Thursday, 12 November 2015

हिन्दू धर्म और हिन्द की रक्षा हेतु प्रथम शहादत 1675 में गुरु तेगबहादुर जी की नहीं अपितु 1193 में जाटवान जी गठवाला महाराज यौद्धेय की हुई थी!

आगे बढ़ने से पहले: मैं यहां गुरु तेगबहादुर की शहादत को छोटा नहीं दिखा रहा, परन्तु हिन्दुओं को यह बता रहा हूँ कि हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु प्रथम आवाज 1675 में नहीं अपितु 1193 में जाटों द्वारा उठा दी गई थी| गुरु तेगबहादुर मेरे लिए श्रद्धेय और पूजनीय हैं और सदा रहेंगे|

अब प्रथम हिन्दू और हिन्द रक्षा का वाकया: जाटों ने गौरी के खिलाफ पृथ्वीराज का साथ देते हुए गौरी को हरवाया, परन्तु पृथ्वीराज के चाटुकार दरबारियों ने गौरी को छुड़वा दिया और परिणाम यह हुआ कि गौरी दोबारा आया और दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज को ही मार गिराया| 1192 में पृथ्वीराज के बाद, गौरी ने दिल्ली में अपने प्रतिनिधि कुतुबद्दीन को गद्दी पर बैठाया| परन्तु जाट इसको सहन नहीं कर पाये|

सन 1193 ई. में दिल्ली के बादशाह कुतुबुदीन ऐबक के साथ सर्वखाप पंचायत, हरयाणा की सेना ने जाटवान गठवाला जी महाराज के नेतृत्व में 12 वीं सदी का सबसे भयंकर युद्ध हांसी (हिसार) के टिब्बों में लड़ा|

इस युद्ध को मुस्लिम लेखक भी भयंकर मानते हैं| इसमें जाट वीरों ने अपने परंपरागत हथियारों तलवार, लाठी, बल्लम, कुल्हाडी, गंडासी, भाला, बरछी, जेळी, कटार आदि से अंतिम दम तक शाही सैनिकों को कत्ल किया| युद्ध कई दिन चला और जाटवान जी यौद्धेय सहित अधिकतर मल्ल यौद्धेय शहीद हुए|

जीत ऐबक की हुई परन्तु कहते हैं वह अपनी आधी सेना के शवों को देखकर दहाड़-दहाड़ कर रोया और रोते हुए उसने कहा कि मुझे पता होता कि जाट इतने लड़ाकू होते हैं तो वह उनसे भूलकर भी न लड़ता, जाटवान जैसे यौद्धेयों को अपने साथ करके मैं सारी धरती जीत सकता था| इतिहासकार लिखते हैं कि यह पहला अवसर था जब जीतने के बाद भी कोई मुस्लिम शासक

रोते हुए दिल्ली लौटा और उसने जस्न की जगह मातम मनाया|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

हिन्दू धर्म में दूसरा महाविनाश होने की घड़ी नजदीक आ रही है!

पहला महाविनाश तब आया था जब आज के बिहार की तरह ही तमाम दलित-पिछड़ा-कमेरा लालू-नितीश की भांति उस वक्त बुद्ध धर्म पर झुक गया था और सेल्फ-स्टाइल्ड स्वर्ण मोदी की तरह अकेला और असहाय पड़ गया था। तब स्वर्ण हिन्दू ने ही बाकी के बुद्ध बने हिन्दू को कभी पुष्यमित्र सुंग तो कभी शशांक तो कभी चच और दाहिर बनके खुद ही मारा, ना सिर्फ मारा था अपितु तमाम बुद्ध मठ और बुद्ध बौद्धिकता के नालंदा और तक्षिला जैसे केंद्र भी जला दिए थे। खापलैंड में तो उस जमाने से ले आज भी किसी के नुकसान की अति को "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी कहावतों के जरिये मापा जाता है।

