Monday, 17 August 2015

चलो अहले सनम अब हम तो सफर पे निकलते हैं!

चलो अहले सनम अब हम तो सफर पे निकलते हैं,
जीवन-मरण के दर्पण को तोड़, अजीज शोहरत से मिलते हैं!

एक जीवन बिना सोहबत-ओ-रूह तेरी जिया,
जहर आधे पे पलने की ठेकेदारी का पिया!...
अब उन ठेकेदारों की गिरफ्त से निकल, जीवन-शिखर को चलते हैं!
जीवन-मरण के दर्पण को तोड़, अजीज शोहरत से मिलते हैं!


बलात्कारियों ने ज्यूँ बरपाई हो क्रूरता,
उस भय की भयानक कंदराओं में सिसकता!
जोड़ उन चेतना के चिथड़ों को, अब कंधों पे उठा के चलते हैं।
जीवन-मरण के दर्पण को तोड़, अजीज शोहरत से मिलते हैं!

तू कहाँ इस दुनियां की भीड़ में ऐ जीस्त,
चल कफ़न की सफेदी में ढलते हैं!
हौसलाये-उल्फ़त के ढहते मक़ामों की गर्द से उभरते हैं!
जीवन-मरण के दर्पण को तोड़, अजीज शोहरत से मिलते हैं!

डर की जंजीरों को तोड़ के उल्फ़त से उससे मिल,
चल ख़्वाबों के जख़ीरों से कश्ती के तार बुनते हैं।
यूँ टुकर न देख, यकीं कर चल 'फुल्ले-भगत' उसकी पनाह में चलते हैं।
जीवन-मरण के दर्पण को तोड़, अजीज शोहरत से मिलते हैं!

चलो अहले सनम अब हम तो सफर पे निकलते हैं,
जीवन-मरण के दर्पण को तोड़, अजीज शोहरत से मिलते हैं!

फूल मलिक

भगतों के हृदय-विच्छेदन हुए!

भगतों के हृदय-विच्छेदन हुए,
छाती पे सांपन लेटन हुए!

सरदार ने मारी ऐसी पलटी,
मस्जिद से शेयर कर दी सेल्फ़ी।...
हर भगत कराह रहा ऐसे,
जैसे गधा दुलत्ती देतन रहे!
भगतों के हृदय-विच्छेदन हुए,
छाती पे सांपन लेटन हुए!


'तेल-जिहाद' लानन को गए थे,
हमने मथ्था टिकाने को कब कहे थे?
कांग्रेस-राज में स्वीकार मंदिर की,
तोहार उपलब्धि बतलावन के ना रहे।
भगतों के हृदय-विच्छेदन हुए,
छाती पे सांपन लेटन हुए!

सेल्फ-स्टाइल्ड राष्ट्रवादिता,
भोंदुओं को बहकाने की लिम्का।
मुस्लिम को शांति और सद्भावना,
वाला बता एक ही मुंह में पी गए!
भगतों के हृदय-विच्छेदन हुए,
छाती पे सांपन लेटन हुए!

मोहब्बत को तिजारत बना डाला,
हमारे विश्वास की होली जला डाला,
अटल तो सिर्फ बिरयानी खिलाये,
अडवाणी जर्रा रोये, तुम तो उन्हीं के होए।
भगतों के हृदय-विच्छेदन हुए,
छाती पे सांपन लेटन हुए!

हम तो से रूठे सनम,
तोहार दिए घात ने लूटे सनम|
फुल्ले-भगत ने लतियाये क्या,
घाव अब तो को दिखाएँ भी का .... मियाँ
भगतों के हृदय-विच्छेदन हुए,
छाती पे सांपन लेटन हुए!

Phool Malik

मुस्लिम मंदिर-गुरुद्वारा जाते भी और बनवाते भी!

जो अंधभगत यह कहते हैं कि मुस्लिम कभी मंदिर-गुरुद्वारा नहीं चढ़ते तो तुम क्यों उनकी मस्जिद जाओ। खैर मस्जिद ना जाने का फरमान तो भगतों का सरदार ही नहीं मानता, हम तो फिर ठहरे धार्मिक सेक्युलर (जातीय सेक्युलर नहीं)|

पहले तो मुझे भी झिझक होती थी परन्तु अब जब भगतों के सरदार तक खुद मस्जिद में जा के सेल्फ़ी शेयर करते हैं तो कोई शेख गुरुद्वारा विजिट करे तो उसको शेयर करना तो पॉजिटिव बात होनी चाहिए। सही कहा ना भगतगणों और गणिकाओं?

