Wednesday, 27 March 2024

खेड़े के गौत की सूचिता - एक micro-management है पुरखों का; हर समूह को अपने ध्वज का गणराज्य होने का गौरव देने का|

 यानि निडाना खेड़ा है मलिक गौत के जाट का, या गर्ग गौत के बनिया का, या "रंगा" गौत के रविदासी का या "भारद्वाज गौत " के बाह्मण का तो यह इनको इस बात का गौरव लेने-देने के लिए है कि कहीं तुम्हारा खुद का भी नाम है| और यही वजह है कि खापलैंड पे लगभग हर गौत का खेड़ा मिलता ही मिलता है| 


micro-management इसलिए कि आज वाले जहाँ जातीय-समरसता तक रखने में लटोपीन हुए जाते हैं, म्हारे बूढ़े उससे भी एक कदम भीतर यानि जाति के भीतर गौत तक कैसे शांत रख के बसाने हैं; उस तक का सिस्टम बांधे हुए थे| इसीलिए गौत इतना संजीदा विषय रहता है हमारे लिए| आखिर कौन नहीं चाहेगा कि ऐसा सिस्टम हो जिसमें उसको जितना सम्भव हो उतने micro स्तर तक बराबर के मान-सम्मान से देखा-बरता जाए? 


क्या ही मुकाबला करेंगे यह आज तथाकथित एकता-बराबरी लाने के नाम पे जाति तक मिटा देने का राग अलापने वाले| ये म्हारे पुरखे इनके फूफे, जाति तो छोडो, गौत तक की micro-management करते थे व् ख़ुशी-ख़ुशी रहते थे, अपने-अपने खेड़ों में, अपने-अपने गौत के साथ


Jai Yaudheya! - Phool Malik

Tuesday, 26 March 2024

दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार भूमि अधिनियम 2010 पर मुहर लगाने के लिए हाईकोर्ट का आभार!

 प्रेस विज्ञप्ति


सिर्फ चेहरे बदलने में लगी बीजेपी, सरकार बदलने के मिशन पर चल रही कांग्रेस- हुड्डा


दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार भूमि अधिनियम 2010 पर मुहर लगाने के लिए हाईकोर्ट का आभार- हुड्डा 

2010 के कानून से ब्राह्मण, ओबीसी व एससी समाज को मिला जमीनों का मालिकाना हक- हुड्डा 


रोहतक, 26 मार्चः बीजेपी ने पहले अपने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला और अब लोकसभा के पांच सांसदों का चेहरा बदल डाला। यानी भाजपा सिर्फ चेहरे बदलने में लगी हुई है जबकि, कांग्रेस और हरियाणा की जनता सरकार बदलने के मिशन पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही है। ये कहना है पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का। हुड्डा रोहतक में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे।


इस मौके पर उन्होंने माननीय उच्च न्यायालय का आभार व्यक्त किया और हरियाणा के ब्राह्मण, ओबीसी व एससी समाज को बधाई दी। क्योंकि, उच्च न्यायालय ने कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए भूमि सुधार कानून को मान्यता दी है। हाईकोर्ट ने इसे पूरी तरह संवैधानिक करार देते हुए इसकी सराहना भी की है। 

 

दरअसल, बरसों पहले हरियाणा के अलग-अलग गांवों में अन्य स्थान से आकर कई वर्ग बस गए थे। उन वर्गों को पंचायतों व अन्य किसी ने जमीन दान में दी थी। इन वर्गों को दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार कहा जाता है। इनमें ब्राह्मण, पुरोहित, पुजारी, जांगड़ा ब्राह्मण, नाई, प्रजापत, लोहार, वाल्मिकी, धानक, गोस्वामी, स्वामी, बड़बुजा, धोबी, तेली अन्य कारीगर आदि वर्गों के लोग शामिल थे। बरसों से उस जमीन पर रहने, बसने व खेती करने के बावजूद इन वर्गों को जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाया था। इसलिए, ना वो इस जमीन को आगे बेच सकते थे और ना ही किसी तरह का लोन ले सकते थे। इन तमाम वर्गों को मालिकाना हक दिलवाने के लिए कांग्रेस सरकार ने भूमि अधिनियम 2010 लागू किया था। 


लेकिन, 2018 में बीजेपी सरकार ने उस कानून को निरस्त कर दिया। कांग्रेस ने इस मुद्दे को बार-बार विधानसभा में भी उठाया। लेकिन बहुमत के जोर पर बीजेपी ने 2010 के कानून में संशोधन करके लाभार्थियों से जमीन वापिस लेने का कानून पास कर दिया। बीजेपी ने लाभार्थियों से जमीन खाली करवाने की कार्रवाई भी शुरू कर दी। इसके बाद ये पूरा मामला कोर्ट पहुंच गया। 


अब माननीय न्यायालय ने ना सिर्फ हमारी सरकार द्वारा बनाए गए कानून को वैधानिक करार दिया है बल्कि इसकी प्रशंसा भी की है। हुड्डा ने न्यायालय के निर्णय पर खुशी का इजहार किया और प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने पर सर्वसमाज के हित में कार्य करने की प्रतिबद्धता भी जताई। 


पत्रकारों से बातचीत में राजकुमार सैनी को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में हुड्डा ने कहा कि 32 दलों द्वारा दिल्ली में एआईसीसी ऑफिस जाकर इंडिया गठबंधन को बाहर से समर्थन देने की पेशकश की गई है। जहां तक हरियाणा का विषय है, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी या उसके प्रमुख राजकुमार सैनी का कांग्रेस में शामिल होने का सवाल ही नहीं है। क्योंकि, ना तो वो कांग्रेस में शामिल हुए, ना ही कांग्रेस के सदस्य बने। इसलिए किसी गैर-कांग्रेसी नेता के कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ने की बात कोरी अफवाह है। कांग्रेस 36 बिरादरी की पार्टी है और वो कभी जात-पात की राजनीति नहीं करती। कांग्रेस में जात-पात और जातिवादी मानसिकता की कोई जगह नहीं है।


