Saturday, 19 December 2015

जिंदगी में आज पहली बार शाहरुख़ खान की फिल्म रिलीज़ के हफ्ते में ही देख डाली, and due credit goes to अन्धभक्तमंडली!

वर्ना एक वो भी जमाना होता था कि दोस्तों के लाख कहने पर भी पांच साल तक तो "DDLJ" तक नहीं देखी थी| मुझे आज भी याद है 1995 में जब डीडीएलजे आई थी तो मेरे हाई स्कूल के दोस्तों के साथ स्कूल बस से अलग 'बागी बनके' अपनी गाडी करके, हम करीब 25-26 दोस्त दिल्ली घूमने गए थे| दरअसल एक टीचर से ठन गई थी, जो स्कूल बस से जाने वाले टूर का इंचार्ज था और हमें 'ब्लैक-लिस्टेड' घोषित करते हुए, टूर पर ले जाने से मना कर गया था| ना-ना defaulters का टोला मत समझना हमें, हाई स्कूल का इंग्लिश मीडियम का मेरिट सेक्शन था हमारा; टोटल 49 में से 45 की मेरिट (including this नाचीज) और no one below 70% आये थे|

तो हम भी पूरे बागी थे टीचर ने हमें ले जाने से मना कर दिया तो, दिन-के-दिन अगले दिन के लिए 'लम्बे वाली मेटाडोर' करी| परन्तु अगले दिन कोई रैली-वैली थी तो जो मेटाडोर बुक करी थी, उसको RTO ने उठा के ऐन उस वक्त रैली के लिए बुक कर दिया, जब हम स्कूल के आगे खड़े दिल्ली निकलने को मेटाडोर के आने की इंतज़ार कर रहे थे| सुन के मुंह से हरयाणवी में यही निकला कि "यें किसकी बेबे के फेरे होए"| हम 1-2 दोस्त पहुंचे RTO ऑफिस जींद बस अड्डे पे| और RTO से विनती करी, 'जी म्हारी मेटाडोर छोड़ दो', बाकी चाहे सारे हरयाणे के रेहडू-गाड्डे रैली के लिए बुक कर लो| मखा ऐसे-ऐसे इज्जत का सवाल बना हुआ है| खुशकिस्मती से RTO साहब मान गए और थोड़ी देर पहले ही जब्त करके जींद बस डिपो के वर्कशॉप में लॉक करी मेटाडोर छुड़वा लाये| ड्राइवर भी कूदता हुआ आया कि छूटा पिंड मुफ्त में गाडी तुड़वाने से|

खैर, आगे स्कूल का बैनर लगाया और निकल लिए स्कूल बस के जस्ट एक दिन के टूर के जवाब में दो दिन का टूर ले के| पहले दिन दिल्ली घूमने का प्लान था और अगले दिन क्योंकि प्रगति मैदान में स्कूल बस टूर भी ट्रेड-फेयर देखने आ रहा था तो; साथ आने वाले टीचर्स को यह दिखा के कि देखो हम बच्चे हैं तो क्या हुआ, जो बच्चों को टूर दिखा के तुम चौड़े होते हो वो हम तुम्हारे फुफ्फे अकेले भी देख के आ सकते हैं|

खैर, उससे पहले वाली रात को दिन में घूमने-घुमाने के बाद लेट नाईट मूवी देखने का प्लान हुआ| जा के एक थिएटर के बगल में गाडी रोक दी| तब मल्टीप्लेक्स नहीं हुआ करते थे, एक थिएटर में एक ही मूवी लगती थी| जहां हम गए थे पता लगा कि उस थिएटर में 'DDLJ’ लगी हुई है| मैंने दोस्तों से कहा कि भाई तुम लोग देख आओ, मैं यह फिल्म नहीं देखूंगा| और मैं पास के पार्क में जा के टहलता रहा, शायद एक-दो दोस्त और रुक गया था मेरे साथ|

साला जिनकी मूवीज को देखने की by-default मन में ना हुआ करती थी, इन पनौती अंधभक्तों की वजह से आज हम उन्हीं के फैन हो गए| good work शाहरुख़-काजोल-कृति-वरुण-अजय| काश! यह अंधभक्त 1995 में भी होते तो मुझे शाहरुख़ का फैन बनने में इतना अरसा ना लगता और ना ही मैं DDLJ पांच साल बाद देखता, वरन उसी दिन देख डालता दोस्तों के साथ ही|

जय हो अंधभक्तो की!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

और यही अंतर है विकासशील और विकसित में!

व्यापार का ग्लोबलाइजेशन चाहिए, टेक्नोलॉजी का ग्लोबलाइजेशन चाहिए, डेवलपमेंट ग्लोबल स्टैण्डर्ड की चाहिए, इंफ्रास्ट्रक्चर ग्लोबल स्टैण्डर्ड का चाहिए, रिलिजन को ग्लोबल पहचान दिलवानी है; परन्तु ऐसी बातें करने वाले भारतियों को सामाजिक सरंचना और न्याय व्यवस्था के ग्लोबलाइजेशन से परहेज है|

ग्लोबल लोकेशंस पर बैठे भारतियों तक से भारतीय सामाजिक वर्ण व् जाति व्यवस्था खत्म करने बारे पूछ लो तो, गर्म तवे पे जैसे गिर गए हों ऐसे फफकते हुए कहेंगे कि नहीं, उसमें क्या खराबी है?