बुद्ध धर्म हिंसा नहीं सिखाता परन्तु हिन्दू फिलोसोफी इससे अछूती नहीं, इसलिए बुद्ध शांतिपूर्वक कटते रहे और यह काटते रहे। परन्तु यह सिलसिला तब थमा था जब हरयाणा की धरती पर एक लाख की इनकी सेना को मात्र नौ हजार बुद्ध बने हिन्दुओं ने भगा-भगा के मारा था। क्योंकि जब बुद्ध कटते-कटते इतने घट गए कि बात अस्तित्व पर आ गई तो फिर उठ खड़े हुए थे इनकी हिंसा का हिंसा से ही जवाब देने हेतु।

इतनी नफरत निभाने के बावजूद भी यह बात अलग है कि यह उसी बुद्ध को हमारे हिन्दू धर्म का नौवा अवतार बताते, लिखते, गाते नहीं थकते।

दूसरा महाविनाश आने की दस्तक अब दिल्ली से होते हुए बिहार में कटटरवादियों की लगातार दूसरी हार से हो चुकी है। अब अगर यह हार के सिलसिले यूँ ही बढ़ते रहे तो (जिसके कि पूरे आसार हैं, क्योंकि जनता घृणा और हिंसा की राजनीती और नीति दोनों सिरे से नकार रही है) इनकी परेशानियां इनकी बेचैनियों में बदलेंगी और बेचैनियाँ कुंठा में और कुंठा हिंसा में और हिंसा मारकाट में। 2016 में बंगाल-तमिलनाडु-केरल-असम में चुनाव हैं, फिर 2017 में पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, गुजरात, यूपी, गोवा, मणिपुर में हैं, 2018 में छत्तीसगढ़, कर्नाटका, मध्यप्रदेश, राजस्थान, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड में हैं। और फिर 2019 में लोकसभा।

अभी तो यह मुस्लिम्स और माइनॉरिटीज को आँखें दिखा के अपनी ताकत जताना चाहते हैं, परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हुआ तो फिर हिन्दू धर्म के अंदर होगा। और जब बात हिन्दू धर्म के अंदर कलह की होगी तो क्या ड्रामे होंगे वो हरयाणा में अभी से ही इन द्वारा बना दिए गए हिन्दू जाट बनाम हिन्दू नॉन-जाट के माहौल से समझ लो।

हिन्दू धर्म में पहला महाविनाश ईशा पूर्व पहली सदी से ले ईसा पश्चात सातवीं सदी तक चला था, और फिर उसके बाद 1300 साल की गुलामी झेली देश ने। 1300 साल की आग अंदर लिए घूम रहे हैं यह लोग, अब हुआ तो पता नहीं कितना लम्बा खिंचेगा और पहले की तरह क्या-क्या खुशनसीबी या बदनसीबी ले के आएगा।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 11 November 2015

दूनागिरि से लंका वाया कानपुर या अयोध्या?

दूनागिरि उत्तराखंड में है जहां से हनुमान सुमेरु पर्वत उठा के लंका ले गए थे|  हवाई मार्ग का सीधा रुट निकालो तो उनका कानपुर के पश्चिम से होते हुए जाना हुआ होगा| कानपुर से अयोध्या 250 किलोमीटर पूर्व में है|

इसके दो ही मतलब हैं या तो हनुमान जी संजीवनी को समय पर पहुंचाने हेतु सीरियस नहीं थे और रुट से हट के 250 किलोमीटर लंबरूप अयोध्या हाय-हेलो करने पहुँच गए वो भी सुमेरु पर्वत उठाये-उठाये| क्योंकि रामायण का हर प्रारूप कहता है कि जब वो संजवीनी ले के लौटते समय अयोध्या के ऊपर से गुजरे तो भरत ने उनको कोई आकाशीय विपदा समझ के तीर मारा और वहीँ गिर पड़े| अब अयोध्या से चलाया हुआ तीर 250 किलोमीटर दूर कानपुर के ऊपर उड़ते हुए उनको आन लगा होगा, थोड़ा पचाना मुश्किल है; एक पल को पचा भी लो तो तीर लग के हनुमान जी का कानपुर में गिरने की बजाये अयोध्या जा के गिरना नहीं पचेगा|

