दोनों में कोई कनेक्शन नहीं|
इस मुद्दे के दो पहलू हैं; एक वो जो जाट युवा सोशल मीडिया पे "खाप-जिहाद" के नाम से इस मुद्दे पर चर्चा कर रहा है और एक नव-भारत टाइम्स के पत्रकार जैसा मीडिया वर्ग का जो "रैना का ब्याहः कहां गई खाप पंचायत?" जैसे शीर्षकों से इस विवाह के बहाने भी खापों को कटघरे में ही खड़े करने की अपनी आदत से लाचार है|
पहला बिंदु, "खाप-जिहाद" है क्या? कुछ नादान कहूँ या भावुक जाट युवा, रैना और चौधरी की शादी में "खाप-जिहाद" का एंगल देख रहे हैं, जो उनकी नादानी के सिवाय कुछ नहीं हो सकता| "खाप-जिहाद" अंतर्जातीय विवाह नहीं है, अपितु "खाप-जिहाद" है:
1) मीडिया और एंटी-खाप ताकतों द्वारा खापों को हर स्तर पर तुच्छ करके दिखाना,
2) इनकी आलोचना करके इनमें विश्वास रखने वालों का मनोबल तोड़ना और
3) देश में हजारों-हजार गैर-सवैंधानिक धर्म, धर्मस्थलों-संस्थाओं और अन्य मान-मान्यताओं के होते हुए भी सिर्फ और सिर्फ खापों को ही मीडिया-कानून द्वारा हर जगह पे असवैंधानिक व् गैर-कानूनी बतला कर इनको मानने वालों में भय और अविश्वास का माहौल पैदा करना| यह है "खाप-जिहाद"। और यह लोग यह सब इस बात के बावजूद करते हैं कि भारत के "कस्टमरी लॉ (Customary Law)" के तहत खापें हमारे सविंधान का हिस्सा हैं|
अंतर-जातीय विवाह खापों का मुद्दा ना कभी इतिहास में था और ना आज है: दूसरा नवभारत-टाइम्स के पत्रकार महोदय जैसे बंधु सुनें कि खापों और जाटों में प्रेम-विवाह अथवा अंतर-जातीय विवाह ना जाटों का और ना ही खापों का कभी भी सार्वजनिक मुद्दा नहीं रहा, यह हमेशा से व्यक्तिगत पसंद-नापसंद और दोनों तरफ के परिवारों की अपनी सूझ-समझ का मामला रहा है| कुछ ऐतिहासिक व वर्तमान उदाहरणों के साथ मेरी इस बात की पुष्टि करता हुआ चलूँगा:
1) 1355 में तैमूरलंग की सेना को 40 किलोमीटर तक दौड़ा-दौड़ा कर मारने वाली व् चुगताई वंश के चार बड़े सरदारों को अकेले वीरगति देने वाली और उसी सेना के सेनापति मामूर को अढ़ाई घंटे तक मल्ल्युद्ध में छका के मारने वाली खाप-यौद्धेया “दादीराणी भागीरथी देवी जी महाराणी” ने एक जाटणी होते हुए भी बाकायदा उद्घोषणा करके पंजाब के महा-तेजस्वी “दादावीर रणधीर गुर्जर” से प्रेम-विवाह किया था|
2) उसी काल में खाप-यौद्धेया “दादीराणी महादेवी गुर्जर” वीरांगना ने “दादावीर बलराम जी” नाम के जाट योद्धेय से स्वयंवर किया|
3) खाप-यौद्धेया वीरांगना “महावीरी रवे की लड़की” ने अपने समान दुर्दांत योद्धेय “दादावीर भद्रचन्द सैनी जी” से विवाह किया|
4) एक राजपूत जाति की खाप-यौद्धेया लड़की ने दादावीर कोली जाट वीर योद्धेय से विवाह किया|
5) इसी प्रकार भंगी कुल की तथा ब्राह्मण कुल की कन्याओं ने भी अपनी मनपसंद वीरों से स्वयंवर किये|
और यह सब विवाह बाकयदा खापों के सानिध्य में हंसी-ख़ुशी हुए थे|
और पत्रकार महोदय हालाँकि मैं किसी अपवाद से इंकार नहीं करता परन्तु आप जो बात कह रहे हैं कि खापों का जोर सिर्फ गरीबों पर चलता यह भी सत्य नहीं| खाप कोई धर्म या धार्मिक-स्थल नहीं हैं कि किसी को जाति-वर्ण के नाम पर प्रवेश निषेध की तख्ती लगा के रखते हों| देखिये कुछ आज के आधुनिक उदाहरणों के जरिये:
1) मेरी निडाना नगरी (मीडिया की भाषा में गाँव) जिला जींद हरियाणा में हमारे यहां एक छोटी जोत के जाट दादा ने एक बाल्मीकि (चूड़ा) जाति की लड़की (हमारी दादी) से विवाह किया| और आज उस परिवार की तीसरी पीढ़ी भी ठाठ से बसती है निडाना में| और वो भी बिना किसी ऊँच-नीच या छूत-छात के भेदभाव के|
2) अभी चार-पांच साल पहले ही गाँव का एक डूम जाति का लड़का एक हिन्दू ब्राह्मण की लड़की को ब्याह लाया तो गाँव के ब्राह्मण जाटों को हस्तक्षेप करने को बोले, तो गाँव के जाटों ने इसको दो परिवारों की सहमति का व्यक्तिगत मामला बताते हुए हस्तक्षेप से साफ़ मना कर दिया और वो जोड़ा भी आज गाँव में ही सुख से बसता है|
3) प्रेम-विवाह तो जाटों के यहां हर तीसरे घर में होते आये हैं| आज के दिन खुद मेरे परिवार-रिश्तेदारी में 6 जोड़े ऐसे हैं जिन्होनें प्रेम-विवाह किया हुआ है| एक जोड़े के तो आज पोता-पोती भी ब्याहने लायक हो गए हैं; और प्रेम-विवाह होने के बावजूद भी इस जोड़े का मर्द उनके गाँव का सरपंच तक बना| व्यक्तिगत मामला होने की वजह से नाम सार्वजनिक नहीं करता; पर किसी को वक्तिगत रूप से ज्यादा जानकारी चाहिए तो मुझे मैसेज या ईमेल कर सकता है|
4) अभी हाल ही में हरियाणा की बड़ी और विख्यात खापों में शामिल "सतरोल खाप" का किसी भी जाती में विवाह करने की खाप की तरफ से छूट का ऐतिहासिक फैसला तो आपने जरूर सुना होगा ना पत्रकार महोदय, परन्तु जब आपने मन ही खापों पे जहर उगलने का बना रखा हो तो कोई क्या कर ले आपका| एक बात और जोड़ दूँ, खाप के इस फैसले से सबसे ज्यादा आपत्ति समाज में धर्म को संचित करने वाली व् खुद को स्वघोषित अगदी मानने वाली जाति को ही हुई थी|
खापों की सिर्फ और सिर्फ सगोतीय विवाहों पर आपत्ति है क्योंकि वो हमारे समाज और सरंचना की रीढ़ की हड्डी वाली कस्टमरी लॉ (Customary Law) है, जो कि खुद भारतीय कानून की 'कस्टमरी लॉ" केटेगरी के तहत आरक्षित है|
हाँ अब शायद आप लोगों पर इन गैर-जिम्मेदाराना लेखों और प्रचारों के विरुद्ध खापों को कानूनी राय जरूर ले लेनी चाहिए|
खैर मीडिया ने तो इतनी आसानी से बाज आना भी नहीं है, परन्तु जाट युवा की जागरूकता और इन चीजों पर चर्चा करने की टीस को देखकर मुझे ख़ुशी हुई, "खाप-जिहाद" का गलत स्वरूप ले कर ही सही पर आप लोग इस पर चर्चा कर रहे हैं| उम्मीद है कि मेरा यह लेख आपकी "खाप-जिहाद" की परिभाषा को लेकर जो राय है उसको सही परिपेक्ष्य में समझने में मदद करेगा|
एक और बात अगर "अंतर्जातीय-विवाहों" पर कुछ जाट-युवाओं को इस वजह से ज्यादा परहेज कि इससे जातिगत नश्ल खराब होती है तो वो पहले इस पर सोचें कि यह जो "बिहार-बंगाल-असम" से बहुएं आ रही हैं वो ज्यादा नश्ल खराब करेंगी या स्थानीय हरियाणा में अंतर्जातीय विवाह जो हो रहे हैं वो ज्यादा? और इस मामले कुछ रोकना ही चाहते हो तो पहले यह गैर-हरियाणवी नश्ल के हरियाणवी नश्ल से ब्याह को कैसे रोका जाए, इसपे सोचो|
अंत में सुरेश रैना और प्रियंका चौधरी को उनके प्रेम-विवाह की असीम शुभकामनाएं| - फूल मलिक
Link to "रैना का ब्याहः कहां गई खाप पंचायत?" article:
http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/delhi-junction/entry/suresh-raina-s-wedding-and-khap-panchayat
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