खराबी है यही तो खराबी है, आजतक इंटेल्लेक्टुअल्ली इतने ही वाइज नहीं हुए हैं हम कि सिवाय अपने कर्म के दूसरे के कर्म/हुनर को अपने बराबर का भी समझें| ग्लोबल लोकेशंस पर बैठ के भी वर्ण और जाति-व्यवस्था में जीने वाले लोग एक सीजन खुद से अन्न उगा के देखें तो जैसे बाकी के विकसित विश्व को समझ आ गया ऐसे ही समझ आ जाएगा कि किसी और का हुनर भी आपसे सर्वोच्च और श्रेष्ठ हो सकता है|

हम अपने दिमाग और सोच जिस दिन इतने विकसित कर इस वर्ण और जातिगत दम्भ, अहम और गरूर से ऊपर उठ गए, उस दिन स्वत: ही विकसित देश बन जायेंगे| अन्यथा भारत इस प्रतिष्ठा पदवी तक पहुँचने से कोसों दूर था और मीलों दूर रहेगा|

क्योंकि कल को जब हम अपनी विकसितता विश्व को गिनवाने चलेंगे तो विश्व यह गिनके हमें विकसित होने का सर्टिफिकेट नहीं देगा कि हमारे यहां कितने स्काईस्क्रेपर हैं, या कितने बिलियनएयर; वो सबसे पहले यह देखेगा कि देश के भीतर हम ह्यूमैनिटी और हार्मोनी पर कितने निष्पक्ष और उदार हैं।

जय यौद्धेय! - फूल कुमार मलिक

Friday, 18 December 2015

जाट तो आजकल निठ्ठले ही हो गए हैं!

1) पहले जाट अपनी आर्यसमाजी परम्परा के तहत जो ढोंग-पाखंड-आडंबर का भांडा फोड़ने का काम किया करते थे वो आजकल दलित और फिल्मों वाले कर रहे हैं| जाट तो बल्कि आज अपना आर्यसमाजी स्वाभिमान और अभिमान छोड़, इसके उल्ट चौकियों-जगरातों-भंडारों में जा फंसे हैं|
2) पहले जो जाट, समाज के आपसी झगड़े निबटवाया करते थे, वो आजकल टीवी डिबेटों वाले निबटा रहे हैं (नहीं शायद निबटवाने का ढोंग करके और ज्यादा पेचीदा उलझा रहे हैं)| जाट तो बस आरक्षण की लड़ाई लड़ने तक ही सिमट कर रह चुके हैं|
3) पहले जो जाट-खाप सामाजिक सुधार के आंदोलन और मूवमेंट चलाया करते थे वो आजकल जाट बनाम नॉन-जाट के मुद्दे तक पर भी खुलकर राय रखने से घबराते हैं| खुद की जाट-ब्रांड को ही सुरक्षित रखने में समर्थ साबित नहीं हो रहे, पूरे समाज की ब्रांड की तो अब बात करना ही सपना लगने लगी है|
4) जो जाट शिक्षा के लिए खुद आगे बढ़ के कहीं जाट स्कूल तो कहीं जाट कॉलेज तो कहीं आर्य गुरुकुल बनवाया करते थे वो आजकल यह चंदा माता की चौकी और अंधभक्ति वालों के भीतर में उतार रहे हैं| क्या कहीं सुना है कि 'जाट कम्युनिटी' के नाम पर नए जाट कॉलेज या स्कूल निर्माण हेतु विगत दो दशकों से तो खासकर जाटों ने एक भी नई ईंट लगाई हो?
5) खापें अगर चाहें तो एक पल में 36 बिरादरी की महापंचायत करके राजकुमार सैनी, मनोहरलाल खट्टर और रोशनलाल आर्य जैसों को एक पल में सामाजिक मंच से उनकी समाज को तोड़ने की बातें (कभी जाटों को ले के तो कभी हरयाणवियों को ले के कंधे से ऊपर कमजोर जैसे बयान) करने पे माफ़ी मांगने को विवश कर दें, परन्तु वो यह कह के चुप बैठ जाती हैं कि हम सब बिरादरियों के प्रतिनिधि हैं, कोई बुरा मान गया तो? कमाल है समाज को तोड़ने वालों को आगाह करने से भला कौन बुरा मानेगा?

तो ऐसे में जाटों का सामाजिक रुतबा सिकुडेगा नहीं तो और क्या होगा? जाट समाज की 40 से 60 साल और 20 से 40 साल की दोनों पीढ़ियों को सोचने की गंभीर जरूरत है कि आप लोग किधर से किधर निकल आये हैं| क्या रुतबा आपके पुरखों ने हासिल किया था| हालत यह होती जा रही है कि उसमें नया जोड़ने की बजाये जो वो दे गए थे उसको संभालने और बरक़रार रखने भर में ही आज के जाट के पसीने छूट रहे हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 17 December 2015

दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर मलाई मार रहे!

