बाबरी मस्जिद क़े गुम्बद क़े ऊपर खड़ा ये आदमी अपने हरियाणा क़े पानीपत का रहने वाला राजपूत परिवार से बलबीर सिँह था. बलबीर सिँह ही वो शख्स था जो सबसे पहले बाबरी मस्जिद पे चढ़ा और पहला हथोड़ा चलाया मस्जिद तोड़ने क़े लिए..
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Wednesday, 13 November 2024
गोधरा क़े हिन्दू पोस्टर बॉय अशोक मोची बारे तो वीडियो देखा ही होगा आपने. आज बलबीर को जान लीजिए!
Friday, 8 November 2024
बनवारे
"बनवारे"
Narwal Khap - Sikh, Muslim, Arya together
सोनीपत के कथुरा गांव में हमारी नरवाल खाप का मुख्यालय है। चौधरी भले राम नरवाल जी हमारी खाप के अध्यक्ष हैं। दादा भले राम नरवाल जी ने बड़ी मेहनत से कथूरा गांव में नरवाल भवन बनाया है उसके उदघाटन समारोह में शामिल सिख समाज के नरवाल गोत्र के लोगों का सरोपा पहनाकर सम्मान किया गया। उसी कड़ी में हमारे दादा और खाप के सम्मानित लोगों ने मुझे भी सरोपे से सम्मानित किया।
मेरे इस फोटो को एडिट करके माथे पर तिलक लगाकर मेरे गांव के मेरे चाहने वालों ने लोगों को भ्रमित किया। किसी ने कहा कि आरएसएस ज्वॉइन कर लिया किसी ने कहा कि बीजेपी ज्वॉइन कर ली किसी ने कहा कि धर्म बदल लिया बहुत कुछ कहा गया।
देखने वाली बात ये है कि साथ मे सिख भाई भी सारोपा लिए हुए हैं दूसरी बात किसी के भी माथे पर तिलक नहीं है ना कोई ऐसा प्रोग्राम है जिसमें तिलक लगाने की जरूरत हो। फिर मेरे माथे पर ही तिलक क्यों ?
खैर जो भी हो हम भारत में रहते हैं भारत की संस्कृती का कम या ज्यादा असर होना लाजिमी है। बाकी मेरे अंदर जाट नस्ल का खून है और इस्लाम धर्म में आस्था रखता हूं ये जग जाहिर है। आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं क्या इल्जाम लगाते हैं ये मेरे लिए ज्यादा मायने नहीं रखता। मै अपने ईमान के बारे में फिक्र मंद हूं अल्हम्दु लिल्लाह।
जय हिन्द जय किसान
जय भाई चारा। - Nawab Ali Nawada
Tuesday, 5 November 2024
कनाडा में जो मंदिर वाला मुद्दा उछाला गया है, उस पर कोई अटैक नहीं हुआ है!
कनाडा में जो मंदिर वाला मुद्दा उछाला गया है, उस पर कोई अटैक नहीं हुआ है: सुनने में आया है कि वह एक परी प्लांट मंडी और फंडियों द्वारा हमारे विशेष कर जाट बच्चों के खिलाफ एक रची गई साजिश है अतः हम सर्व खाप पंचायत की तरफ से अपने बच्चों से आग्रह करना चाहेंगे के ऐसे धर्मांध पाखंडी व्यक्तियों से दूर रहे। और आप जिस भी देश में हैं उसे देश के प्रति अपनी वफादारी का सबूत दे किसी बाहरी साजिश का शिकार ना हो आपके माता-पिता ने आप बच्चों को अपना निर्वाह करने के लिए भेजा है। यहां स्वास्थ्य शिक्षा विकास रोजगार सब कुछ समाप्त हो चुका है आपसी संबंध विच्छेद करके भाई किया जा रहा है लोकतंत्र की हत्या देख रहे हैं और उसी को देखते हुए आप अपनी जमीन गिरवी रख के विदेश तक पढ़ाई के लिए, नौकरी के लिए या रोजगार के लिए गए हो तो आप अपनी जिम्मेवारी के प्रति सजग रहे हैं और विशेष कर कनाडा वाले मामले में तो आपने धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हुए अपने कौम के प्रति वफादारी निभाते हुए ऐसी घिनौनी पाखंडवादी हरकतों से दूर रहे और कनाडा के प्रति अपनी वफादारी का फर्ज निभाने की कोशिश करें। वहां आपके जाट सिख छोटे भाई भी बहुत मिलेंगे जो आपकी मदद करने के लिए तत्पर रहेंगे,घबराने की कोई आवश्यकता नहीं लगन और मेहनत से कनाडा देश के प्रति वफादारी निभाते हुए अपने कार्य में लीन रहे।