सऊदी में 2 मंदिर पहले से और तीसरा कांग्रेस रिजाइम में पास होने (जिसका ठीकरा भांड मीडिया मोदी विजिट पे फोड़ रहा है) से भी स्पष्ट है कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मंदिर भी होते और नए भी बन सकते। भगतो now update yourself।

https://www.youtube.com/watch?v=zSYiLROPZtQ

Sunday, 16 August 2015

भगतो, भागो-दौड़ो "तेल-जिहाद" आया!

विगत लोकसभा इलेक्शन से पहले की बात हैं, जब मोदी जी को पीएम कैंडिडेट घोषित किया-किया था| मैंने तभी कह दिया था कि अटल ने तो सिर्फ मुसर्रफ को आगरा में बिरयानी खिलाई थी, आडवाणी जिन्नाह की मजार पे जा के रोया था, इसको देखना यह अगर मस्जिद-मस्जिद माथा टेकता ना फिरे तो| आज मेरी वह दूरदृष्टि सच हुई|

अब कोई यह मत कह देना कि बिज़नेस डील्स के लिए ऐसा करना होता है, क्योंकि इन जनाब से पहले भी बहुत पीएम ने विजिट किये हैं अरब देश, पर मस्जिद पे धक्के खाता कोई नई फिरा। सिर्फ ऑफिसियल मीटिंग्स अटेंड करी और वापिस।

इनको फिरना पड़ रहा है क्योंकि जो यह इंडिया में माइनॉरिटी के साथ करते हैं, उसको कम्पेन्सेट जो करना है, वरना शेख लोग इनकी इंडिया में की जा रही हरकतों को देख इनको घास भी ना डालें।

आखिर ऐसी "थूक के चाटने वाली" हरकतें करते ही क्यों हैं जो अगर जिसका विरोध किया जाए तो फिर उसके बिना काम ही नहीं चला सको?

Phool Malik

Modji at Moqsue in Abu-Dhabi: http://www.deccanchronicle.com/150816/nation-current-affairs/article/narendra-modi-arrives-uae-discuss-terror-trade-top-leaders

बोलो, "जय भैंस-माता की!"

मौत के सौदागर तो भैंस का दूध पीने वाले ही होते हैं, नहीं यकीन हो तो देख लो यमराज तक को अपनी पीठ पे टाँगे घूमते हैं। पर क्या मजाल जो यमराज खुद उसके प्राण ले ले तो?

गाय को तो भरे झुण्ड से शेर भी उठा ले जाता है, और क्या गौमाता और सांड-बाबू (सांड-पिता) सब खड़े-खड़े टुकर-टुकर बस देखते ही रह जाते हैं। जबकि क्या मजाल उसी शेर की जो वो भैंसों के झुण्ड में घुसने की भी हिम्मत तक भी जुटा पाता हो। यह होता है भैंस के दूध का दम, ताकत, गुण और गट्स।

अब भाई पादने के लिए भी नौकर रखने वालों की गौमाता पूजना चाहोगे या जो दुश्मन की बैंड बजा दे वो वाली "भैंसमाता!"? वैसे एक बात और बता दूँ, भैंस का दूध पीने वालों की बुद्धि तो गाय का दूध पीने वालों की पकड़ तक में नहीं आती, उदाहरण देख लो महाराजा सूरजमल, सर छोटूराम, सरदार भगत सिंह आदि-आदि! एड़ी-से-चोटी तक का जोर लगाया इनको झुकाने वालों ने, परन्तु इनको झुकाते-झुकाते खुद झुक गए इनको ना ही तो झुका पाये और ना ही रोक पाये।

सर छोटूराम का नाम सुनते ही मंडी-फंडी तमाम तरह के षड्यंत्रकारियों की आज भी पेंट सरकने लगती है। महाराजा सूरजमल का नाम सुनते ही दिमाग की ताकत का दम भरने वालों की नशें फटने लगती हैं। देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के राग अलापने वालों की भगत सिंह का नाम सुनते ही सांस घुटने लगती है।

अत: यमराज के साथ चल के जो गाय के भी प्राण लेने चला आये, बोलो उस भैंसमाता के सपूत झोटे (भैंसे) की जय!