लोकतंत्रवाद को छोड़ के जातपात के द्वेष में डूबे अधिनायकवाद के पीछे दौड़ने से ऐसे घाघ आपके ऊपर थोंप दिए जाते हैं जैसे मोदी ने हरयाणा वालों पे थोंपा है| जाटों की तो छोड़ो, हरयाणा के नॉन-जाट किसान-पिछड़ा-दलित तक ने जिस आस में इनके 'एक ही जाति के राज से मुक्ति" वाले जुमले में फंस के (यह जुमला इसी पार्टी के 'हिन्दू एकता और बराबरी" के नारे पर भी हावी पड़ा था) इनको वोट किये थे, उनसे जानना चाहिए कि जाटों से छींटक के वोट करने से विगत डेड-पौने दो साल में आपकी जाति में कितना ज्यादा नौकरियां आई हैं या प्रमोशन मिल चुके हैं? इनको वोट देने की ऐवज में फसलों के दाम कितने बढ़ा के मिल चुके हैं आपको? हिसाब-किताब रखियेगा, पांच साल बाद काम आएगा| बाकी जाट नॉन-जाट के चक्कर में अपनी हरयाणवी सभ्यता-संस्कृति-भाईचारे की वाट जो लगवा बैठे हैं वो अलग से| दुआ है कि जिस उम्मीद में जाट से नॉन-जाट किसान-दलित-पिछड़ा छींटके थे वो जरूर पूरी हो जावे|

अभी तक तो "दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर सारी रोटी खा रहे हैं!" वाली कहावत ही चरितार्थ हो रही है| और इनको आगे बढ़के वोट देने वाले, इनको रोक भी नहीं पा रहे| यह ना हमारे हरयाणवी मूल के हैं और ना ही हरयाणा से प्रेम और इसकी इज्जत करने वाले, बल्कि हरयाणवियों को "कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर" बोल के हमारी-आपकी खिल्ली उड़ा रहे हैं| आपके-हमारे संसाधनों और रोजगारों का एकमुश्त दोहन कर रहे हैं| मेरे ख्याल से जाट से मात्र चिड़ के नाम पे इनको वोट करने वालों को कुदरत ने करारा जवाब दिया है| और दिखाया है कि कैसे जाती-द्वेष में पड़ के चलने से दूसरे को सबक सीखा पाओ या नहीं, परन्तु अपने घर जरूर बेगैरत की घुटन को निमंत्रित कर बैठते हैं| अभी बोल भले ही कोई ना रहा हो, परन्तु यह घुटन हर नॉन-जाट किसान-दलित-पिछड़ा हरयाणवी के घर में साफ़ महसूस की जा सकती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

एयरपोर्ट का नाम शहीद-ए-आजम भगत सिंह की बजाये RSS नेता के नाम पर रखने की हरयाणा सरकार की तैयारी!

Shame on BJP & Haryana Government!

हद की बात है जो खुद राष्ट्रभक्त होने के दम भरते हैं, वो राष्ट्रभक्ति के सिरमौर से ही छलावा करते हैं; अरे अंधभक्त बने भोले भारतीय युवाओ अब तो नींद से जागो।

बीजेपी और आरएसएस की सेल्फस्ट्य्लेड राष्ट्रभक्ति की मेरी पहले से चली आ रही शंका की कन्फर्मेशन मुझे तो उसी दिन हो गई थी जिस दिन मोदी ने पहली बार लालकिले से भाषण देते हुए यह कहा था कि, "सिर्फ भगत सिंह की तरह फांसी पर झूल जाना ही देशभक्ति नहीं होती|"

और नमूना यह देख लीजिये, "हरियाणा की भाजपा की खट्टर सरकार ने शहीद भगत सिंह के नाम पर प्रस्तावित चण्डीगढ़ एअरपोर्ट के नाम से शहीद भगत सिंह का नाम हटा कर RSS के नेता मंगलसेन जिस पर 1977 की जनता पार्टी सरकार में मक्की घौटाले का आरोप है और जिसके नेतृत्व में शहीद भगत सिंह की विरासत सम्भालने वाले HSRA के क्रान्ति कुमार को पानीपत में जलाने के लिए लोगों को बहकाने का आरोप है, के नाम पर रखने का प्रस्ताव रखा है। जिससे आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले अमर शहीद भगत सिंह का अपमान ही नहीं देश का भी अपमान करने की दुष्टभावना पता चलती है। इससे पता चलता है कि कैसे आरएसएस आज़ादी की लड़ाई के खिलाफ थी|

अंधभक्त बने भारतीयों, हरयाणवियों, सिखो अब तो जागो! क्या अब देश के इतिहास की तरह देशभक्ति को भी फिर से घड़ा जायेगा और आप शहीद-ए-आजम के साथ हो रहे अपमान पर भी मोदी-मोदी की गोटी गिटके बैठे रहोगे?