यह खुद पर विक्टिम कार्ड खेलने की सोच रहे थे; परन्तु फ़ैल हो गया है और जो हरयाणा या जाट शब्द के नारे प्रयोग हुए हैं वह सिर्फ इन दोनों शब्दों की "ब्रांड-वैल्यू" से डराने के लिए प्रयोग हुए हैं; जो कि जाट की आड़ में जाट से मिलती-जुलती जातियों के लड़को से करवाए जा रहे हैं; हाँ एक आध% बताए गए हैं आरएसएस बीजेपी समर्थक जाट भी वहां,परन्तु वह अग्रणी नहीं हैं और ना ही उनके पास इतनी फुरसत|
आपके घर वालों ने जमीनें गिरवी रख के, लोन उठा-उठा के वहां भेजो हो, वहां; यह तथाकथित कोई मनुवादी नहीं आने वाला तुम्हें मुसीबत में पड़ने पर बचाने के लिए और आएगा तो तुम्हारी ही जेबें खाली करवाएगा| सिर्फ लठ तुम्हारे हाथ में फ्री के जरूर पकड़ा देंगे, इसके अन्यथा तुम्हें फाक्का नहीं है| इतने ही तुम इनको प्रिय होते तो यह तुम्हें इंडिया में ही रोजगार दिलवा देते| यहाँ तुम्हारे साथ 35 बनाम 1 करने वाले वहां तुम्हारे कैसे हो जाएंगे? किसान आंदोलन, मणिपुर कांड से ले पहलवान आंदोलन में अपनों का हर्ष देख चुके हो? इसलिए कोई फंडी तुम्हें बहलाने-फुसलाने भी आए तो दूर रहना इनसे; रोजगार करके, घर की गरीबी दूर करने या जिंदगी सेट करने गए हो तो उसी पे ध्यान रखो| धर्म के नाम पे अपने पुरख-आध्यात्म, अपने पूर्वजों के बताए हुए रास्तों को आगे रख के चलो, उसी में मुक्ति है इस पॉइंट की! अन्यथा वही बात, आज भी तुम्हारे माँ-बाप कहीं ना कहीं DAP की लाइन में खड़े होंगे; कहो जरा इनको कि उनको खाद ही टाइम पे व् सहूलियत से दिलवा देवें ये; दो मिनट में कितने अपने हैं सब समझ आ जाएगा! यह धर्मांधता आपके भविष्य के लिए कुछ नहीं काम आने वाली।
11 दिसंबर 1995 का सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है हिंदू कोई धर्म नहीं यह एक जीवन पद्धति है हिंदू शब्द एक गाली गलौच का विदेशी शब्द है
अतः हमारी प्रार्थना है कि इन सब धर्मवादी भावनाओं में न भर के ना ही इनके बहकावे आएं और इन चीजों से दूर रहकर जिस देश में भी हो उस देश के प्रति वफादारी से अपना कार्य करते रहे और अपना जीवन निर्वाह करें।
डॉ ओमप्रकाश धनखड़ प्रधान धनखड़ खाप, कोऑर्डिनेटर सर्व खाप पंचायत।
सुमन हुड्डा प्रदेश अध्यक्ष सर्वखाप महिला विंग हरियाणा, तथा प्रदेश अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन (चडूनी)
अतर सिंह काध्यान प्रवक्ता काध्यान खाप एवं अध्यक्ष व्यापार मंडल बेरी झज्जर।
इस संदेश को अपने तमाम ग्रुप्स व् सर्किल में फैला दीजिए!
Friday, 1 November 2024
पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे रक्षाबंधन बिलकुल भी नही मनता था ,लेकिन भाईदूज पर भाई जरूर जाते थे!
पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे रक्षाबंधन बिलकुल भी नही मनता था ,लेकिन भाईदूज पर भाई जरूर जाते थे । उस समय चिट्ठी और फोन जैसी सुविधा तो थी नही ,तो त्योहार ही एक ऐसा समय होता था ,जब बहन भाई का इंतजार करती थी । बरसात के मौसम के बाद इन दिनो गेंहू की बुआई हो जाती थी ,तो किसान को भी समय मिल जाता था , तब खील बताशे लेकर भाई बहन के घर जाते थे । अगर भाई किसी कारणवश नही जा पाये तो बहन भाई के लिए एक गोला उठाकर रख लेती थी ,क्योंकि गोला लम्बे समय तक खराब नही होता ।जब भी बहन मायके जाती थी तो यही गोला भाई के लिए ले जाती थी । हमारे बागपत ,शामली ,मुजफ्फरनगर, मेरठ मे भाईदूज पुराने समय से मनाया जाता रहा है । जबकि हापुड गाजियाबाद, बुलंदशहर अलीगढ इस तरफ भाईदूज का चलन पहले नही था ।ये लोग रक्षाबंधन को ज्यादा महत्व देते हैं । पिछले साल किसी ने लिखा था कि गोबरधन हमारा त्योहार नही है , मै अपने यहां देखती थी गोबरधन पर बडो को कहते सुना है । भाई आज तो म्हारा त्योहार (तुहार ) है । गोवर्धन पर सारे खेती के औजार ,बैल ,दूध ,दही से संबंधित सामान हांडी ,रई,बिलौनी ,हल पात्था गन्ने सब कुछ रखा जाता था । और प्रसाद स्वरूप सबके यहां गन्ना ही बंटता था । गोवर्धन से पहले बाबा किसी को भी गन्ना नही चूसने देते थे । हर क्षेत्र मे त्योहार मनाने का कारण अलग अलग परिस्थितियों पर निर्भर करता था ।
Anita Chaudhary Meerut
Thursday, 31 October 2024
उज्जड़ कुआ बाट देखरया नेज्जू की पनिहारी की।
उज्जड़ कुआ बाट देखरया नेज्जू की पनिहारी की।
Monday, 28 October 2024
डेह जाट - आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं!
इस बार मेवात क्षेत्र से जो तीन मुस्लिम विधायक बने हैं उनमें से दो आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं, पर इस ओर शायद ही किसी का ध्यान गया हो | इसका कारण है धर्म। नस्ली भाईचारे के बीच धर्म एक बहुत बड़ी दिवार है, जोकि दोनों तरफ से ही खड़ीं की जाती है। अगर कोई अपने को जाट का बेटा कह दे तो धर्मों के ठेकेदार तोहमत लगानी शुरू कर देते हैं, गुरु पीर पैगम्बरों की दुहाई देना शुरू कर देते हैं। लोग अपना कबीला बढ़ाते हैं, परन्तु जाट एक ऐसी जाति है जो अपना ही कबीला घटाने में विश्वास रखती है और इसीलिए देहात में एक आम कहावत है कि “जाटड़ा और काटड़ा (कट्टा) अपने को ही मारते हैं। रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम कहते हैं – ‘जट्स एंड संसार (मगरमच्छ) कबील गालदा‘ , यह हमारी कौम की कमजोरी है। हमारे विरोधी सब अवसरों पर इसका लाभ उठाते हैं।
Wednesday, 23 October 2024
#जाट_के_खिलाफ_पैंतीस_बनाम_एक_क्यों___एक_विश्लेषण...
जिस जाति का आर्थिक प्रभुत्व नहीं होता, उसके खिलाफ कभी भी लामबंदी नहीं होती, चाहे उसकी संख्या कितनी भी क्यूं न हो। एक जाट ही नहीं राजपूतों के खिलाफ भी ध्रुवीकरण होता है, आप बाड़मेर, जैसलमेर, शिव ऐसी अनेक जगह देखेंगे जहां राजपूतों के खिलाफ ध्रुवीकरण होता है, हरियाणा में अटेली विधानसभा क्षेत्र देखिए, वहां यादवों के खिलाफ तगड़ा ध्रुवीकरण हुआ, हरियाणा के नांगल चौधरी में यादवों के खिलाफ तगड़ा ध्रुवीकरण हुआ और यह तो यदि कांग्रेस बादशाहपुर में किसी ब्राह्मण व रेवाड़ी में किसी बणिए को टिकट दे दे तो वहां भी तगड़ा ध्रुवीकरण हो जाए... तो जो भी जाति जिसके पास संसाधन होंगे, उसके खिलाफ ध्रुवीकरण होगा ही, यह अकेले जाटों की समस्या नहीं...