फिर से बोलो, जोर से बोलो, अरे: प्रेम से बोलो, "जय भैंस-माता की!"

अरे भगतो! तुम भी बोलो, क्या हुआ जो गुण गाय के गाते हो, परन्तु तुम में से 95% दूध तो भैंस का ही पीते हो, तो इसी नाते बोल दो, बोलो, "जय भैंस माता की!"

विशेष: यह पोस्ट गाय के महत्व को कम आंक के दिखाने हेतु नहीं है, मैं खुद गाय और सांड का बहुत आदर करता हूँ और बचपन से इनको तहे-दिल से मानता आया हूँ। आज भी जब भी घर जाता हूँ तो पहले गौशाला में गायों को गुड़ खिला के जाता हूँ, परन्तु किसी साले के कहे से मैं ऐसा करूँ, मेरी जूती की नोंक पे। दूसरा इस पोस्ट का मकसद भैंस के दूध के दिमागी और शारीरिक ताकत दोनों वाले गुण बताना भी था।

Jai Yauddheya! - Phool Malik

Saturday, 15 August 2015

अंग्रेजों के कच्छों वाली राष्ट्रभक्ति आप लोगों को ही मुबारक!


भाई आर.एस.एस. वालो मेरे को कन्विंस करने हेतु मेरे से तब तक आपकी राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रवादिता की बातें निरर्थक हैं, जब तक आप अंग्रेजों के खाकी कच्छों से बाहर नहीं आते|

यह नहीं हो सकता कि आप लोग एक तरफ तो राष्ट्रभक्ति के राग अलापो और दूसरी तरफ आप द्वारा ही दुश्मन नंबर वन ठहराए गए अंग्रेजों के कच्छे पहन के घूमो|

सच कहूँ तो मैं इन कच्छों को महाराजा सूरजमल, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, राणा सांगा, राजा नाहर सिंह, महाराजा जवाहर सिंह, महाराजा रणजीत सिंह और तमाम उन खापों के यौद्धेयों जिन्होनें मुग़लों से ले अंग्रेजों तक के दाँत खट्टे किये और नाकों चने चबवाए, इन सब देशी देशभक्तों का घोर अपमान समझता हूँ| इन महान यौद्धा-यौद्धेयों ने अंग्रेजों के कच्छे पहन के नहीं, अपितु धोतियाँ पहन के जंगें जीती थी, देशभक्ति से ले राष्ट्रभक्तियां कायम की थी| अत: ऐसी अंग्रेजों के कच्छों वाली राष्ट्रभक्ति आप लोगों को ही मुबारक|

मुझे समझने के लिए आपका धन्यवाद!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

हरयाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर ने जाट-आरक्षण मामले पर कहा, "कोर्ट का फैंसला मानेंगे!"

तो जनाब फिर सरकार भी कोर्ट ही चला लेंगें, आपकी क्या जरूरत है?

याद रखिये सीएम साहब कोर्ट और सरकार दोनों जनता के निर्देश पे चलते हैं, दुनियां में कहीं नहीं ऐसा जहां समाज कोर्ट और सरकार के निर्देश से चलता हो। कृपया बाज आएं अपनी इस 'टोटेलिटेरियनिज़्म' की राजनीति से।

कोर्टों से फैसले लागू और समाज के हक-हलूल पे कानून बनवाने के लिए ही सरकारें चुनी जाती हैं। जैसे UPA-2 ने कोर्ट में अडिग पैरवी करी तो जाट आरक्षण कोर्ट को भी मानना पड़ा, आपकी सरकार NDA-2 ने नहीं की तो रद्द हुआ।

अपनी इच्छाशक्ति की रिक्तता को कोर्ट के लबादे से मत ढाँपिये, इससे अच्छा भले ही दो टूक शब्दों में ना कर दीजिये।

हम जानते हैं कि आप इसमें रोड़ा अटका के उस दिन की तारीख को आगे खिसका रहे हैं, जिस दिन यह नारा उठेगा कि: "जाटों ने बाँधी गाँठ, पिछड़ा मांगे सौ में साठ!"