शहीद-ए-आजम के दीवाने तो जरूर जागो जो सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर भी सरदार भगत सिंह की ही लगाना गर्व समझते हैं| आईये हरयाणा की भाजपा सरकार के इस कदम के विरोध को इतना बड़ा सोशल मीडिया मूवमेंट बना दें कि सरकार ऐसा करने की जुर्रत ना कर पाये| भगत सिंह ना कांग्रेस के थे, ना आप के, ना बीजेपी के, ना लेफ्ट के, वो पूरे देश के थे और देशभक्ति के सिरमौर थे, हैं और रहेंगे!

आप जहां भी हैं जिस भी राजनैतिक पार्टी से जुड़े हैं, वहाँ अपने नेताओं को इस मुद्दे पर चेतायें कि इस मुद्दे पर भी चुप रह गए तो फिर समझो मारे गए।

मेरा रंग दे बसंती चोला, माहे रंग दे बसंती चोला!

News Source: 
1) http://navbharattimes.indiatimes.com/state/punjab-and-haryana/chandigarh/Bhagat-Singhs-nephew-slams-neighbouring-states-move-on-renaming-airport/articleshow/50188766.cms?utm_source=whatsapp_wap
2) http://www.outlookhindi.com/country/state/mangal-sen-is-bjps-not-shaheed-bhagat-singh-5568

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 15 December 2015

सन् 1947 तक जाटों की रियासतें!

15 अगस्त 1947 तक जाटों की निम्नलिखित रियासतें थीं -

(क) हिन्दू जाट रियासतें: भरतपुर, धौलपुर, मुरसान, सहारनपुर, कुचेसर, उचागांव, पिसावा, मुरादाबाद, गोहद और जारखी। बल्लभगढ़ व टप्पा राया को अंग्रेजों ने 1858 में जब्त किया तथा हाथरस को 1916 में।
 

(ख) जाट सिक्ख रियासतें: पटियाला, नाभा, जीन्द, (फूलकिया रियासत) और फरीदकोट। इसके अतिरिक्त कैथल, बिलासपुर, अम्बाला, जगाधरी, नोरडा, मुबारिकपुर, कलसिया, भगोवाल, रांगर, खंदा, कोटकपूरा, सिरानवाली, बड़ाला, दयालगढ़/ममदूट तथा कैलाश बाजवा आदि को महाराजा रणजीतसिंह के राज में विलय किया तथा कुछ को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया।
 

अक्सर कहा जाता है कि जाट फूलकिया रियासतों ने सन् 1857 में अंग्रेजों का साथ दिया, जिसका कारण था दिल्ली का बादशाह बहादुरशाह जफर। क्योंकि इस लड़ाई में भारतीयों ने इन्हें नेता चुना था। लेकिन सिख इसलिए नाराज थे कि मुगलों ने सिख गुरुओं को बहुत सताया और शहीद किया, जिस कारण सिखों ने उनका साथ नहीं दिया। लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान की भी ऐसी तीन रियासतें थी - बीकानेर, जयपुर तथा अलवर जिन्होंने अंग्रेजों की पूरी सहायता की। महाराजा सिंधिया और टेहरी में टीकमगढ़ के राजाओं ने अंग्रेजों की फौजों के लिए पूरा राशन-पानी का प्रबन्ध किया और जी भरकर चापलूसी की। यह तो इतिहासकारों व लेखकों पर निर्भर रहा है कि उनकी नीयत क्या थी। ‘हरयाणा की लोक संस्कृति’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ. भारद्वाज अपनी पुस्तक, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा स्वीकृत है, में एक ही हरयाणवी कहावत लिखते हैं “जाट, जमाई, भाणजा, सुनार और रैबारी (ऊँटों के कतारिये) का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।” जबकि हरयाणा में तो ये भी कहावतें प्रचलित हैं “काल बागड़ से तथा बुराई ब्राह्मण से पैदा होती है”, दूसरी “ब्राह्मण भूखा भी बुरा तो धापा भी बुरा” तीसरी “ब्राह्मण खा मरे, तो जाट उठा मरे” अर्थात् ब्राह्मण खाकर मर सकता है और जाट बोझ उठाकर मर सकता है आदि-आदि। विद्वान् लेखक ने अपनी पुस्तक में दूसरी जातियों के सैंकड़ों गोत्रों का वर्णन भी किया है, कुम्हार जाति के भी 618 गोत्र लिखे हैं, लेकिन जाटों के 4800 गोत्रों में से केवल 22 गोत्र ही उनको याद रहे। “हरियाणा का इतिहास” के विद्वान् लेखक डा. के.सी. यादव अपनी पुस्तक में सिक्खों को बार-बार एक जाति लिखते हैं जबकि हम सभी जानते हैं कि सिक्ख जाति नहीं एक धर्म है। उनका लिखने का अभिप्राय सिक्ख जाटों को हिन्दू जाटों से अलग करने का प्रयास है। जबकि सभी जाटों का आपसी खूनी रिश्ता है और सभी सिक्ख जाट और हिन्दू राजाओं में आपसी रिश्तेदारियां रही हैं। बल्लभगढ़ नरेश नाहरसिंह फरीदकोट के राजा की लड़की से ब्याहे थे। मुरसान (उ.प्र.) नरेश महेन्द्र प्रताप जीन्द की राजकुमारी से तथा भरतपुर के नरेश कृष्ण सिंह फरीदकोट के राजा की छोटी बहन से ब्याहे थे। भरतपुर के अन्तिम नरेश बिजेन्द्र सिंह पटियाला की राजकुमारी से ब्याहे थे। पूर्व विदेश मन्त्री नटवरसिंह पटियाला रियासत के वंशज अमरेन्द्र सिंह की बहन से विवाहित हैं आदि-आदि। पंजाब के उग्रवाद तथा मीडिया के दुष्प्रचार ने हमारे आपसी रिश्तों पर कड़ा प्रहार किया है। इस प्रकार की पक्षपाती विचारधारा अनेक पुस्तकों में लिखी मिलेगी।
 