या फिर दूसरा मतलब यह हो सकता है कि वो सीधे कानपुर के पश्चिम से ही निकले होंगे, जो कि रामायण का कोई भी प्रारूप नहीं कहता|

तो अब या तो यह एक और ऐसा तथ्य है जो रामायण को एक काल्पनिक ग्रन्थ साबित करता है अन्यथा हनुमान जी सीधे रुट को छोड़ के 250 किलोमीटर हट के क्यों उड़ेंगे, वो भी पर्वत उठाये हुए और ऐसी विपदा के वक्त जब एक-एक सेकंड लक्ष्मण के जीवन पर भारी बीत रहा था| ना ही तो वो खाली हाथ थे और ना ही पिकनिक मनाने निकले थे कि घूमते-घुमाते मुड़ गए अयोध्या को, है कि नहीं?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

भाईचारे को चुराने वालो बाज आ जाओ, इस देश में चारा-चोर माफ़ किये जा सकते हैं परन्तु भाईचारा चोर नहीं!

1791 में रघुनाथ राव पटवर्धन के कुछ मराठा सवारों ने श्रृंगेरी शंकराचार्य के मंदिर और मठ पर छापा मारा। उन्होंने मठ की सभी मूल्यवान संपत्ति लूट ली। इस हमले में कई लोग मारे गए और कई घायल हो गए। शंकराचार्य ने मदद के लिए टीपू सुल्तान को अर्जी दी। शंकराचार्य को लिखी एक चिट्ठी में टीपू सुल्तान ने आक्रोश और दु:ख व्यक्त किया। इसके बाद टीपू ने बेदनुर के आसफ़ को आदेश दिया कि शंकराचार्य को 200 राहत (फ़नम) नक़द धन और अन्य उपहार दिये जायें।

टीपू सुल्तान का भले ही भारतीय शासकों ने साथ नहीं दिया, पर टीपू ने किसी भी भारतीय शासक के विरूद्ध, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, अंग्रेज़ों से गठबंधन नहीं किया। जब टीपू अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में जुटा था, तब पेशवा, तंजौर के राजा और त्रावणकोर नरेश ब्रिटिश के साथ संधि कर चुके थे। टीपू इन राजाओं के खिलाफ भी लड़ा। अब इसका क्या किया जा सकता है कि ये राजा हिंदू थे। टीपू हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ भी लड़ा जो मुसलमान था। स्कूल की किताबों में तीसरा मैसूर युद्ध देखिए। इसमें टीपू के खिलाफ अंग्रेजों, पेशवा और निज़ाम की संयुक्त फ़ौज लड़ी थी।

यह हिंदू बनाम मुसलमान का मामला ही नहीं है। भारत को बचाने के लिए टीपू अपनी आखरी साँस तक अंग्रेजो से लड़ते लड़ते शहीद हो गए| पर इसका नतीजा भी वही हुआ जो होता आया है, आखिरकार टीपू सुल्तान जैसे देश के महान सपूत की कुर्बानी को भी सस्ता कर ही दिया गया, अफसोस| बहुत से लोगों ने सिर्फ इतना याद रखा कि टीपू सुल्तान एक मुसलमान था| फिर उसकी अज़ीम शहादत, उसकी वतन पर जां निसारी, उसकी अपनी गैर मुस्लिम आवाम से मोहब्बत, ये सारी बातें झूठ और फरेब मान ली गईं|

इसका मतलब तो यह हुआ कि यह चड्ढीधारी आज टीपू सुल्तान के खिलाफ इसलिए उठ खड़े हुए हैं क्योंकि टीपू ने अंग्रेजों की गुलामी नहीं स्वीकारी और जो हिन्दू नरेश अंग्रेजों से संधि कर रहे थे टीपू उनसे भी लड़ा? तो देश बेचने वाले वो हिन्दू राजा थे या टीपू?