आज सिर्फ इतना फर्क है कि जाट-आरक्षण रद्द नहीं होता तो जाट तमाम ओबीसी समाज को एक कर सरकारी, गैर-सरकारी तमाम तरह की नौकरियों में अपनी संख्या के अनुपात के अनुसार आरक्षण के आंदोलन को जाट आगे बढ़ा रहा होता। खैर जनाब यह होनी तो एक दिन हो के रहे|

वैसे खट्टर साहब, सुप्रीम कोर्ट ने तो एसवाईएल का पानी लाने का हुक्म दे रखा है हरयाणा के पक्ष में, तो फिर कब ला रहे हैं?

जय यौद्धेय! - फूल कुमार

Friday, 14 August 2015

बाबा साहेब आंबेडकर को धीमी मौत मारा गया था, गोली की मौत नहीं!


डॉक्टर आंबेडकर का कत्ल धीमी-मौत की साजिस के तहत उनकी दूसरी पत्नी (जो कि एक स्वर्ण जाति की महिला व् पेशे से डॉक्टर थी) के हाथों करवाया गया था|

जो नादान जाट इन गलतफमियों में आ जाते हैं या खुद नादानी में ऐसा कहने वालों को सच मान उसका प्रचार करने लग जाते हैं कि बाबा साहेब को जाट महाराजा बच्चू सिंह ने संसद में गोली मारी थी, वो यह लेख पढ़ें|
और अपने ही हाथों जाट और दलित के बीच खाई बनाने वाले इन दुष्प्रचारों से बचें, इनको आगे फैलाने से बचें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


 

Leave the temporal recommendation of religion with time and carry only with the eternal recommendations, this is what Babar edged!


When Babar came to India, he came with eight thousand soldiers and camped outside Rana Sanga’s Kingdom. Rana Sanga had a hundred thousand soldiers.

Rana Sanga called his astrologer one day before the battle and asked him what will happen in the battle? The astrologer said, “You will be victorious Sir”. Rana Sanga sent this message to Babar. Babar replied, “I would like to meet the astrologer personally. Can you send him over?” Rana Sanga sent his astrologer to Babar's camp. Babar asked him, “What will happen in the war tomorrow?” The astrologer said, “You will lose, Sir”.

Babar took out his sword and beheaded the astrologer, and pointing to the astrologer's dead body told his eight thousand soldiers, “A man who cannot tell his own future, how can he tell my future? Let us finish them”. And this army of eight thousand people defeated our army of a hundred thousand people. Another reason why Babar won was that Babar understood that the Indian mind is a mind that has not been able to distinguish the eternal truths in a scripture from the temporal sayings.

The eternal recommendation in the Geeta says that once in a while, when it is required, the good should stand up and snuff out the bad. In other words, you should resist evil and also be prepared to take arms to annihilate it when required. This is an eternal truth. The Geeta also says that the cow should be worshipped as a Goddess. This recommendation is temporal. It must have arisen from the socio-economic importance of cows in the period when the Geeta was written - so it should have expired when its utility was up. Babar understood that the temporal sayings which should have been discarded are also continuing as eternal truths.

The Mughals invaded India as they knew that Hindus are still stuck up with the temporal recommendations of their scriptures. So they led the charge of their armies with herds of cows. They tied calves to the foreheads of their charging elephants. And the Hindu archers laid down their bows and arrows! The Mughals converted the battle grounds in to cattle grounds and laughed their way to victory.

आखिर कब समझेगा सनातन धर्म एक औरत की आज़ादी को!


हिन्दू नागा बाबा से लेकर दिगंबर जैन साधू तक सब नंगे घूमते हैं! एक राधे माँ उर्फ़ सुखविंदर कौर ने मिनी स्कर्ट क्या पहन ली इन सनातन धर्मियों की लंगोट ढीली होकर गिरने लगी !

आखिर कब समझेगा सनातन धर्म एक औरत की आज़ादी को, औरत को पीरियड चल रहे हैं तो वो मंदिर नहीं जा सकती, परन्तु दलित महिला के नाम पर वही औरत उसी मंदिर में देवदासी बनाई जा सकती है। दलित पुरुष इनके लिए अछूत हो जाता है परन्तु दलित महिला (देवदासी) के साथ सोने में भी इनको कोई परहेज नहीं।

वैसे पीरियड के वक्त औरत को मंदिर में चढ़ने से रोकने वाला यह धर्म-पुरुष बताये मुझे कि औरत का कम से कम पता तो होता है कि उसको पीरियड कब आते हैं, परन्तु तुम्हारा कब मूड बन जाए या बना होता है कोई पता है क्या या मंदिर में धागा बाँध के चढ़ते हो?