(ग) मुस्लिम जाट रियासत: करनाल मण्ढ़ान गोत्र की मुस्लिम जाट रियासत थी जिसके अन्तिम नवाब लियाकत अली थे जिसको पंत ब्राह्मणों ने अपनी लड़की ब्याही तथा ये पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बने। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चौ. फिरोज खाँ नून गोत्री, चौ. सुजात हुसैन भराइच गोत्री तथा चौ. आरिफ नक्कई सिन्धु गोत्री जो सिक्ख मिसल के सरदार हीरासिंह के वंशज थे। राष्ट्रपति चौ. रफिक तरार - तरार गोत्री जाट थे। चौ. छोटूराम के समय संयुक्त पंजाब में उनकी जमींदारा पार्टी (यूनियनिष्ट) के दोनों ही मुख्यमंत्री (प्रीमियर) सर सिकन्दर हयात खाँ - चीमा गोत्री तथा खिजर हयात खाँ ‘तिवाना’ गोत्री जाट थे। पूर्व में पंजाब पाकिस्तान के मुख्यमंत्री चौ. परवेज इलाही भराईच गोत्री जाट हैं। चौ. छोटूराम के समय संयुक्त पंजाब के अन्तिम प्रीमियर चौ. खिजर हयात खां तिवाना के पोते ने हमें बतलाया कि वहां पाकिस्तान में जाट मुसलमान रिश्ते के समय आज भी अपने मां व बाप का गोत्र छोड़ते हैं। उन्होंने हमें पाकिस्तान में आने का न्यौता दिया कि पाकिस्तान में आकर उन जाटों की लाइब्रेरियां और उनके संगठन देखें। चौ. उमर रसूल करांची (पाकिस्तान) ने बतलाया कि पाकिस्तान का मुस्लिम जाट चौ. छोटूराम का आज भी उतना ही भक्त है जितना सन् 1945 से पहले था। उनके घरों में सरदार भगतसिंह, चौधरी छोटूराम के चित्र तथा डा. बी. एस. दहिया की पुस्तक The Jat Ancient Rulers के उर्दू अनुवाद का मिलना आम बात है। जबकि हमारे यहां जाटों के घरों में या तो किसी बाबा का चित्र मिलेगा जिसका परिवार ने नाम दान दे रखा है या किसी वर्तमान राजनेता के साथ चित्र या किन्हीं देवताओं का चित्र मिलेंगे। यदिआज कोई नेता किसी जाट के घर में आकर चाय या नाश्ता आदि ले लेता है तो उस घर वाले अपने को धन्य समझने लग जाते हैं। यही आज के हमारे जाट की पहचान रह गई है।
(पुस्तक - सिख इतिहास, जाट इतिहास)
जय जाट
जय यौद्धेय

मनुष्य के मरने के बाद उसकी आत्मा के लिए पितृ भोज रखा जाता है|

अब देखिये:

ब्राह्मण का बाप ब्राह्मण ......
बनिया का बाप बनिया ......
राजपूत का बाप राजपूत ......
चमार का बाप चमार ......
धानक का बाप धानक ......
नाई का बाप नाई ......
जाट का बाप जाट ......
तेली का बाप तेली ......

यानी सभी अलग-अलग जाति के! तो फिर मरने के बाद सबका बाप कौवा कैसे?

किसी का बाप हंस होना चाहिए, किसी का बगुला होना चाहिए, किसी का मोर होना चाहिए, किसी का बत्तक होना चाहिए, किसी का चील होना चाहिए, किसी का चिड़िया होना चाहिए; नहीं?

जिन्दा रहते हुए मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव और मरने के बाद समानता, ऐसा क्यों? जीते-जी जिसको अछूत कहके दुत्कारते रहे, मरने के बाद उसका भी बाप कौवा ही बना दिया?

पाखंड की माया की इस काया का है किसी अंधभक्त के पास जवाब?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 14 December 2015

शंकराचार्य बाबा, अब आ गए कम से कम मेरी पकड़ में तो जरूर आ गए!