प्रदेश में बढ़ते अपराध पर टिप्पणी करते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि प्रदेश के सामने आज यह सबसे विकराल समस्या है। अपराधी बेखौफ वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और आमजन डर के साये में जी रहा है। ऐसा लगता है कि प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। रेलवे रोड पर दो दुकानों को तोड़े जाने के मसले पर भी हुड्डा ने अधिकारियों को निष्पक्ष रहने की नसीहत देते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि रात को 3 बजे कुछ लोगों ने दुकानों को तोड़ डाला, जो कि पूरी तरह गैर-कानूनी है।

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Saturday, 23 March 2024

NRI जाटों को विदेशों में फंडियों यानि आरएसएस से जुड़ने का फंडियों द्वारा इन जाटों को दिया जाने वाला हास्यास्पद तर्क!

कई NRI जाट साथियों से बातें होती हैं तो बताते हैं कि फंडी यानि आरएसएस वाले हमें आ के कहते हैं कि देखो बेशक हमारे-तुम्हारे लाख मतभेद व् मनभेद हैं परन्तु अंत में तुमको ईसाई हों, सिख हों या मुस्लिम; सभी जोड़ के तो हम से ही देखते हैं? जब दंगे होंगे या कुछ भी उल्टा होगा तो तुम भी उतने ही इनके अटैक पे रहोगे, जितने कि हम| इसलिए बेहतर है मिलके साथ रहा जाए| यही NRI जाट साथी इनके ऐसे तर्कों पे हँसते हुए बताते हैं कि यह इतना सब कहेंगे परन्तु 

 इनके साथ रहने के आपसी give and take, जाटों को यह कभी नहीं बताते; बल्कि अपना भय और छुपा जाते हैं, हमें ऐसी बेतुकी बातों के तर्क दे के|


इसपे एक NRI जाट साथी ने तो इनकी इस एप्रोच को ठीक उस ऐतिहासिक कल्चरल चुटकुले से जोड़ के बताया मुझे, जो हम बचपन में बहुत सुनते-सुनाते थे| सुनते-सुनाते थे कि एक बार काली अँधेरी तूफानी रात में दो जाट व् एक बनिया, कहीं से गमिणे हो आने की बाट चलते आ रहे थे| बिजलियाँ कड़क रही थी, कच्चे रास्ते थे, झाड़-बोझड़े गमे के दोनों तरफ; इससे बनिये का हिया व् जिया बैठा जाए| परन्तु उसको अपना भय भी जाटों को नहीं दिखाना था, वरना वो उसको डरपोक बोल के उसकी हंसी उड़ाते| तो बनिए ने कहा, "ऐड भाई, दिखे मैंने तो डर लगता नहीं; हड थमनें लागता हो तो एक मेरे आगे हो लो और एक मेरे पाछै"| 


बल्या, इन्नें तो आडै विदेशों में आ के भी यह बाण नहीं छोड़ी; इनको जाटों का साथ भी चाहिए, परन्तु सच्चाई बता के साथ नहीं लेंगे| ऊपर से सितम यह कि यह यूँ सोचते हैं कि हम जाट, इनके इस डर को पकड़ नहीं पाते हैं| अरे भाई जब इतना ही अपना मानते हो तो फिर "give and take" पे क्यों नहीं एकता करते हो? तुम इंडियन मीडिया द्वारा जाट-खाप-हरयाणा की मीडिया-ट्रायल्स रुकवाने; किसानों को MSP दिलवाने, अग्निवीर हटवा के रेगुलर फ़ौज शैड्यूल लगवाने व् पहलवान बेटियों को न्याय दिलवा दो, बीजेपी-आरएसएस को बोल के; हम बदले में तुम्हें सुरक्षा भी देंगे व् तुम्हें खुद के साथ यह दो जाट व् एक बनिया वाले चुटकुला वाली करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी| 


जय यौधेय! - फूल मलिक   

Friday, 23 February 2024

21वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात!

21वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात बनाम 7वीं सदी के दाहिर-चच द्वारा "जाटों पर हथियार रखने व् घोड़ों पर चलने" का प्रतिबंध दिखाता है कि इन लोगों की मानसिक मंदबुद्धि आज भी उस 7वीं सदी की हीनभावना से पार नहीं पा सकी है:


सातवीं-आठवीं सदी में दो बाप-बेटा राजा हुए, चच व् दाहिर| उन्होंने धोखे से हथियाए अल्पकालिक राज (क्योंकि दाहिर, कासिम से लड़ाई में मारा गया था, फिर कासिम को जाटों ने कूटा था) को निष्कंटक बनाने हेतु, सबसे डेमोक्रेटिक परन्तु सबसे लड़ाकू सामाजिक समूह यानि जाट जाति पर कोई भी हथियार ले कर चलना व् घोड़ों पर चलना, दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया था| शायद उसको खामखा के सपने आते थे, कि जाट आते ही होंगे किसी भी वक्त घोड़ों पर सवार हो तेरा राज छीनने| जबकि कोई सच्ची नियत से इनसे पेश आए तो इन जितना डेमोक्रेटिक कोई नहीं| 


अब यही हाल मोदी-खटटर का है| ट्रेक्टर ना हो गए, 7वीं सदी वाले घोड़े हो गए; कि जो सड़कों पर ट्रैक्टर्स नहीं ला सकते| इतिहास मत दोहराओ अपितु  7वीं सदी से आज भी तुम में कायम अपनी इस हीनभावना से पार पाओ; वरना चच-दाहिर की भांति इस देश को ऐसे झंझाल में छोड़ जाओगे कि फिर "इन ट्रेक्टर वाले किसानों" पे ही आ के बात टिकेगी|


मोदी ना सही, खट्टर आप तो इतना रहम करो, अपनी इस स्टेट पे जहाँ तुमने मुसीबत पड़ी में 2-2 बार शरण पाई है; एक बार 1947 में व् दूसरी बार 1984 से 1992 तक वाले काल में| कोई समझाओ व् इन "स्वघोषित कंधे से ऊपर भारी अक्ल के बोझ में भोझ मरते" परन्तु इस ऊपर बताई ऐतिहासिक हीनभावना से ग्रस्त इंसानों को कि थोड़ी बहुत करुणा-मर्यादा बरतें| क्या यह "हरयाणा एक, हरयाणवी एक" के नारे का यही यथार्थ है जो कल खेड़ी-चौपटा में तुमने बरपवाया है या हरयाणा के बॉर्डर्स सील करके हमारे बड़े भाई पंजाब के किसानों पे बरपा रहे हो? आखिर रहेंगे तो यह भी यहीं ना, या इनको कोई अलग देश के मान लिए हो? 