इसका मतलब तो यह हुआ कि अगर यह चड्ढीधारी यूँ ही बेलगाम भोंकते रहे तो यह हिले-हिले कल जाटों के खिलाफ भी मोर्चा खोलेंगे? क्योंकि जाटों की पेशवाओं, होल्करों, राजपूतों सबसे लड़ाइयां हुई हैं और विरोध रहे हैं? जयपुर में सवाई ईश्वरी सिंह को गद्दी दिलवाने हेतु मशहूर बांगरू की लड़ाई में तो महाराजा सूरजमल ने मराठा-राजपूत-होल्कर-मुस्लिम सब एक साथ हराए थे| भरतपुर-धौलपुर और उधर पंजाब में महाराजा रणजीत जैसों के राज्यों ने अंग्रेजों-मुस्लिमों से लोहा लेने हेतु बड़े-बड़े रण लड़े तो क्या कल को अब इसकी भी आग सुलगाएंगे यह लोग और नया रंग देंगे?

पानीपत के तीसरे युद्ध में जब महाराजा सूरजमल और महाराष्ट्री पेशवाओं में समझौता होने के बाद भी उसको तोड़ते हुए पेशवा दिल्ली को मुग़लों को देने पे आमादा थे परन्तु जाटों को नहीं तो क्या अब यह चड्ढीधारी गैंग उसको भी नया रंग दे के उछालेंगे कि इन्होनें हमारे द्वारा पानीपत जीत जाने की स्थिति में भी दिल्ली मुस्लिमों को देनी नहीं स्वीकारी थी तो यह देशद्रोही हुए?

बाज आ जाओ भाईचारे को चुराने वालो, इस देश में चारा-चोर माफ़ किये जा सकते हैं परन्तु भाईचारा चोर नहीं|
देश को क्या डूबाधानी की तरफ घसीट रहे हैं यह नादान लोग, 1300 साल भी कम पड़ गए क्या तुम्हें अक्ल लेने के लिए? खा लिया खून इन लोगों ने कसम से, "शिकार के वक्त कुत्तिया हगाई" प्रवृति के यह लोग देश में यह निर्धारित कर रहे हैं कि कौन देशभक्त और कौन राष्ट्रभक्त| तब कहाँ मर गए थे जब इन्हीं मुग़लों के राज में कोई राजपुरोहित तो कोई महाजन बनके मजे मारा करता था?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मुझसे ज्यादा पापी बैठे, इस अग में ब्रह्मज्ञानी!

मुझसे ज्यादा पापी बैठे, इस अग में ब्रह्मज्ञानी,
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

बैठा इंद्र आज सभा में, बन सबका सरदार,
गौतम के घर जारी करने, पहुँच गया बदकार। ...
दाग छूटा नहीं कभी चाँद का, जाने सब संसार,
नारद ने रंडी के आगे, पल्ला दिया पसार।
वेद-व्यास ना है पैदा, माँ छोड़ बनी राणी।
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।


कुंती और माद्री के यहाँ बैठे पाँचों लाल,
पाण्डु से नहीं एक भी पैदा, मन में कर लिए ख्याल|
पार्वती के संग में आ गया, भस्मासुर का काल,
ब्रज में सताई गोपिका, तुम भी तो चांडाल।।
मेरी आँख फूटी हुई है यह, तेरी एक निशानी,
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

विष्णु ने वृंदा के संग, जा के करी जारी,
विश्वामित्र को हूर मेनका, लगी थी बहुत प्यारी।
पाराशर ने अपनी बेटी, जा पकड़ी थी कुंवारी,
भरद्वाज ऋषि ने इज्जत, जा भाभी की थी उतारी।।
कम कौनसा बैठा है यहां, मुझे बतला दो कहानी।
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

राजा बल को छलने गया, जब बनके अत्याचारी,
टेंट के अंदर बैठा था, तूने सिंक आँख में मारी।
चंद्रपाल की आज सभा में, बैठे सब सत्तधारी,
गुरु बाबा समझाने लगे, तू सुन ले बात हमारी।
बेशक आँख मेरी काणी, पर आन जगत ने मानी।
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

मुझसे ज्यादा पापी बैठे, इस अग में ब्रह्मज्ञानी,
छोटा सा एक दोष मेरे में, आँख मेरी है काणी।

भूल हुई जो पश्चाताप की, वो शब्द सुनाये देते हैं।

भूल हुई जो पश्चाताप की, वो शब्द सुनाये देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।।