घुन्नेपन की भी हद होती है बाबा, मोदी से बुद्ध का योगदान पूछने से पहले, खुद तो बताओ कि अगर आपके अनुसार बुद्ध का भारत में कोई योगदान ही नहीं है तो क्यों बुद्ध को आप जैसे ही विद्वानों ने हिन्दू धर्म के ग्रन्थ-पुराण-शास्त्रों में विष्णु का नौवां अवतार लिखा, बताया और गाया हुआ है?

और रही योगदान की बात तो मोदी से ना पूछो बल्कि राजा पुष्यमित्र सुंग, राजा शशांक, राजा चच और चच के पुत्र राजा दाहिर के कारनामे, खैर आपको यह तो कैसे कहूँ कि आपने पढ़े नहीं होंगे या आप जानते नहीं होंगे, फिर भी इतना जरूर कहूँगा कि एक बार उनको रिवाइज कर लीजिये| अपने आप पता लग जाएगा आपको कि बुद्ध का तो भारत में इतना ज्यादा योगदान बढ़ गया था कि इन चारों राजाओं को ईसा पूर्व पहली सदी से ले और ईसा बाद सातवीं तक भारत के तमाम बुद्धिष्टों को समाधि में लीन होते हुए भी आततायी राक्षसों की भांति काट-काट के फेंकना पड़ा था और हरयाणा जैसी धरती पर तो इतना कोहराम मचाया था कि तब की चली कहावतें "मार दिया मठ", "हो गया मठ", कर दिया मठ" आज तलक भी सामान्य जनमानस में चलती हैं| वो तो जब बुद्धों को लगा कि अब तो अंत आ चुका और यह रुकने वाले नहीं, तब जा कर खड़े हुए थे बचे हुए बुद्ध और तब इन राजाओं का सामना करके इन पर लगाम लगाई थी|

वैसे तो आपके पास पहले से ही अथाह साहित्य और इतिहास का भंडार रखा होगा, फिर भी उदाहरण के तौर पर डॉक्टर के.सी. यादव की पुस्तक "हरयाणा का इतिहास" पढ़ लीजियेगा| और इस पुस्तक में वो अद्ध्याय जरूर पढ़ना जिसमें मात्र 9000 जाटों ने मात्र 1500 जाट शहीद करते हुए इन आतताइयों की एक लाख सेना को काटा था और तब जाकर इनका राक्षसी नरसंहार थमा था|

खैर, यह सब आप भी जानते हैं कि मोदी के बहाने आप सोशल मीडिया पर तथाकथित राष्ट्रभक्तों में मोदी द्वारा लंदन में बुद्ध और गांधी का नाम लेने की फैली बेचैनी को शांत करना चाहते हो, वर्ना लंदन तो क्या मोदी ने तो जापान के पीएम का वेलकम भी अभी "वेलकम टू लैंड ऑफ़ बुद्धा" कह के ही किया है|

मतलब सबको अंधभक्त समझे हो क्या आप, कि सुविधानुसार बुद्ध को हिन्दू धर्म का नौवां अवतार भी कह लो, बता लो, ठहरा लो; और फिर खुद के ही ठहराए गए उन अवतार के योगदान पर प्रश्न भी खुद ही खड़े करने लग जाओ तो कोई पकड़ेगा नहीं?

मुझे कोई ताज्जुब नहीं कि क्यों मैं आप जैसे लोगों के समूह से लेशमात्र भी प्रभावित नहीं होता| कारण साफ़ है जब आप अपने खुद के ही ठहराए अवतार पर ही सवाल खड़े कर सकते हो तो मैं आपसे जुड़ा तो मुझे क्या दे पाओगे, भरोसा, विश्वास, शक्ति, सम्मान; नहीं जब आपने बुद्ध को ही नहीं बख्शा तो मेरी क्या हस्ती समझेंगे आप|

माफ़ करना बाबा, एक व्यक्ति के तौर पर आपका लाख सम्मान कर दूँ , परन्तु तर्क, स्थिरता और नैतिकता तो खो दी आपने आज ही; अपने ही भूतकाल के शंकराचार्यों द्वारा "हिन्दू धर्म के नौवे अवतार ठहराए गए" बुद्ध के योगदान पर सवाल खड़ा करके|

वाह, आप तो ओवर स्मार्टनेस की मर्यादा भी लांघ गए, पर पकडे गए बाबा| हो सके और अगर आप तक यह लेख पहुंचे तो मेरे सवाल का जवाब जरूर दीजियेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


 

अपना यह क्रेडिट और ख़ूबसूरती हमें याद रखना और इनको याद दिलवाए रखना होगा, वर्ना हम खुद को भुला-बिसरा बैठेंगे।

आगरा से चंडीगढ़ वाया दिल्ली, देश की सबसे बड़ी डेवलप्ड बेल्ट है, पता है क्यों? क्योंकि इसके दोनों तरफ धर्मवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद के मायने से सबसे सहनशील हरयाणवी मूल के लोग बसते हैं। खाप-सभ्यता के तहत सामाजिक जीवन चलता आया है। किसान और मजदूर में नौकर मालिक नहीं अपितु सीरी-साझी का रिश्ता रहा है। यहां के किसान-मजदूर ने खून-पसीने की मेहनत से इस बेल्ट के दोनों ओर की धरती को समतल बनाया है, जो कि हर उद्योगपति की पहली मूल जरूरत होती है।

