सीकर ठिकाने मे जाटों पर होने वाली ज्यादतियों के बारे में अखिल भारतीय जाट महासभा भी काफी चिंतित थी। उन्होंने कैप्टन रामस्वरूप सिंह को जाँच हेतु सीकर भेजा ओर चौधरी जगनाराम मौजा सांखू उम्र 50 वर्ष, तहसील लक्ष्मणगढ़ ओर बिरमाराम जाट गाँव चाचीवाद उम्र 25 वर्ष, तहसील फतेहपुर के बयान दर्ज किये। जगनाराम ने जागीरदारों की ज्यादतियों बाबत बताया व बिरमाराम जाट ने 10 अप्रेल 1934 को उसको फतेहपुर में गिरफ्तार कर यातना देने के बारे में बताया। उसने यह भी बताया कि इस मामले में 10 -15 और जाटों को भी पकड़ा था. इनमें कालूसिंह जाट बीबीपुर तथा लालूसिंह ठठावता को मैं जानता हूँ शेष के नाम मालूम नहीं हैं. कैप्टन रामस्वरूप सिंह ने जाँच रिपोर्ट जाट महासभा के सामने पेश की तो बड़ा रोष पैदा हुआ था और इस मामले पर विचार करने के लिए अलीगढ में जाट महासभा का एक विशेष अधिवेशन सरदार बहादुर रघुवीरसिंह के सभापतित्व में बुलाया गया था। सीकर के जाटों का एक प्रतिनिधि मंडल भी इस सभा में भाग लेने के लिए अलीगढ गया था. सर छोटू राम के नेतृत्व में एक दल जयपुर में सर "जॉन बीचम" से मिला था ओर कड़े शब्दों में आगाह किया गया था कि वे ठिकाने के जुल्मों की अनदेखी न करें परन्तु नतीजा कुछ खास नहीं निकला परन्तु दमन अवश्य ठंडा पड़ गया।फतेहपुर के प्रत्येक गांव में महम्मद खां नायब तहसीलदार ने ऐलान कर रखा था कि कोई भी जाट कमेटी में मत जाना। जो जाएगा उसे हम बुरी तरह पिटेंगे और गांव में से निकलवा देंगे। बिरमाराम जो मीटिंग में शामिल हो गया उसे तहसील के सवार (घोड़ों पर चलने वाले पुलिसकर्मी) मारते-पीटते और घसीटते हुए तहसील में ले गए। ओर आगे से जाट समाज की मीटिंगों में जाने से पाबंद कर दिया। उसी तरह चाचीवाद के खिंवाराम खीचड़ को भी छ: महीनें की सजा इसलिए काटनी पड़ी की उन्होंने सामंतों को "कोरङ" देने से मना कर दिया था। वाकया ये हुआ कि
सुरजभान जो रियासत कालीन समय में एक ट्राईबल लिडर था जो एक बार चाचीवाद बङा गांव में आया था उनके साथ उनका साथी दौलत भी था। खिंवाराम जी खीचङ जिनकी ससुराल किरडोली गांव में थी और उसी गांव के निवासी थे सुरजभान कोक। इसलिए खिंवाराम जी खीचङ के घर पर सुरजभान ने भोजन किया ओर रात को उनके खैत जो "थै" के नाम से जाना जाता था वहां रात्रि विश्राम किया जहां मोठ की फसल की ढुंघरी लगी हुई थी। सुबह पास ही के ठिकाने के रियासतदार "कोरङ" वसुलने आये तो सुरजभान से वाकयुद्ध हो गया। सामंतों को बिना कोरङ लिये ही जाना पड़ा जिसकी शिकायत जयपुर रियासत में की गयी तो खिंवाराम जी खीचङ को छः महीनें की सजा काटनी पङी।
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