Jai Yauddhey! - Phool Malik

मेरी आज़ादी के जश्न में अभी कुछ देर है!


1) बाकी के तमाम तरह के उत्पादनकर्ताओं की भांति जिस दिन किसान भी अपनी फसल का विक्रय मूल्य खुद तय करेगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

2) जिस दिन 'काम कोई छोटा नहीं होता!' की पंक्ति को व्यवहारिकता में लाते हुए एक थानेदार, एक जमादार, एक मजदूर, एक डॉक्टर, एक इंजीनियर, एक टीचर, एक पुजारी, एक सिक्योरिटी गार्ड, एक मैनेजर आदि सबकी सैलरी स्लॉट्स उनके अनुभव के स्तर के हिसाब से बराबर व् कार्य (ड्यूटी) करने के होवर्स बराबर और ओवर ड्यूटी पर ओवर चार्ज सबको मिलेंगे, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

3) जिस दिन देश से जातिय सेक्युलरवाद खत्म होगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

4) जिस दिन किसान के ज्ञान को भी ज्ञान कहा जायेगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

5) जिस दिन देश में जज न्याय करने की अपेक्षा सोशल ज्यूरी के जरिये "बिना तारीख-पे-तारीख" का न्याय करवाएंगे, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

6) जिस दिन देश में आईएएस, आईपीएस जैसे एक्साम्स एंट्री लेवल भर्ती के नहीं अपितु अफसर लेवल प्रमोशन के लिए होंगे और एंट्री सबकी एक फ्रेशर वाले न्यूनतम स्तर से होगी, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

7) जिस दिन देश से टोटेलिटेरियनिज्म (अधिनायकवाद) का पलायन होगा, उस दिन मेरी आज़ादी का जश्न होगा।

बचपन से ले अभी बीते सालों तक आज़ादी का अनुभव होता था, अब तो सब ऐसा लगता है जैसे देश फिर से मानवता की पिशाचिनी ताकतों के चंगुल में आ चुका है। आज जो है यह एक किसान की आज़ादी नहीं है, मजदूर की नहीं है, दलित की नहीं है।

फिर भी गौरे अंग्रेजों के हाथों से काले अंग्रेजों के हाथों सत्ता आने की तारीख की आप सभी को, .......... क्या बोलूँ शुभकामना या बदकिस्मती?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 13 August 2015

अपनी सभ्यता-संस्कृति के खसम बनो, जमाई नहीं!


आजकल यह मेरे प्रोफाइल की कवर-फोटो की पंच लाइन है| कई दोस्तों ने पूछा है कि भाई "खसम बनो, जमाई नहीं" से क्या मतलब? आप सबके सवाल का जवाब यह है|

हरयाणवी में 'खसम' पति व् घर-खेत के मालिक को कहते हैं| कहावत भी है कि 'खेती खसम सेती!' यह यही वाला खसम है| जमाई का अर्थ तो आप सब जानते ही हैं और इस संदर्भ में भी यही अर्थ है|

तो जैसे जमाई घर में आता है हालाँकि वो घर होता तो उसका भी है, वो उस घर का सदस्य भी है परन्तु घर में उसका किरदार नखरे दिखाने का, आवभगत करवाने का और घर की हर इस-उस बात में सिर्फ नुक्श निकालने का होता है| घर में उसके अनुसार कुछ करने की कहो तो वो करेगा भी नहीं और उसको ऐसा कहना उसकी इज्जत में गुस्ताखी माना जाता है| यानि घर में ले दे के कुछ करना भी है तो घर मालिक यानी खसम ही करेगा, क्योंकि वो समझता है कि वो इसका मालिक है, जिम्मेदार है|