उस पंचवटी पे लक्ष्मण ने सरुपण की नाक उड़ाई क्यों ॥
रावण पै दिया दोष लगा, कि राम की सिया चुरायी क्यों॥...
भई बहन की इज्जत लूटे किसी की, वो कर ले सहन बुराई क्यों।
न्याय और अन्याय विचारो, ली राम ने मोल लडाई क्यों ॥
कुकर्म करने वालों को भी लोग भलाई देते है।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।


दुर्योधन को द्रोपदी जो, अन्धे का अँधा ना कहती|
केस खींचे, लगी लात गात में, सर पे रंदा ना सहती||
जेठ के आगे बहु की आँखें, क्या शर्मिंदा ना रहती।
रच दिया महाभारत बोलों ने, यूँ खून की नदियां ना बहती ।
उन जुआ खेलने वालों को भी धर्म-दुहाई देते हैं|
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।

शक्‍ितसिंह जा मिला अकबर से, ये बातें चुपचाप की थी ।
मानसिंह भी मिलने आया, ये तो घडियां मित्र-मिलाप थी||
घर आये का किया निरादर, भूल अपने आप की थी।
सर में दर्द बताया गलती यो महाराणा प्रताप की थी||
जख्म के ऊपर फोवे जहर के नहीं दिखाई देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।

पृथ्वीराज संयोगिता (उसकी भतीजी) को, जो जबरन जा उठाता ना।
सपने में भी सलाऊदीन को, जयचन्द यहाँ बुलाता ना|
होकर के पथभ्रष्ट कमठ गुरु, अपना दरस गिराता ना।
गजनी का सुल्तान यहाँ से, बच के जिन्दा जाता ना।
ऋषि विचारक चाल ऐसी घर लुटे लुटाई देते है।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।

भूल हुई जो पश्चाताप की, वो शब्द सुनाये देते हैं।
जिनका नहीं कसूर, उन्हें क्यों लोग बुराई देते हैं।।

Tuesday, 10 November 2015

बुतपरस्ती का विरोध करते हैं हिन्दू धर्म के उपनिषद, यजुर्वेद और भगवद गीता!

1) तैत्तिरिया उपनिषद, अध्याय 4, मंत्रा नंबर 19 - "न तथ्यप्रतिमास्ति"!
2) यजुर्वेद अद्ध्याय 32, मंत्रा नम्बर 3 - "न तथ्यप्रतिमास्ति"!

अर्थात उस ईश्वर की उस भगवान की कोई प्रतिमा नहीं, कोई फोटो नहीं, कोई पेंटिंग नहीं, कोई बुत नहीं|

3) भगवद गीता, अध्याय 7, मंत्रा 20 - जिनकी इच्छाओं ने भौतिकवाद का रूप ले लिया है, वो लोग बुतपरस्ती करते हैं
4) भगवद गीता, अध्याय 7, मंत्रा 21 - अगर आप काल्पनिक और झूठे भगवानों की पूजा करोगे तो भगवान तुमको झूठे भगवानों की दुनिया के अंधकार में ही भेज देंगे|

इन हिन्दू धर्म की किताबों में साफ़ लिखा हैं कि मूर्तिपूजा गलत है परन्तु फिर भी हिंदुत्व में पसरे पाखंडी (शुद्ध स्पष्ट हिन्दू गुरुवों को छोड़ के) मूर्तिपूजा के जरिये कमाई के गोरख-धंधे चलाते हैं और वो भी इतने बड़े कि भारत के कुल सालाना बजट से ज्यादा इनका टर्नओवर रहता है|

सोचने वाले सोचते रहो कि धर्म के असली ज्ञान के साथ जीना है या धर्म के नाम पर व्यापार करने वालों द्वारा रोज-रोज उतारे जाने वाले नए-नए काल्पनिक भगवानों के साथ?

मुझे ख़ुशी है कि मैं हिन्दू धर्म की मूल भावना का अनुसरण करता हूँ और बुतपरस्ती नहीं करता|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 9 November 2015

जातिपाति की सड़ांध मारते अनुपम खेर और भारतीय मीडिया!