जय यौधेय! - फूल मलिक


Monday, 19 February 2024

सिर्फ पंजाब हरियाणा वाले ही क्यों कर रहें हैं?

इस बात का जवाब समझने के लिए मजदूरी के रेट का उदाहरण ले लो। पुरबिए मजदूरी के लिए पंजाब हरियाणा में ही क्यों आते हैं? क्योंकि यहां मजदूरी 500-600₹ है तो वहां 300-400₹ है। पर उन लोगों ने कभी भी अपने राज्यों में इसके लिए आवाज नहीं उठाई। आवाज उठाने के लिए जागरूकता और हिम्मत चाहिए। एक और उदाहरण, हमारे भिवानी में मध्यप्रदेश के रीवा और उसके आसपास के जिलों से कुछ परिवार आए हुए हैं। मजदूरी करने नहीं, भीख मांगने। जब उनसे पूछा कि भीख क्यों मांगते हो, मजदूरी ही कर लो, और भीख ही मांगनी है तो अपने वही मांग लेते? तो उनका जवाब था कि बाऊ जी मजदूरी जितना तो भीख मांगने से ही मिल जाता है, और अपने वहां भीख मांगने में शर्म आती है क्योंकि वहां लोग जानते हैं, यहां कोई जानता नहीं, छह महीने यहां भीख मांगते हैं और उसके बाद वापिस छह महीने अपने गांव जा आते हैं। जबकि मध्यप्रदेश में पिछले पच्चीस साल से श्री राम के बच्चों की सरकार है और इन बेचारों की हिम्मत नहीं कि अपनी सरकार से आंख उठा कर सवाल कर लें। वैसे भी अगर इन्होने सवाल किया भी, तो इन पर वो पेशाब कर देंगे!? हरियाणा पंजाब में किसी की भी सरकार रही हो, यहां आंदोलन होते रहते हैं, यहां ये बहाना नहीं कि फलाने के ग्राफ से लोगों को दिक्कत है इसलिए आंदोलन हो रहा है। यहां किसी फलाने के ग्राफ से नहीं खुद के ग्राफ की फिक्र पहले है और इसी कारण ये राज्य बाकियों की तुलना में समृद्ध हैं। हरियाणा में बुढ़ापा पेंशन जितनी है एमपी, यूपी में उसकी आधी भी नहीं है। ये तो यहां श्री राम वाले इस पेंशन पर वादाखिलाफी कर गए वरना ये पांच हजार के आसपास होती। यूपी एमपी वालों ने तो इसके लिए भी कभी अपनी सरकार से सवाल तक नहीं किया। जो लड़ेगा वो ले रहेगा, वरना छुप छुप कर भीख मांगनी पड़ेगी। वैसे हरियाणा में भी आंदोलन एक जाति विशेष के क्षेत्र में ही होता है बाकी के तो फ्री में ही उसी का फायदा ले जाते हैं। बंसी लाल सरकार रही हो या चौटाला सरकार, बिजली बिलों को लेकर जाति विशेष वाले क्षेत्र के किसानों ने ही आंदोलन किए थे, बाद में उसका फायदा सभी को मिला। और आज हरियाणा में वह लोग भी कहते मिल जायेंगे कि इनको तो फलां सीएम से दिक्कत है। दिक्कत नहीं, इसे हिम्मत कहते हैं, जो अपनों के विरुद्ध भी खड़े होने की रखते हैं।

By: Rakesh Sangwan

Sunday, 18 February 2024

"अन्नदाता" शब्द सुनने की फंडियों की लगाई बुरी लत से दूर रहो!

जैसे एक किसान, खेत में अन्न उगाकर समाज का पेट भरता है, ठीक ऐसे ही दुनियाभर के औजार-हथियार-मकान, खाती-बढ़ई-लोहार-मिस्त्री-मैकेनिक बनाते हैं; यह उनका अभिमान व् स्वाभिमान है| उनको यह अभिमान है कि किसान अन्न उगाता है तो क्या, रहता तो मेरे बनाए मकान में है, चलता तो मेरी बनाई गाड़ी में है, खेत-खलिहान से चारा-अनाज लाता तो मेरी बनाई बुग्गी में है; मेरे बिना किसान क्या? 


यही अभिमान एक नाई को है कि मैं बाल ना काटूं तो यह सब असभ्य, जंगली-जानवर लगें| वह इस बात में अभिमान लेता है कि संसार के प्राणियों में सुदंरता तो मैं ही भरता हूँ| 


ऐसे ही एक चर्मकार को यह अभिमान है कि यह अन्न पैदा करते हैं तो क्या, मैं जूतियां ना बनाऊं तो इनके पैर छिल जाएं| झोटे-बैल के पैरों में नाळ लगाने वाला, उनके सींग-खुर्र रेतने वाला इस बात में अभिमान लेता है कि हम यह काम ना करें तो इनके जानवर दो दिन, दो कदम ना चल सकें; बैल हल ना जोत सके; झोटा बुग्गी ना खींच सके| 