अगर हम मीणों की बात करें, तो उनके खिलाफ मीणा बहुल इलाकों में भी वैसा ध्रुवीकरण देखने को नहीं मिलता जैसा जाट इलाकों में जाटों के खिलाफ... क्यों? इसका कारण है, मीणा आपको नौकरियों में तो दिखेंगे, लेकिन अभी इनका बाजारों, दुकानों पर वैसा कब्जा नहीं है, जैसा जाटों का है। दौसा, सिकंदरा जैसे इलाकों में भी मीणाओं की कोई तगड़ी दुकानें नहीं मिलेंगी आपको, बिजनेस में कोई खास भागीदारी नहीं मिलेगी आपको मीणा लोगों की, यहां तक कि ये प्रोपर्टी डीलर भी नहीं हैं, प्रोपर्टी भी ये खरीद जरूर लेते हैं इनके अफसर, कर्मचारी वगैरह ऑनलाइन कहीं किसी कॉलोनी में कोई प्लॉट वगैरह, वो एक अलग बात है... लेकिन ये जाटों की तरह कोई कॉलोनाइजर हैं या इनका रियल एस्टेट का कोई बिजनेस है, ऐसा कोई लफड़ा नहीं है... जबकि जाट कॉलोनाइजर आपको हर छोटे-बड़े शहर में नजर आ जाएंगे, डीएलएफ, इंडिया बुल्स जैसी जाटों की रियल एस्टेट कंपनियां शेयर बाजार तक में लिस्टेड हैं... या कि दौसा से चलने वाली एसी कोच मीणा लोग चलाते हैं, ऐसा भी कुछ नहीं है जबकि इससे इतर जाट लोग ट्रांसपोर्ट के मामले में भी खासी दखल रखते हैं... एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स की बात करें तो आपको नीट-आईआईटी में बणियों के प्रभुत्व वाली एलन कोचिंग के पैरलल जाटों का आकाश एजुकेशनल इंस्टीट्यूट हर शहर में दिखेगा..., सीएलसी, गुरूकृपा जैसे छोटे-मोटे तो कई कोचिंग बन गए जाटों के... तो मीणा लोगों के खिलाफ ध्रुवीकरण इसलिए नहीं होता कि इनका सारा फोकस नौकरियों पर है...
अब जाटों के साथ समस्या क्या है कि वो फर्नीचर की दुकान भी खोल लेगा, नाई का सैलून भी खोल लेगा, माली वाला काम भी कर लेगा (नर्सरी या सब्जी की दुकान), मिठाई की दुकान भी खोल लेगा,... तो मूल कारण यह है जाटों के विरोध का, जो भी जाति सामाजिक तौर पर, आर्थिक तौर पर वर्चस्वशाली होगी, उसका विरोध होगा ही... अब इससे इतर राजपूत आपको कहीं नहीं मिलेगा जो मिठाई की दुकान खोल लेगा या सब्जी की दुकान खोल लेगा तो राजपुरोहित से या माली से राजपूत का टकराव क्यों होगा? तो ये जो जाटों की समस्याएं हैं, वे आर्थिक वर्चस्व की समस्याएं हैं और ये रहेंगी ही, इस विरोध का अब कोई उपाय नहीं है, इसको आपको अब झेलना ही पड़ेगा, स्वीकार करना ही पड़ेगा...
मतलब बात आ गई दूसरों के अङने वाली, जैसे बणिए हैं, बाजार में हैं, अपना व्यापार कर रहे हैं, उनकी पुरानी दुकानें हैं... दूसरों के अङना कब होता है? जब आप उनके क्षेत्र में जाकर उनकी संपत्ति खरीदो... अब बणिए हैं तो वो अपनी जगह हैं, ऐसे थोड़े ही कर रहे हैं कि वो गांवों में आ गए, वहां जाटों की जमीनें खरीदने लग गये, ट्यूबवेल लगा लिए, ऐसा तो नहीं हुआ न, मतलब जो परंपरागत सामाजिक व्यवस्था है, आर्थिक व्यवस्था है, उसमें असंतुलन जाट पैदा कर रहे हैं, विरोध का मूल कारण यह है... और मुझे नहीं लगता कि इसका कोई इलाज भविष्य में निकलेगा...