अभी श्रीमान अनुपम खेर जी ने दो-चार दिन पहले इनटॉलेरेंस के मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन तक "वाक फॉर नेशन" लांच किया और उसमें कश्मीर से विस्थापित पंडितों का मसला उठाया।

ऐसे ही जब-जब कश्मीर से विस्थापितों की बात होती है तो भारतीय मीडिया की तमाम प्रिंट एंड इलेक्ट्रॉनिक रिपोर्ट्स में भी सिर्फ कश्मीरी पंडितों का ही नाम आता है।

क्या वाकई में कश्मीर से सिर्फ पंडितों को ही खदेड़ा गया है? खदेड़ने वालों का हिन्दू धर्म की सिर्फ इसी एक जाति से ही बैर है या वहाँ हिन्दू धर्म की अन्य जातियाँ भी बसती हैं? और अगर अन्य जातियाँ भी बसती हैं तो क्या उनको नहीं खदेड़ा गया? और अगर उनको भी खदेड़ा गया तो फिर यह सिर्फ एक जाति विशेष के ही विस्थापन का जिक्र क्यों होता है, किया जाता है और वो भी अनुपम खेर जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी और सुलझे व्यक्तित्व से ले खुद को भारत के लोकतंत्र का चौथा खम्बा क्लेम करने वाले मीडिया द्वारा?

और इसपे भी कमाल तो यह है कि जनाब अनुपम खेर उस पार्टी की वकालत करने उतरे थे जिसका नारा ही "हिन्दू एकता और बराबरी" होता है। तो ऐसे में वो सिर्फ हिन्दू की एक जाति के उत्पीड़न तक कैसे सिमित रह सकते हैं, उन्हें हिन्दू होते हुए सारे हिन्दू ना दिखने की बजाय अकेली एक जाति क्यों दिखती हैं? लगता है यह "हिन्दू एकता और बराबरी" भी नारा नहीं, जुमला ही होता होगा इनके लिए।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

राजकुमार सैनी को पत्थर मारने वाले अभियुक्तों में 11 सैनी और 1 नाई हैं!

अभी पिछले महीने ही जाट-विरोध की फायर-ब्रांड कुरुक्षेत्र से भाजपा सांसद श्रीमान राजकुमार सैनी साहब पर गाँव सीवन, जिला कैथल में पत्थर पड़े थे और आपको याद होगा कि सैनी साहब ने इसका इल्जाम भी तोते की तरह रटी-रटाई जुबान में जाट समाज पर मढ़ा था?

पता चला है कि जनाब पर हुई इस stone-pelting (पत्थर मारना) में नामजद अभियुक्तों में 11 अभियुक्त सैनी समाज के ही हैं और बारहवां अभियुक्त नाई समाज का है|

मतलब खुद सैनी समाज इन जनाब की इन उल-जुलूल हरकतों से इतना उक्ता गया है कि इससे पहले कि इन जनाब की इन बेहूदगियों की वजह से सैनी और जाट समाज का भाईचारा बिगड़े, सैनी भाई ही इनको पत्थर मारने लगे हैं|

चलो इससे यह तो सुकून हुआ कि राजकुमार सैनी कितना ही जातिपाति का जहर उगल लेवें, परन्तु इस बेहूदगी में खुद सैनी समाज इनके साथ नहीं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

हरयाणवियो बाहर आओ इस जाट बनाम नॉन-जाट से, क्योंकि इसके चक्कर में तुम्हारी हरयाणवियत दम तोड़ रही है!