व् ऐसे ही अन्य तमाम काम व् कारीगर गिन लीजिये| 


इसीलिए किसान जो करता है, माना वह मूल है सभी का| माना कि आदमी बाल कटवाए बिना जी सकता है, माना कि आदमी बिना मकान के भी रह सकता है; परन्तु फिर संसार से "लक्सरी" शब्द "सेवा" शब्द खत्म हो जाएगा| इसलिए किसान "भूख की लक्ज़री" देता है तो बाकी सब भी अपने-अपने तरीके से संसार को "सर्विस-सेवा की लक्ज़री" देते हैं| 


व् यही एक उदारवादी जमींदार का, खाप-खेड़े-खेत का ऐतिहासिक विज़न रहा है, समाज को, व्यक्तियों को, उनकी सेवाओं को, उनके सहयोग को समान देखने का नजरिया है| 


इसी बात को थोड़ा और विस्तार से रख देता हूँ: "अन्नदाता" शब्द किसान की श्रुति-शुश्रुषा हेतु "निट्ठले-ठाली, पैर-से-पैर भिड़ा के फिरने वाले फंडी -फलहरियों" की ईजाद रही है, क्योंकि उनको ऐसा बोल के आप से अनाज-रोटी चाहिए होती थी| परन्तु फंडी के अलावा आप बाकी किसी और के आगे इस शब्द के साथ जाओगे तो यह उसके अभिमान-स्वाभिमान को लगता है| और यही बात किसान को समझनी चाहिए| वैसे भी आप फंडी-फलहरी-बाबा-मोड्डे के अलावा किसी को भी फ्री में अनाज नहीं देते हो, जो वह आपको अन्नदाता कहेंगे; अपितु वह भी आपको बदले में सर्विस देते हैं| अत: यह अन्नदाता शब्द सुनने की फंडियों की लगाई बुरी लत से दूर रहे किसान व् उदारवादी जमींदार| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 17 February 2024

राजनीति का अपना आर्थिक दर्शन भी होना चाहिए।

 गांधी का ग्राम स्वराज, नेहरू का औद्योगीकरण, मनमोहन का "ईज आफ बिजनेस" माडल वही आर्थिक दर्शन है।

दर्शन पूरा होने मे वक्त लगता है, एक्शन मे नही ...कोई महज सात साल की सत्ता मे पूरी कौम की आर्थिकी बदल दे, ये चमत्कार बस रामवृक्ष पाल के बस मे था। जिन्हे कोई रहबरे आजम कहता, कोई दीन बंधु ... ●● अंग्रेज उन्हे सर छोटूराम कहते। 9 जनवरी 1945 को रोहतक रेल्वे स्टेशन पर उनकी देह उतारी गई। 4 किलोमीटर उनका जनाजा चला। हजारो किसान बिलखते, क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख ... सब उन्हे सलाम देने आए थे। किसान टोकनियों मे भरकर घी लाए थे। पंजाब के सदर खिज्र हयात खान भी कंधा दे रहे थे। पंजाब तब सचमुच पंचनद प्रदेश था। इसमे भारतीय पंजाब, पाकिस्तानी पंजाब, हिमाचल प्रदेष और हरियाणा शामिल थे। देश का सबसे बड़ा सूबा, जमीन सोना उगलती.. ●● पर किसानों के लिए नहीं। छोटूराम के पिता भी किसान थे। थोड़े पैसों के पास महाजन के पास गए, जिसने उन्हे बेइज्जत किया। छोटे पुत्र, छोटू ने वो मंजर देखा, और जेहन मे जज्ब कर लिया। झज्झर मे पैदा हुए छोटूराम, रोहतक मे पढे, फिर दिल्ली सेंट स्टीफेंस काॅलेज मे। इस महंगे कालेज मे उनका खर्च, जाटो के भामाशाह- सेठ छज्जूराम ने उठाया। आगे वकालत पढ़ी। प्रेक्टिस भी करते, स्कूल मे पढाते। तब पंजाब उथल पुथल मे था, देश की चेतना जाग रही थी। छोटूराम कांग्रेस के जिला प्रेसीडेट रहे। किसानों के भले के मुद्दे उठाते, अखबार निकालते। असहयोग आंदोलन मे भाग लिया, पर जब गांधी ने आंदोलन रोक दिया, वे निराश हो गये। ●● वे किसानी, ऋणग्रस्तता पर काम करते रहे। फिर 1923 मे सिंकंदर हयात खान के साथ मिलकर जमीदारां लीग बनाई जो किसान हित मे लडती। यह लीग ही, यूनियनिस्ट पार्टी बनी। इसका आधार जाट थे - जो हिंदू थे, मुसलमान भी, और सिख भी। पंजाब कांग्रेस मे लाला लाजपतराय के अलावे बड़ा नाम नही था। कांग्रेस ने इलेक्शन लड़ा नही, छोटूराम और कई साथी चुनकर असेम्बली मे आए। उन्हें कई महत्वपूर्ण कानून बनवाने का श्रेय दिया जाता है। इनमें से एक पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस 1934 और दूसरा द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट 1936 था। इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे। कर्जा माफी अधिनियम. 1934 कानून को भी पारित करवाया। उन्हे अंग्रेेज भी सम्मान देते। 1936 मे उन्हे नाइटहुड मिली। ●● जब 1937 मे चुनाव हुए, यूनियनिस्ट पार्टी जीत गई। सिंकदर हयात मुख्यमंत्री बने, छोटूराम रेवेन्यू मंत्री। 1938 में साहूकार रजिस्ट्रेशन एक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट 1938, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम. 1938, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम- 1940 आए। ये दशा बदलने वाले कानून थे। किसानों की गिरवी रखी जमीनें लौटाई गई। ऐसे कर्ज जिसका दोगुना मूल्य वसूला जा चुका हो, खत्म कराये। ●● मशहूर किस्सा है, कि एक किसान लाहौर हाइकोर्ट गया। वो कर्ज चुकाने मे अक्षम था। कुर्की होनी थी। अर्जी लिखी कि कम से कम मेरे बैल और झोपड़ी को नीलाम न किया जाए। जज शादीलाल ने उपहास किया, कहा कानून मे ऐसा नही है। हां, एक छोटूराम नाम का आदमी है, वही ऐसे उल-जलूल कानून बनवाता है। उसके पास जाओ। किसान सर छोटूराम के पास आया। छोटूराम ने डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट बनाया, कि जीवन के न्यूनतम साधनो को कर्ज वसूली के लिए नीलाम करना बैन हो गया। ●● दूसरा किस्सा जिन्ना से भिड़ने का है। एक समय मे यूनियनिस्ट और जिन्ना मे अच्छे रिश्ते थे। बल्कि लीग को पैर रखने की जगह, जिन्ना-सिंकदर पैक्ट से मिली। पर 44-45 मे जिन्ना जहर उगलने लगे, पंजाब को अपने भावी पाकिस्तान का अभिन्न हिस्सा बताने लगे। मुस्लिमों से सीधे अपील करने लगे। सर छोटूराम ने जिन्ना को हड़का दिया। कहा- 24 घण्टे मे पंजाब छोड़ दे, नही तो गिरफ्तार कर लूंगा। जिन्ना सर पर पांव रखकर भागे, और छोटूराम के देहावसान के बाद ही पंजाब जाने की हिम्मत जुटा सके। भारत का दुर्भाग्य है, अगर छोटूराम कुछ बरस जी जाते, तो शायद पंजाब की शक्ल कुछ और होती। ●● आज जो किसानों का दम है, गुरूर है, जो ट्रेक्टर और रेंज रोवर है, जिससे आप जलते है, वो छोटूराम की देन है। पंजाब का मंड़ी स्ट्रक्चर देश भर मे पहला है, यूनिक है। हरित क्रांति ने उपज और भी प्रदेश मे बढाई, फसल का दाम तो पंजाब की मंड़ी देती है। वह कर्ज भी देती है, सड़के भी बनवाती है। सच है कि कुछ दशको मे वहां भी समस्याऐं पनपी, जो माॅडल छोटूराम का था, कारगर है, जनोन्मुख है, ताकतवर है। जहां 10 साल से बैठे लोग, कुछ करने सीखने के लिए 2047 तक वक्त मांग रहे है, वहा छोटूराम महज 7 साल मंत्री रहकर इतिहास बना गए। ●● राजनीति का अपना आर्थिक दर्शन होना चाहिए। मौजूदा सरकार का भी है, जिसे वह,अपने खास साथियों के हक मे उतारने को बेताब है। लेकिन सर छोटूराम का माॅडल रोड़ा बना हुआ है। देश ने उनके जैसा दूरदर्शी नेतृत्व कम देखा। उस दौर मे हर राज्य मे एक छोटूराम होता, तो आज देश भर के किसान के गले मे आवाज होती। रहबरे आजम छोटूराम आज जीवित होते ... तो लोहे की कीलो पर चलकर इस तानाशाही को ललकार रहे होते।