हरयाणवियो, विस्थापित जातियों, मंडी और फंडी के लोग आपको इसका क्रेडिट नहीं देंगे, क्योंकि वो खुद की पीठ थपथपाना ज्यादा जरूरी समझते हैं; इसलिए आप भी अपनी पीठ थपथपाना सीख लो और कहो कि हाँ बिलकुल यह हम मूल हर्याणवियों की इन ऊपर बताई क्वालिटीज की वजह से है। अपना यह क्रेडिट और ख़ूबसूरती हमें याद रखना और इनको याद दिलवाए रखना होगा, वर्ना हम खुद को भुला-बिसरा बैठेंगे।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

लोगों को एक मात्र हेल्थकेयर का सही और वाजिब सिस्टम इंस्टॉल करके देने मात्र में ही।

फ्रांस और अमेरिका जैसा वर्ल्ड क्लास हेल्थकेयर सिस्टम भारत में अगर लाना है तो हमें पहले उन बाबाओं-तांत्रिकों-पाखंडियों-हाथ-कुंडली देखने वाले जो आपकी कुंडली देख के, गृह दिशाएँ देख के, जादू-टोना करके, तंत्र-मंत्र करके, झाड़-फूंक करके, आपके बच्चों को कुछ खिला-पिला के, या दुश्मन पड़ोसी के घर के आगे, चौखट में या आँगन में मंत्र फूंकी हुई कील आदि ठुकवा के हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ करके कभी ऐसे इलाजों के नाम पर तो कभी दान-दक्षिणा के नाम पर गोरख धंधा करते हैं, उनको बंद करवाना होगा।

और यह इतना आसान काम भी नहीं, क्योंकि इनके साथ ऐसे व्यापारियों का भी नेक्सस है जो इन बाबाओं-तांत्रिकों-पाखंडियों-हाथ-कुंडली देखने वालों द्वारा बताये हुए सामान को बेचते हैं। हमारे देश का कड़वा और भयावह कर देने वाला सच यही है कि हम एक ऐसे हेल्थकेयर सिस्टम से घिरे हुए हैं जो डर और लालसा दिखा के या दूसरे से आपके द्वेष/ईर्ष्या की कमजोरी का लाभ उठाकर चलाया जाता है ना कि इलाज की गारंटी अथवा निर्धारित उम्मीद जगा के।

और यही वो गहरी और गूढी जम चुकी काई है, जिसको उखाड़ने में भारत को शायद एक फ़्रांसिसी क्रांति लगे; लोगों को एक मात्र हेल्थकेयर का सही और वाजिब सिस्टम इंस्टॉल करके देने मात्र में ही।

जय यौद्धेय! - फूल कुमार

Thomas Piketty, to India’s Elite: ‘Learn From History’

Thomas Piketty, the world's renonwed French economist says to India’s Elite: ‘Learn From History’

Before the world wars, he said, “the French elite used to say the same things that the Indian elite now say, that inequality would be reduced with rising development.” But after the wars, he said, the French began to see that direct investment in welfare was the way forward.

सर, मैं भी मेरे मित्रों की सूची में जो अंधभक्त बने हुए हैं उनको यही कहता रहता हूँ कि आप   इतिहास से सीख के आगे नहीं बढ़ रहे, 'वही ढाक के तीन पात' वाली परिपाटी पर चल रहे हैं! थैंक्स मिस्टर पिकेटी कि मेरे जैसे साधारण से चिंतक के विचारों की झलक मुझे आपके विचारों में देखने को मिली। एंड यस यू आर राइट India’s inadequate investments in education and health are holding the nation back. Thanks for asserting my way of thinking in right futurisitc direction.

Phool Kumar

Source: http://www.nytimes.com/2015/12/10/world/asia/thomas-piketty-inequality-india-mumbai.html?_r=0

Friday, 11 December 2015

मंडी-फंडी के मुंह से किसान-दलित-पिछड़े के हक का निवाला निकालने का रिवाज रखते आये हैं जाट, इसलिए "जाट देवता" कहलाये हैं जाट!

राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य, वीके सिंह और राव इंद्रजीत, अगर आपमें से कोई सा भी नीचे लिखे का छटांक भर भी कर जाओ तो हरयाणा का अगला सीएम हेतु आपका प्रचार करूँ|

एक सर छोटूराम ने जब दलित-पिछड़ा-किसान की राजनीति करी थी तो उत्तरी भारत के किसान-जमींदार की इतनी हैसियत बना दी थी कि बनिए तक किसान-जमींदार से ब्याज पे पैसा लेते थे, और हरयाणा में तो आज तक भी लेते हैं| उनके लाये कानूनों के बाद उत्तरी भारत में कोई दलित से बेगार नहीं करवा सकता था|

लेकिन अब कुदरत और राजनीति दोनों ने मौका और ताकत नॉन-जाट किसानी जातियों को सुपुर्द करी है| तो अब देखते हैं राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य गुर्जर, वीके सिंह राजपूत और राव इंद्रजीत यादव जैसे किसान जातियों से आने वाले नेता दलित-पिछड़ा-किसान की हैसियत में कितना इजाफा करवा पाएंगे|

सर छोटूराम जैसा ही किस्सा रहा सरदार प्रताप सिंह कैरों का, चौधरी चरण सिंह का, ताऊ देवीलाल का, नत्थूराम मिर्धा का, बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का और इनके जितना न सही परन्तु फिर भी अजित सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी जाते-जाते एक स्ट्रांग लैण्डबिल बनवा के दलित-पिछड़ा-किसान को मंडी-फंडी की क्रूर नीतियों से इतना तो सुरक्षित कर दिया कि कोई किसान की मर्जी के बिना और मनमानी कीमत पर उसकी जमीन नहीं हड़प सकता| और इस लैण्डबिल की अहमियत और हैसियत इसी बात से समझी जा सकती है कि बीजेपी ने आते ही एक के बाद एक चार आर्डिनेंस पेश किये, इसको बदलने के लिए| शुक्र है भगवान का कि कामयाब नहीं हो सकी| परन्तु हुड्डा और अजित सिंह पर कई आरोप भी लगते हैं, फिर भी इनका यह कार्य किसान-जमींदार के लिए किसी वरदान से काम नहीं कहा जायेगा|

हरयाणा के ब्राह्मण में भी यह कैपेसिटी है कि वो किसान का नेता बन सकता है परन्तु हरयाणा का ब्राह्मण कभी बनारस तो कभी नागपुर वाले ब्राह्मणों की नीतियों/बातों में पड़ के इस बुलंदी को छूने से दूर रह जाता है|

अगर राजकुमार सैनी, रोशनलाल गुर्जर, वीके सिंह राजपूत और राव इंद्रजीत यादव में से कोई सा भी इनकी सरकार से इन ऊपर गिनाये जाटों के ऐवज का एक भी दलित-पिछड़ा-किसान हितैषी काम करवा देवें तो इनको हरयाणा का अगला सीएम बनने हेतु इनका प्रचार करूँ| वैसे बीजेपी में बैठे जाट नेताओं से तो कोई उम्मीद करना ही बेमानी हो चुका है| इन्होनें तो लोगों के उस भ्रम को भी तोड़ दिया कि चलो रे बीजेपी में हैं तो क्या हुआ आखिर हैं तो जाट, दलित-पिछड़ा-किसान के लिए कुछ तो कर मरेंगे|

वैसे नॉन-जाट किसान जातियों के नेताओ, या तो कुछ काम करो, वर्ना सैनी और आर्य तो सीधे तौर पर और वीके सिंह और राव इंद्रजीत सिंह परोक्ष तौर पर जो जाट-विरोधी राजनीति करने वाले आप, इतना जरूर समझें कि आप मंडी-फंडी के बहकावे में पड़ जाट का विरोध करने से जाट का तो कोई नुक्सान कर रहे हो या नहीं वो बाद में देखा जायेगा, परन्तु दलित-पिछड़ा-किसान का सीधा-सीधा और बहुत भारी नुकसान जरूर कर रहे हो|

जाट को देवता वैसे ही नहीं कहा गया, मंडी-फंडी के मुंह से किसान-दलित-पिछड़े के हक का निवाला निकालने का रिवाज रखते आये हैं हम, इसलिए देवता कहलाये हैं हम| अब मौका आपके हाथों है, देखें किसान-दलित-पिछड़े के लिए देवता साबित होते हो या राक्षस|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

या तो 'रामायण/महाभारत' झूठी या फिर 'आर्य-भट्ट' झूठा!

शून्य (0) का आविष्कार पाँचवीं सदी में आर्यभट्ट ने किया था, तो फिर त्रेता युग में रावण के दस (10) सर कैसे गिन लिए गए, बिना जीरो (0) के? या द्वापर युग में महाभारत में 100 कौरव कैसे गिन लिए गए? और कुरुक्षेत्र में किसी की 7 अक्षुणी सेना तो किसी की 11 अक्षुणी सेना के जीरो (0) 'आर्य-भट्ट' से पहले कैसे गिन लिए गए?

कह दो कि आर्यभट्ट ने शून्य (0) का आविष्कार नही किया था, नहीं तो हजारों वर्ष पुरानी रामायण, महाभारत झूठी साबित हो ...रही हैं|

एक और ऐसा बिंदु जो मेरे इस स्टैंड को सत्यापित करता है कि रामायण और महाभारत आठवीं सदी के शंकराचार्यों के काल में लिखी गई मीथोलॉजिकल रचनाएँ मात्र हैं|

Sources:

1) http://webspace.ship.edu/msrenault/400%20Presentations/Presentation%203%20Zero.pdf
2) http://www.history.com/news/ask-history/who-invented-the-zero

फूल मलिक