बिहार में मात्र 'बिहारी बनाम बाहरी' का नारा ही चुनाव की हवा पलट देता है और प्रधानमंत्री के कद के आदमी की भी हवा निकाल देता है| यह होता है एक राज्य की एथिकल आइडेंटिटी के प्रति उनके लोगों के अभिमान और स्वाभिमान का जादू और उसकी ताकत|

और एक हम हरयाणवी हैं, हमारे ऊपर ऐसे लोग सीएम थोंपे गए हैं जो हरयाणवियों द्वारा बिना विरोध के सीएम स्वीकार करने पर भी, हमारा शुभचिंतक होने की बजाये हमें ही कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कह के हम पर चुटकी लेते हैं|

कमांडेंट चौधरी हवा सिंह सांगवान जी और उनकी टीम जैसे आम हरयाणवी तो फिर भी लगातार सीएम की इस बात का विरोध करके अपना फर्ज निभा रहे हैं परन्तु बात तो तब बने जब सारे हरयाणवियों की हरयाणत जागे| या कम से कम हर कौम से एक-दो, एक-दो हवा सिंह सांगवान सीएम दवारा हरयाणवियों के इस अपमान पे उन पर गरजे| क्या सिर्फ जाट ही अकेले हरयाणवी हैं, आप हरयाणा में जन्मे और मूल रूप से इस मिटटी के बाशिंदे दलित-ओबीसी या जाट के अतरिक्त अन्य कृषक व् व्यापारिक जातियां हरयाणवी नहीं?

अब तो बिहार के लोग जो हमारे यहां नौकरी-रोजगार करने आते हैं उन्होंने भी इनको अपनी औकात बता दी, आप कब उठोगे? जे.पी. जी ने कहा था कि जिन्दा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करती|

क्या हरयाणा का दलित-ओबीसी-कृषक समाज बिहार के दलित-ओबीसी-कृषक समाज से भी कमजोर है या अपनी हरयाणवी आइडेंटिटी को ले के स्वाभिमानी नहीं है? या फिर जिन लोगों को बिहारी दलित-ओबीसी-कृषक समाज ने उखाड़ बाहर किया, उन्हीं लोगों द्वारा हरयाणा में फैलाया गया जाट बनाम नॉन-जाट का जहर आप पर इतना गहरा छाया हुआ है कि आपको ना तो यह जहर पिलाने वाले दिख रहे और ना ही इस जहर की आड़ में आपकी हरयाणत पर चुटकी लेने वाले हरयाणा सीएम जैसे गैर-हरयाणवी दिख रहे?

और हरयाणा के अहीर-यादव को तो लालू यादव जी से प्रेरणा ले के सीएम द्वारा हरयाणत के इस अपमान पर एक पल में खड़ा हो जाना चाहिए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जय माँ काली, हरयाणे वाली!

बोंधु बोला, "जय माँ काली कलकत्ते वाली!"

हरयाणवी बोला, "जय माँ काली, हरयाणे वाली! जिसको घर तू उस घर हर दिन दिवाली!"

बोंधु चौंक के बोला भाई यह हरयाणा में कौनसी "माँ काली" आ गई?

हरयाणवी ने कहा हमारे यहाँ भैंस को "माँ काली" बोलते हैं। जिसके घर यह हो उस घर कभी कर्जा नहीं चढ़ता, घर में दूध से ले के पैसे की कमाई की कोई कमी नहीं रहती। हरयाणवी बोला तू बता तुम्हारी "माँ काली" जिसके घर हो उस घर देखी है कभी दूध देती या कमाई से उस घर को भर्ती?

हरयाणवी के तर्क के आगे बेचारा बोंधु गस खा के गिर गया।

जय योद्धेय! - फूल मलिक

जंगलराज के सिद्धांत पर चलती है आरएसएस!

आरएसएस कितने बड़े जंगलराज के सिद्धांत पर चलती है इसका नमूना संघ प्रमुख गोलवलकर द्वारा 8 जून, 1942 में आरएसएस. के नागपुर हेडक्वार्टर पर दिए गए इस भाषण में साफ़ झलकता है – “संघ किसी भी व्यक्ति को समाज के वर्तमान संकट के लिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराना चाहता। जब लोग दूसरों पर दोष मढ़ते हैं तो असल में यह उनके अन्दर की कमज़ोरी होती है। शक्तिहीन पर होने वाले अन्याय के लिये शक्तिशाली को ज़िम्मेदार ठहराना व्यर्थ है।…जब हम यह जानते हैं कि छोटी मछलियाँ बड़ी मछलियों का भोजन बनती हैं तो बड़ी मछली को ज़िम्मेदार ठहराना सरासर बेवकूफ़ी है। प्रकृति का नियम चाहे अच्छा हो या बुरा सभी के लिये सदा सत्य होता है। केवल इस नियम को अन्यायपूर्ण कह देने से यह बदल नहीं जाएगा।”