By Manish Reborn

Questions and rumour about "Kisan-Andolan" answered!

Questions and rumour about "Kisan-Andolan" answered, Question-1: किसानों को दिल्ली जाना है तो ट्रैन या बस से जाएं, ट्रेक्टर-ट्राली से नहीं - हरयाणा सीएम खट्टर

सीधा-जवाब: बिल्कुल जनाब, किसानों को कोई शौक थोड़े ही है इतना तेल-टायर फूंक के ट्रैक्टर्स से जाने का| आप ऐसा करो, जितने भी दिन किसानों को अपनी मांगें मनवाने हेतु, दिल्ली में रुकना पड़े; उतने दिन के लिए उनके रहने व् खानेपीने का प्रबंध कर दो वहां दिल्ली में; नहीं जाएंगे ट्रेक्टर-ट्रॉली से| दिखा तो ऐसे रहे हो जैसे "दिल्ली तक दौड़ के वहां हाथ लगा के वापिस आने तक जितनी बात है"| 


खटटर की बदनीयत वाला जवाब: जितना सीधा चीजों को पब्लिक को दिखाने की कोशिश करते हो, इतने सीधे थम और थारी सरकार मानने वाली होती तो 10 साल होने के आए अब तक MSP लागू कर चुके होते| और पिछली बार क्यों 13 महीने लगा दिए थे, अगर इतना ही आम पब्लिक को तकलीफ ना होने देने का ही ख्याल है तो? तुम्हारी नियत व् नीति भलीभांति जानते हैं किसान व् उनकी मजबूरी में ही निकले हैं व् यह इसको देख-समझ के ही निकले हैं वो|  


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Friday, 16 February 2024

MSP क्यों चाहिए के कुछ जुगासू सवाल और उसके जवाब

Protection of any business, or product is against basic economics and market.


खेती मूल है मेरे भाई। 

देश की सारी ईकोनामी और मार्किट खेती पर ही टिकी हुई है। बाजारों में यदि लोग नहीं जायेंगे तो दुकानदार अपने सामान और सर्विस को भला किसे बेचेंगे। 


रही बात प्रोटेक्शन की व्यवस्था ने 16 लाख करोड़ रुपये के कर्जे/ देनदारियाँ बैंकों के माध्यम से इंडस्ट्रियल सेक्टर की माफ़ की हैं। ताकि इंडस्ट्री चलती रहे और लोगों की व्यवस्था बनी रहे। 


यहाँ कोई प्रोटेक्शन नहीं मांग रहा है यहाँ बात वैल्यूएशन की है जिसपर सभी कंपनियां टिकी हुई हैं और उसी के लिए दिन रात खटती और मरती हैं। 


उत्पादक भी यही कह रहा है कि मेरे उत्पाद की मिनिमम कीमत तो तय कर दो। जैसे टमाटर की कीमत पांच रुपये किलो, दूध की चालीस रुपये किलो तय कर दो और उसे लीगल बना दो। 


सरकार शराब  की कीमतों को भी तो इंफोर्स करती है। एक तय सीमा से नीचे नहीं आने देती। 


How many farmers govt will protect??milk? Poultry? Vegetables??