हरयाणवी संस्कृति व् सभ्यता रुपी घर का भी यही हाल है, हर कोई इसका बेटा-बेटी यानी खसम होते हुए भी 95 % मामलों में सब इसके जमाई बने हुए हैं| नुक्श हजार निकालते हों परन्तु जब उसको ठीक करने या उसके निकाले हुए नुक्श को ही ठीक करने की कह दो तो बगलें झाँकनेँ लगते हैं| और इसीलिए "हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत" इसी के बेटे-बेटियों द्वारा सौतेली बना दी गई है|

इसके कारण कुछ भी हों, परन्तु इसको वही संभाल सकता है जो अपने आपको इसका खसम मानता हो, इसको अपना कहने में गर्व व् इसके उत्थान में अपना हित देखता हो| 5 एक प्रतिशत लोग हैं जो इसको ले के सजग और सचेत हैं, वर्ना बाकी 95% तो जाट बनाम नॉन-जाट जैसे राजनैतिक प्रपंचों में आपस में ही उलझे खड़े हैं|

इस चीज का किसी को भान नहीं कि असीमित शरणार्थियों के बीच जैसे मुंबई के मराठों ने अपनी सभ्यता-संस्कृति नहीं रुलने व् खोने दी, ऐसे ही हम हरयाणवी मूलरूप से हमारी दिल्ली-एनसीआर में आ रहे इतने गैर-हरयाणवी शरणार्थियों के बीच अपनी हरयाणवी सभ्यता व् संस्कृति को कैसे चलायमान व् औचित्यमान बनाये रखें|

बस इन्हीं बातों को करने की प्रेरणा हेतु है यह पंच लाइन निर्मित की है कि "अपनी सभ्यता-संस्कृति के खसम बनो, जमाई नहीं!" आप इसके जमाई नहीं हैं, खसम हैं; इसके जमाई तो यह शरणार्थी हैं जो अपना घर व् पेट भरेंगे और कल को हुआ तो यहां खुद की ही संस्कृति फैलाएंगे| इनमें से यह कोई नहीं देखेगा कि हरयाणा-दिल्ली-एनसीआर ने मुझे रोजगार से ले छत तक दी है, इसलिए इसकी सभ्यता-संस्कृति बारे मैं भी कुछ करूँ| वो अंत में हम खसमों को ही करना है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

यू.एन.ओ. में अमरीका-रूस-चीन द्वारा भारत की स्थाई सदस्यता का विरोध करने की याद में!


तर्ज: चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है ……

उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|

तेरी एस्कोर्टिंग को वो मेरा एयरपोर्ट तक दौड़े आना याद है,
और मेरी चमची पे तेरा वो मेरी पीठ थपथपाना याद है|
कैमरों से छुप के हमने तुमको जो बना के पिलाई थी चाय,
कमबख्त कैमरे वालों को अब तक वो ठिकाना याद है||

उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|

ठरकी बुड्ढों की निशानी काले चश्मे लगा, स्टाइल में आना याद है,
चीन के बुतों से उन चश्मों के पीछे से, वो नयन-मट्का याद है|
वो तेरा न्योते पे नंगे-पाँव जाना, लिल्लाह मुहब्बत का तराना,
अहमदाबाद के बागों में जिंगपिंग को पिंघाना फक्त याद है||

उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|

अहले-कहल रसिया (रूस) में वो रास रचाना याद है,
पुतिन की बैठक में मेंडकी ज्यूँ नाल ठुकवाना याद है|
तेरा झल्ला के सर, सेल्फ़ी के आगे वो स्माइली लाना,
और आज जो तीनों ने सुनाया, वो दुखद गाना याद है||

उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|

कुछ अहले वतन की भों पड़ी हो तो सुनो पीएम साहेब,
जनता को आपके वो सुभानल्ला जुमले सुनाना याद है|
15 लखिया फ़साना, छ्प्पनी सीना वो 1 के बदले 10 सर लाना याद है,
राज चलाना नहीं चाय पिलाना, अब तो समझो बस यही फरियाद है||

उचक-के उचक-के रात-दिन सेल्फ़ी खिँचाना याद है,
हमको अब तक ओबामा को वो चाय पिलाना याद है|

विशेष: हरयाणा में काला चश्मा ठरकी बुड्ढों की निशानी है| कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना वाली आशिकमारों का अचूक हथियार, साला कोई झक मार के भी नहीं पकड़ सकता कि ताऊ देख किस ओर रहा होता है|

लेखक: फूल कुमार मलिक