तो क्या इसका मतलब "जंगल में दिमाग नहीं होता, इंसान में होता है", "इंसान में भावना और हृदय होता है जंगली में नहीं" आदि-आदि आध्यात्मिक तर्कों से जंगली और इंसानियत को अलग-अलग दिखाने वाले मानवीय सभ्यता और अनुभूति कहे जाने वाले इन तथ्यों की थ्यूरीयों और मनोविज्ञान को आरएसएस नकार के, जंगलराज की पद्द्ति पर चलता है? कम से कम इनके फॉउंडिंग गुरु का इंटेलेक्ट तो यही कहता है।

मतलब इसके साथ ही यह जनाब इस बात को भी सत्यापित करते थे कि ब्रिटिश रुपी शक्तिशाली हम शक्तिहीन भारतियों पर राज कर रहे हैं, जुल्म कर रहे हैं तो उसमें उनका कोई दोष नहीं। कमाल है ऐसी सोच वाले देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति का जुमला उठा कैसे लेते हैं, मुझे तो सोच के अचरज होता है।

इसका एक संकेत और साफ़ है कि कल को अगर हम फिर से गुलाम बन गए तो यह लोग "अपने गुरु की इस परिभाषा" के अनुसार सबसे पहले गुलामी स्वीकार करने वालों में होंगे। यह है इनकी थोथी कोरी जुमलों वाली राष्ट्रवादिता की परिभाषा।

इससे यह बात भी समझी जा सकती है कि बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री बार-बार क्यों जंगलराज-जंगलराज पुकार रहे थे, शायद इनकी खुद की जंगलराज की थ्योरी जनता की नजर में ना चढ़े इसलिए।

फूल मलिक

Sunday, 8 November 2015

बिहार इलेक्शन परिणाम पर मोदी जी की अतंर्वेदना कराह रही है, कुछ ऐसे!

गाने की तर्ज: "कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो!"

अमितशाह कहो, भागवत कहो, नहीं तुम कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो,
क्या कहना है, क्या सुनना है, मोदी को सब पता है, तुमको कुछ ना पता है|
पाकिस्तान में पटाखा फुटा है, और काऊ शर्मिंदा बनी है|

........................ ख़ामोशी दा म्यूजिकल ........................

बस एक जुमले हैं, बस एक सेल्फ़ी-बाबू हैं|
अमितशाह कहो, भागवत कहो, नहीं तुम कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो,

कितने सयाने निकल-निकल के, मनोहर खट्टर जैसे बोल घड़-घड़ के,
बीफ पे लेक्चर झाड़ें थे पागल, कंधों से ऊपर अक्ल की गागर, अधजल छलके-छलके!
बिहार तक पहुंचे टहलते-फिरते, भगवे के रंग में ढलते-ढलते,
बीफ पे लेक्चर झाड़े था पागल, चले था कोई काऊ की पूंछ पकड़े-पकड़े!

........................ ख़ामोशी दा म्यूजिकल ........................

और इस पल में कोई नहीं है,
बस एक जुमले हैं, बस एक सेल्फ़ी-बाबू हैं|
अमितशाह कहो, भागवत कहो, नहीं तुम कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो,

सुलगी-सुलगी जनता, बहकी-बहकी समता,
धधकते-धधकते, धर्म के ठेकेदार आये, पिघले-पिघले सब छन-छन|
सुलगी-सुलगी जनता, बहकी-बहकी समता,
धधकते-धधकते, धर्म के ठेकेदार आये, पिघले-पिघले सब छन-छन|

........................ ख़ामोशी दा म्यूजिकल ........................

और इस पल में कोई नहीं है,
बस एक जुमले हैं, बस एक सेल्फ़ी-बाबू हैं|
अमितशाह कहो, भागवत कहो, नहीं तुम कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो,

सप्रेम - फूल मलिक