सभी उत्पादकों को प्रोटेक्शन नहीं उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिलना ही चाहिए ताकि देश की ईकोनामी का सर्कल पूरा घूमे। उसमें सभी लोग शामिल हों। 



Why others working class is secondary citizen then... protect my factory also if it goes to less?? Where to stop??


किसने कहा मेरे भाई वर्किंग क्लास सेकेंडरी सिटीजन है। क्या उत्पादक देश की नॉन वर्किंग क्लास है। सरकार नौकरी पेशा व्यक्तियों को DC रेट, EPF, ESI, बोनस, आदि देकर प्रोटेक्शन ही तो देती है। इंप्लॉयर कंट्रीबयूशन के बराबर सरकार ही तो जमा करवाती है। फिर मैटरनिटि लीव के पैसे भी तो सरकार देती है। EPF का पूरा कानून देखो और समझो मेरे भाई देश के सभी वर्किंग क्लास में कवर्ड है। 


शॉप एंड एस्ताब्लिशेमेंट एक्ट में एम्प्लॉयी को कंप्लसरी पेड़ लीव का प्रावधान भी तो सरकारी प्रोटेक्शन है मेरे भाई। 


रोहतक में दंगे हुए थे दुकाने जला दी गयी थी सरकार ने एक एक दुकानदार दो उसके नुक्सान के मुताबिक पैसे दिये थे। वो भी तो सरकारी प्रोटेक्शन ही है मेरे भाई। 


A labor on the road(India has many more in number  and will have many in number till the country is developed)needs more social security than these farmers .

EPF और ESI में सारी इंडस्ट्रियल लेबर कवर्ड है मेरे भाई। 

यहाँ तक कि घर में काम करने वाली बाई के लिए भी पोस्टल डिपार्टमेंट की इंश्योरेंस की स्कीम है जिसमें साल के तीन सौ रुपये प्रीमियम पर पाँच लाख तक का रिस्क कवर मिलता है। इसको पॉपुलर बनाने के लिए PM साहेब खुद अपील कर चुके हैं लोग जिनके घरों में महिलाएं झाड़ू चौका बर्तन करती हैं उन्हें वो इंश्योरेंस पॉलिसी गिफ्ट करें। 


Why we need so many farmers ?? when the economy is growing from agrarian to service and  manufacturing . 

सोनू मेरे भाई खेती प्रोफेशन नहीं लाइफ स्टाइल है। जहाँ से किसान और जवान दोनों पैदा होते जो देश का स्टील हैं। पचास लाख के लगभग जो फौज और पैरा मिलिट्री में हैं 99% के लगभग किसानों के घरों के ही बच्चे हैं। 


जिस ग्रोविंग इकोनामी की बात आप कर रहे हैं ना वो सिर्फ झाग है एक मिनट में ढुसस हो जाती है। करोना काल में हमें रोटी सब्जी सही समय पर तभी मिल पा रही थी जब खेती किसानी और उसके सिस्टम ठीक से काम कर रहे थे। 


किसानी आज भी सबसे बड़ा इंप्लॉयमेंट देने वाला सेक्टर है जो लोगों को एंगेज किये हुए है। 


Gdp contribution I quite less vs their number.  


ईब GDP की सुन ले मेरे भाई। एक पेड़ जो फल ऑक्सीजन पानी छाया जीवन सब दे रहा होता है तो हमारे इकॉनॉमिस्ट GDP में उसका कोई कांट्रीबयूशन नहीं मानते। लेकिन जब वो काट दिया जाता है तो उसकी लकड़ी को GDP का हिस्सा मान लेते हैं। 


मेरे भाई हमारे फार्मूले गलत हैं इसीलिए हमारे उतर भी गलत निकल रहे हैं। 


They don't want capital,  technology  to come in this field, which in short term may feel them in secure but actually is the only way to increase productivity and income. One can improve on numbers ,quality and efficiency too.


मेरे भाई वो MSP के माध्यम से कैपिटल ही तो मांग रहे हैं। प्रोडक्विटी से इनकम लिंक नहीं है मेरे भाई। इनकम का लिंक रेट से है। साढ़े ग्यारह टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन है पंजाब में गेहूं और धान सालाना  और इससे आगे जाना प्रकृति से खिलवाड करना ही होगा। 


ये नम्बर्स वाली बात आपकी सही है सोनू भाई, MSP को लीगल बाइंडिंग करवा के नम्बर ही इंप्रूव करने की कोशिश है। 


कवालिटि वाली बात भी आपकी ठीक है। 


Every one has to compete in market economy and that's only way of survival.


ये हो हल्ला जो हो रहा है, बातें चल रही हैं, आप भी सोच रहे हैं TV रेडियो सब जगह विमर्श चल रहे हैं। Yeh सभी कम्पीटिशन का ही हिस्सा है। 


खेती किसानी जीवन शैली को बचाने का कंपिटीशन। हमारे देश में जो शांति का स्वभाव है उसके मूल आधार में सात्विकता है जो खेती किसानी की जीवन शैली से आती है। 


अन्यथा शराबी कबाबी जीवन शैली तो पूरी दुनिया में क्या गुल खिला रही है आंकड़े सभी के सामने ही हैं। 


एक बात मैं और रखना चाहता हूँ सोनू भाई इस दुनिया में जितनी भी जगमग है उसका करंट खेतों से ही आता है उसका बिल किसान और उसका सहायक ही भरता है। मैंने खूब अच्छे से स्टडी की हुई है। 


उदहारण के तौर पर जींद जिले का  ईग्राह गाँव सुबह सात बजे से पहले पहले बीस हजार रुपये की तो बस बीड़ी बीड़ी पी जाता है। बाकी दिन का हिसाब आप लगा लिजिये। 


एक एक गाँव करोड़ों रुपये का उपभोग सुबह से शाम तक कर देता है। 


खूब घणे सारे सवाल पूछने के लिए सोनू भाई का हार्दिक धन्यवाद।

Thursday, 15 February 2024

"दो जाट और एक लाला" वाले चुटकुले की तर्ज पर जोड़ता है फंडी, खापलैंड के किसान बिरादरी के NRIs को इसके साथ!

