को 14 जनवरी 1761 को उसी "खाप परिवेश" के महाराजा सूरजमल के यहाँ मरहम पट्टी व् अब्दाली से सुरक्षा मिली| इन घायलों को कंबल ओढ़ाने के इसी एपिसोड से ही "संक्रांत" में घर-पड़ोस में बुजुर्गों को "कंबल-चद्दर" ओढ़ाने के रूप में "खापलैंड की इस उदारता" को जीवित रखने का रिवाज भी चला| संक्रांत इसी तारीख से शुरू हुई थी इस बात का सबसे बड़ा सबूत यही है कि यह त्यौहार देशी नहीं अंग्रेजी महीनों के अनुसार 14 जनवरी को ही मनाया जाता है|

दूसरे महर्षि दयानन्द: अजित अंजुम वाले किरदार में चलते हुए आर्य समाज की गीता कहलाने वाले ग्रंथ "सत्यार्थ प्रकाश"में "जाट जी" व् "जाट देवता" बोल के जाटों की स्तुति मात्र क्या की कि बदले में इस खापलैंड के जाट समाज से इतना आदरमान मिला कि उत्तर भारत में आजतक भी इनसे बड़ा ब्राह्मण नहीं जाना जाता कोई|

तो अर्थ भी व् भेद भी दोनों साफ़ हैं कि हमसे बैर बिसाह के कहीं ना सुख पाओगे; प्यार-लिहाज-इज्जत दोगे व् लोगे तो प्रसिद्धि की बुलंदी थोक के भाव पाओगे| अब भी अपने बहम ठीक कर लो, खापलैंड है यह, तुम्हारे वर्णवाद को ना पहले कभी ओटा ना आज ओटती; उदाहरण एक ही बिरादरी के दो बंदे; मुज़फ्फरनगर में बिल्कुल विपरीत ट्रीटमेंट पाते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


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