इस विरोध से बचने का उपाय तो सिर्फ एक ही है कि या तो जाट भी 5-5 बच्चे पैदा करें, कोई पुचके बेच रहा, कोई बसों में खलासी बन रहा, इस तरह की जेनरेशन पैदा करो या फिर वस्तुस्थिति स्वीकार कर लो...
बाकी जाट बोलने में अक्खड़ है, उस वजह से विरोध है, ऐसा कुछ नहीं है, वो चीजें तो बहुत पीछे छूट चुकी...
तब तक आप इस पुराणे इतिहास को महशुस करी - घेर
ग्रामीण भारत की घर घेर प्रणाली एक मजबूत सामाजिक व्यवस्था का आधार।
हरियाणा के भीतरी इलाकों में घुमने के बाद एक पुरातन व्यवस्था की ओर ध्यान गया जो इस इलाके से लेकर राजस्थान व उत्तरप्रदेश तक प्रचलित है।
रहने के लिए सब जगह जैसे घर होता है यहां घर के अलावा एक घेर भी होता है।
घर पर महिलाओं का अधिपत्य होता है जबकि घेर में पुरुष सत्ता का अधिपत्य होता है।
घेर में उठने बैठने बातें करने और स्वतंत्र रूप से आने जाने की समाजिक सुविधा होती है।
घेर और घर के बीच में एक लॉजिस्टिक सप्लाई लाइन होती है जिसे अक्सर युवा मैनेज करते हैं। चाय खाना जैसे जिसकी जरूरत होती है युवा दौड़ लगाते रहते हैं।
जिन जातियों समाजों ने घर घेर की व्यवस्था बनाई हुई है वो समाजिक रूप से ज्यादा समृद्ध है। उनकी सामाजिक बॉन्डिंग बाजारवाद के इस युग में भी बची हुई है कायम है और मजबूत है।
घर में आने जाने से बाहरी लोग हमेशा परहेज ही करते हैं क्योंकि हमारी संस्कृति ही ऐसी है इसीलिए सब लोग निर्बाध रूप से आ जा सके तो घर के एक्सटेंडेड वर्जन घेर का आविष्कार किया गया था।
कुछ दिन पहले मे जीद जिले म एक मित्र के घेर में रुके था जहां उनके पिता जी और चाचा जी व उसके मित्रों से भी मुलाकात हुई थी।
चाय के दौर चलते रहे और हंसी मजाक ठठा भी खूब हुआ।
घेर में आम तौर पर पशु भी होते हैं जहां उनका बेहतर ध्यान रखा जाता है।
मित्र के पिता जी ने आज के मॉडर्न दौर में घेर की प्रासंगिकता पर बात हुई तो उन्होंने बताया कि फ्लैट सिस्टम या एकल घर प्रणाली में जहां घेर नहीं होता है वहां महिलाओं और पुरुषों को एक ही छत के नीचे सारा दिन रहना पड़ता है तो वे ज्यादा खटपट और खिंचाव को महसूस करते हैं।
हम सारा दिन घेर में रहते हैं वहीं से अपने सारे प्रोफेशनल और सोशल अफेयर्स मैनेज करते हैं जिससे घर पर अनावश्यक साईकोलॉजिकल दबाव नहीं बनता है और भाईचारा भी बेहतर मजबूत होता है।
घेर का कंट्रोल सीनियर बुजुर्गों के हाथ में रहता है छोटे बालकों की वहां ट्रेनिंग चलती रहती है। घेर के सभी काम बालकों को सीनियर्स की देख रेख में करने होते हैं
घेर के बिना घर मुझे अधूरे जैसा लगने लगा है।
आज से अगले 10 दिन तक छत्तीसगढ मे कुछ भाइयो से उनके फार्म व घेर पर मुलाकात करने की कोशिश करुगा
सब भाइयो को नमस्कार राम राम 🙏 सतीश दलाल 🙏
Tuesday, 22 October 2024
हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी!