NRI बन गए हो तो बहुत तरक्की भी कर गए हो, ज्ञान भी अर्जित किया होगा; तो क्या विदेशों में फंडी इनको यह कह के जोड़ते हैं कि आइए हमें आपके ज्ञान का आदर है, आपके ज्ञान की जरूरत है, आप हमारे बराबर के भाई हो? नहीं, अपितु यह कह के जोड़ते है कि देखो, देश के बाहर काउंट तो तुम हम में ही होते हो, बेशक देश में हमारी बिरादरियों के आपसी झगड़े हों, बेशक वहां हम ऊंच-नीच में बंटे हों; लेकिन यहाँ हम अलग-अलग रहे तो देखो ईसाई एक है यहाँ, मुस्लिम एक है, सिख एक है; जब बात इनसे लड़ाई की आती है तो यह सब भी एक हैं, तो तुम भी हमारे साथ जुड़ के रहो| अलग-अलग रहोगे तो हम भी पिटेंगे व् तुम भी पिटोगे| 


यानि वही अमितशाह वाली घिसी-पिटी डरा के अपने इर्द-गिर्द रखने के थ्योरी| वो बचपन में एक चुटकुला बहुत सुना था ना कि एक बार दो जाट और एक लाला  आधी रात कच्चे रास्ते कहीं जावें थे व् लाला का हिया भय से पाट-पाट आवै था; तो लाला ने क्या तरकीब लगाई? यही कि हड भाई चौधड़ियो ड़ड़ लाग्दा हो तो एक मेरे आगै हो ल्यो और एक पाछै| हालाँकि यह तो चुटकुला हुआ करता था परन्तु 90% से ज्यादा ऊपर बताई पृष्ठभूमि के लोग NRI हो के भी इन फंडियों की नजर में, अपना डर भगाने के गॉर्डस से ज्यादा कुछ नहीं| जब यह देखता हूँ तो समझ आता है कि "किनशिप ट्रांसफर" कितना जरूरी है| कितना जरूरी है इनको सर छोटूराम, सरदार अजीत सिंह, सरदार भगत सिंह, चौधरी चरण सिंह आदि को समझना व् समझाना कि तुम्हारा अस्तित्व, तुम्हारी बुलंदी तभी है, जब इनकी धौण पे खड़ा हो के अपनी राजनीति, अपना साम्राज्य खड़ा करोगे| और इन फंडियों के साथ या तो बराबरी के दर्जे पे चलो या प्रोफेशनल तरीके से अन्यथा इनके साथ धर्म-किनशिप की बराबरी के चक्र में ज्वाइन करते हो तो भूल जाओ; जो इनके साथ सदियों के इतिहास में कभी तुम्हारे बुजुर्गों ने ही नहीं होने दिया, किया या कहो इनको इस लायक ही नहीं समझा तो तुम इनको इस लायक बना के क्या निकालोगे? "दो जाट, एक लाला" जैसे चुटकुले बना के इनके ऐसे "भय" दिखा के साथ रखने के फॉर्मूले जब तुम्हारे पुरखों ने ही चुटकुलों में उड़ा दिए तो तुम क्या हासिल कर लोगे? 


इनके छोटे-मोटे काम करवाते हैं परन्तु बदले में इनकी ताकत व् तथाकथित धर्म के नाम पे पैसा उड़ा ले जाते हैं; जबकि इससे ज्यादा तो हमारे NRI लोग ऊपर बताई थ्योरी को समझ के चलें तो तब अकेले अपने दम पे कर लें| सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह, जिन्होनें डंके के चोट पे हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति करी, उनके वंशज, सिर्फ इतने से डर के फंडियों को ज्वाइन कर जा रहे हैं, या इनसे साइड हो ले रहे हैं या इनके बहकावे में आ के चुप हो जा रहे हैं, जितना ऊपर बताया| सितम इसपे तब होता है कि आदर्श सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह में ढूढेंगे परन्तु होक्का जा के इन फंडियों का ही भरेंगे| 


लाला: किसी भी जाति-धर्म का हो सकता है, इसको विशेष जाति से ना जोड़ा जाए, जब इस लेख को पढ़ा जाए तो!


जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 13 February 2024

यह बार-बार किसान आंदोलन उत्तर-पश्चिमी भारत से ही क्यों उठते हैं?

क्योंकि यहाँ का खेती करने का कल्चर यूरोपियन परिपाटी का है (Global Standard, you know) यानि "जमींदार ही खेत में किसान का काम करता है अपने सीरी-साझी के साथ मिल के"| जिसको कि उदारवादी जमींदारी कहते हैं| यह कल्चर 'खाप-खेड़ा-खेत व्यवस्था' से निकल के आता है| क्योंकि यह जमींदार खेत में काम करने से नहीं डरता, व् ना ही शर्माता इसलिए यह इसी कल्चर की वजह से अन्यों से अपेक्षाकृत ज्यादा डेमोक्रेटिक व् स्वछंद नीत का होता है, जो इसको अन्याय नहीं सहने का एक्स्ट्रा जज्बा व् मनोबल देता है| इसके "दादा खेड़ों के कोर सिद्धांतों में वर्ण-धर्म-जाति सब बराबर हैं"| और सिख हों या खाप-खेड़ा-खेत (3ख) को मानने वाले लोग, सिखी से पहले यह सभी "खाप-खेड़ा-खेत" से ही हुए हैं| इसीलिए आप पाओगे कि सिखी के अधिकतर सिद्धांत 3ख से मिलते हैं, कल्चर-रीत-रिवाज-स्वभाव सभी कुछ; सिर्फ भाषा पंजाबी व् हरयाणवी छोड़ के| इसमें भी पाओगे कि पंजाबी-हरयाणवी का 60 से 70% शब्दकोश कॉमन है|  


