कन्ना-खच्चर-कुल्लर-कतूर = खेल अब खुलता जाएगा:
इतना ही कहूंगा कि सर छोटूराम के जमाने में जो था, इनका वही दर्शन आज है; घोर मनुवादी मानसिकता, उसमें भी यह सभी के सभी शुद्रमति केटेगरी से ज्यादा कुछ सौदा नहीं! बस 10-11 साल 35 बनाम 1 वाले मसले में 1 की बुराई करके ही भले बन पाए हैं ये! अब जब असली आमना-सामना हुआ है इनकी मानसिकता में छिपी वर्णवादिता का तो इनके साथ खुद को तथाकथित 35 में काउंट करने वाले दलित-ओबीसी भाई भी सकते में हैं| हाँ, हैं कुछ 1 वाले भी, परन्तु आइडियोलॉजिकली नहीं, अपने बच्चों की नौकरियों व् कारोबारों के लालच में; वरना जो समाज तीसरी बार भी लगातार विधानसभा में 78% तक इनके विरुद्ध वोट किया हो तो वह तो इनसे स्याणा ही गिना होना चाहिए!
चोखा, ये तथाकथित एक वाले सीएम थे तब इतना repression तो कोई-से ने भी नहीं किया था कि IPS ADGP स्तर वालों को आत्महत्याएं करनी पड़ी हों! अभी भी अक्ल को हाथ मारो; या स्थिति जब वही आर्थिक-तंगी वाली हो जाएगी, जब यह तुम्हें इतना आर्थिक तौर लूटते हुए जमीन-जायदाद तक हाथ भरते थे तो सर छोटूराम ने आ के इनसे पिंड छुड़वाए थे; तब अक्ल को हाथ मारोगे?
कुछ सौदा ना है इनका; पैसा तो वेश्या व् भड़वे के पास भी होता है; इतना भर बना लेने से रुतबा-साख-इज्जतें समाज में कायम रहती तो यह दोनों सबसे ज्यादा इज्जतदार होते; वही हालत है इन कन्ना-खच्चर-कुल्लर-कतूरों की! या फिर सर छोटूराम को मानना व् अपना कहना छोड़ दो!
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