जब हम छोटे थे तो हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी। उनमें से एक तो पार्ट टाइम थी। यानी चूल्हे पर सुबह- शाम खाना और रोटियां बनती थी। दूसरी फैक्ट्री होती थी, जिसमें गर्म होने के लिए दूध रखते थे, वह लगभग 8 घण्टे धुंआ छोड़ती थी। तीसरी फैक्ट्री थी, जिस पर पशुओं के लिए बिनोले पकते थे। और चौथी फैक्ट्री थी, जिसमें सभी के लिए पानी गर्म होता था। इसके इलावा सर्दियों में गर्मी के लिए खूब भूसा जलाया जाता था। इसके इलावा पशुओं के मच्छरों से बचाव के लिए भी धुआं करते थे। इसके इलावा धान की पैराली भी जलती थी। इसके इलावा, खास कर आज से पंद्रह दिन पहले, कोल्हू भी चलने लगते थे, और वहाँ दिन रात गुड़ पकता था। औऱ ऐसी फैक्टरियाँ घर- घर होती थी। यानी एक गांव में हजारों फैक्टरियाँ ,और अकेले हरियाणा में लगभग 6600 गांव और शायद 9000 के करीब पंजाब में।
लेवा पटेल, कड़वा पटेल!
गुजरात के कड़वा पटेल और लेवा पटेलो से सम्बंधित Pratap Fauzdar जी की एक पोस्ट पढ़ी। फ़ौजदार जी की पोस्ट से मुझे राजकोट के विठलभाई जी हिरपरा जी की मुलाक़ात याद आ गई। विठलभाई हिरपरा जी लेवा पटेल हैं और गुजरात शिक्षा विभाग से बीओ या डीओ की पोस्ट से रिटायर हुए हैं।
2011-12 की बात है, मैं गुड़गाँव के सेक्टर 56 में केंद्रीय विहार हाउसिंग सॉसायटी के सामने की गली में रहता था। उन दिनों विठलभाई पटेल जी अपने बेटे Ketan Hirpara से मिलने गुड़गाँव आए हुए थे। केतनभाई केंद्रीय विहार में रहते थे। केंद्रीय विहार सॉसायटी के मुख्य गेट के सामने एक मिश्रा चाय वाला था। विठल जी उन मिश्रा चायवाले के पास चाय पीने गए और मिश्रा से पूछा कि सुना है हरयाणा में जाट बहुत हैं, मुझे किसी जाट से मिलवाओ। मिश्रा ने कहा, आप गुजरात के पटेल हैं, आपको जाट से मिलकर क्या करना है। विठल जी ने कहा, हम भी जाट ही हैं। इन दोनों की ये वार्तालाप चल ही रही थी कि वहाँ समर कादियान भाई चाय पीने पहुँच गया। मिश्रा ने दोनों की मुलाक़ात करवाई। समर भाई विठल जी को मेरे पास ले आए, बताया कि विठल जी गुजरात से हैं और कह रहें हैं कि ये भी जाट हैं, जाटों से मुलाक़ात की इच्छा है। तब विठल जी से लेवा पटेलों के गोत्रों, रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से बात हुई। लाहौर से आए थे तो नाम लेवा पड़ा। तब मुझे पहली बार पता चला था कि गुजरात में पटेल दो बड़े धड़े हैं, कड़वा पटेल और लेवा पटेल, कड़वा पटेल ख़ुद को गुर्जर शाखा का मानते हैं तो लेवा पटेल जाट। विठल जी के ससुर सांसद थे और वो चौधरी चरण सिंह और चौधरी देवी लाल के काफ़ी क़रीबी थे। विठल जी ने बताया कि जब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने तब चौधरी साहब ने कहा कि हम एक हैं, और इसी बात पर गुजरात के पटेल सांसदों ने श्री मोररजीभाई देसाई के साथ की बजाए चौधरी चरण सिंह का साथ दिया था। उसके बाद जब चौधरी देवी लाल केंद्र में गए तब चौधरी देवी लाल का साथ दिया।
फोटो 1990 की है। फोटो में विठलभाई पटेल जी के छोटे भाई Rameshbhai Bachubhai Hirpara चौधरी देवी लाल जी को फूलों की माला पहना रहें हैं।
ख़ैर, इतना पक्का है कि कड़वा पटेल और लेवा पटेल दोनों किसान क़ौमें हैं और इनका सम्बंध जाट व गुर्जरों से जरूर हैं। वक़्त के साथ धीरे धीरे अलग होते गए।
Monday, 21 October 2024
आज जो प्लेन जमीन आपको दिखाई देती हैं।
जो काफी लोगों को तकलीफ़ भी देती हैं।
Sunday, 20 October 2024
Jat and Festival Economy!
जब हम भाई बहन टीवी में किसी व्रत या त्योहार का सेलिब्रेशन देख उत्साहित होते तो हमारी माँ डाँट लगाते हुए कहतीं, “ये सब बाहमन बनिया के काम हैं.”