यह बाकी के भारत में पाई जाने वाली सामंती जमींदारी से बिल्कुल विपरीत है| सामंती जमींदार में खेत का मालिक खुद खेती ना करके, मजदूरों से करवाता है; जिसको कि 'नौकर-मालिक' कल्चर बोलते हैं| यह कल्चर वर्णवादी व्यवस्था से निकल के आता है| व् वर्णवादी व्यवस्था में सहना, नीचे बने रहना सिखाया जाता है| यानि स्वर्ण-शूद्र कांसेप्ट इसका मूल है| इस कल्चर में पला-बड़ा व्यक्ति, डरा-दबा के बड़ा किया जाता है, स्वर्ण-शूद्र समझा-बता-थोंप के पाला जाता है| इसलिए यह उदारवादी जमींदारी वालों से अपेक्षाकृत कम डेमोक्रिटिस व् कम निर्भय होता है| 


बस यह मूल-कल्चरल भिन्नता ही इसकी सबसे बड़ी वजह है कि उत्तर-पश्चिम भारत में इतने किसान आंदोलन क्यों होते हैं| और फंडियों की असल लड़ाई इस 3ख की फिलॉसोफी को ही मिटाने की है; जो कि मारनी सम्भव नहीं है| यह मारते रहे, परन्तु यह और ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ख्याति पाती चली जा रही है| और यही फंडियों की असल कुंठा है|  यह कल्चर-किनशिप का मूल-अंतर् अपनी पीढ़ियों को बता के रखिए, साथ ही यह भी समझा के रखिए कि फंडियों को आदर-भाव का भरम-बहम देते हुए, अपने कल्चर-किनशिप को कैसे निरतंरता में रखना है| यह बहम के ही तो भूखे हैं, आदर का बहम, सम्मान का बहम; तो जब यह बहम में खुश हैं तो इनको बहम ही देते चलो व् अपनी कल्चर-किनशिप पे कायम रहो| क्यों किसी को रूसाना!


जय यौधेय! - फूल मलिक

★ "C2" में क्या क्या है और उद्योगपतियों को C2 मिलता है या नहीं?

1. फैमिली लेबर : उद्योगपतियों को अपनी कंपनी से "सैलरी" मिलती है..पूरा परिवार डायरेक्टर रहता है..करोड़ो की सैलरी मिलती है..यही फैमिली लेबर है..

C2 में किसान परिवार के जो लोग खेत में काम करते हैं उनका मेहनताना भी बताया गया है..
2. ज़मीन का किराया : उद्योगपतियों को ज़मीन मुफ़्त मिलती है..उद्योगपतियों को ज़मीन 100 साल की लीज़ पर मिलती है जो लगभग मालिकाना ही है..
ज़मीन पर बने कारख़ानों पर "डेप्रिसिएशन" भी मिलता है..यही सब ज़मीन का किराया है..
3. लागत पर ब्याज : उद्योगपतियों को अपनी हिस्सेदारी पर सैलरी के 'अलावा डिविडेंड भी मिलता है..यह लागत पर ब्याज है..
ऐसे भी समझ सकते है कि अगर किसान 100₹ बैंक में ब्याज पर रखता है तो उसे सालाना 7% ब्याज के हिसाब से 7₹ मिलते है..यही लागत का ब्याज है जिसे C2 में शामिल किया गया है..
#कृष्णनअय्यर

Monday, 12 February 2024

On the occasion of birth anniversary (13 Feb 1707) of Maharaj Surajmal Sujan Ji

He is revered upon as Asian Plato, Jat Odysseus by various historians and intellectuals of global arena.


बागडु के युद्ध में माधोसिंह की ओर मल्हारराव होल्कर, गंगाधर तांतिया, मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह, जोधपुर नरेश, कोटा तथा बूंदी के राजा थे। ईश्वरीय सिंह इस युद्ध में अकेले पड़ गए थे। ईश्वरीय सिंह की ओर से भरतपुर रियासत के सूरजमल उनके साथ थे। बागडु के इस युद्ध में ईश्वरीय सिंह की जीत हुई और इन सभी सात राजाओं को हार का मुँह देखना पड़ा।
प्रतापी जाट की प्रतिष्ठा के प्रति द्वेष दिखाए बिना बूंदी का राजपूत कवि सूर्यमल्ल मिश्रण इस स्मरणीय अवसर पर सूरजमल के शौर्य का वर्णन काव्यात्मक शैली में इस प्रकार करता है -
सह्यो भलैंही जट्टनी, जय अरिष्ट अरिष्ट।
जिहिं जाठर रविमल्ल हुव आमैरन को इष्ट॥
बहुरि जट्ट मल्लार सन, लरन लग्यो हरवल्ल।
अंगद ह्वै हुलकर अरयो, मिहिरमल्ल प्रतिमल्ल॥
(वंश भास्कर, पृ० 3518)
“अर्थात् जाटनी ने व्यर्थ ही प्रसव पीड़ा सहन नहीं की। उसके गर्भ से उत्पन्न सन्तान सूरज (रवि) मल शत्रुओं के संहारक और आमेर का शुभचिन्तक था। पृष्ठभाग से वापस मुड़कर जाट ने हरावल में मल्हार से युद्ध शुरु किया। होल्कर भी अंगद की भांति अड़ गया, दोनों की टक्कर बराबर की थी।”
:- कवि ने ज़ट्ट शब्द इस्तेमाल किया है। वैसे असल शब्द भी ज़ट्ट ही है, ज़ट्ट से जाट बोला जाने लगा। आज भी काफ़ी गाँव ऐसे हैं जिनके नाम के साथ ज़ट्ट शब्द ही बोलने में आता है, जैसे कि शाहपुर ज़ट्ट, ख़ेड़ी ज़ट्ट...

By: Rakesh Sangwan