Wednesday 1 April 2015

मेरे लिए मुग़ल के हरम में और हिन्दू के मंदिर में कोई फर्क नहीं!

मेरे लिए मुग़ल के हरम में और हिन्दू के मंदिर में कोई फर्क नहीं, लड़कियां दोनों के गृभगृह में जाती रही हैं, एक के यहां रक्कासा बन के तो एक के यहां देवदासी बनके|

खापलैंड पर रहने वाले लोगों को मंदिरों की इस क्रूरता का आभास इसलिए नहीं है क्योंकि यहां जाट और खाप रही हैं, वरना दक्षिण-पूर्व भारत की तरह आज खापलैंड पर भी बड़े-बड़े मंदिर होते और उनमें देवदासियां पल रही होती|

और क्योंकि एक जाट और खापधारा का वंशज होने के कारण, मैं धर्म की अति के इस क्रूर चेहरे को अच्छी तरह से समझने और परखने की काबिलियत रखता हूँ, इसीलिए अंधभक्त बनने से बचा हुआ हूँ| इसीलिए अगर आपको अपने पुरखों की मेहनत से कल और आज की देवदासी रहित हमारी इस खापलैंड धरा को आने वाले कल में भी स्वाभिमान के साथ कायम रखना है तो अपनी स्वछंद बुद्धि और विवेक से समाज की हर चीज को परखें, नापें-तोलें और उसकी योग्यतानुसार ही उसको अपने दिल-दिमाग-घर-परिवार और समाज में स्थान देवें| अपने बुजुर्गों का यह सकारात्मक इतिहास याद रखें और किसी भी चीज की इतनी अति ना होने देवें कि कल को हमारे पुरखे ही हमसे शर्मिंदा हों|

और जो खापलैंड के दलित जाटों को अपने लिए सबसे बुरा बताते हैं वो पहले एक बार दक्षिण-पूर्व भारत के मंदिरों की इस काली सच्चाई को देख आवें, जो आज कानून बनने के बाद भी छिपे-पर्दे में देवदासियों को पाल रहे हैं जिनमें 90% देवदासियां दलितों की बेटियां ही होती हैं और फिर वापिस आकर खापलैंड पर देखें| निसंदेह जो स्थिति आपकी आज है उससे बेहतर के आप हकदार हैं, परन्तु जब उधर घूम के देख के आओगे तो स्वत: ही कहोगे कि बाकी के भारत से तो खापलैंड का दलित सबसे मजबूत स्थिति में है| और इसका कारण सिर्फ एक ही है और वो है जाट और इसकी खाप प्रणाली, जिसने इन बकवासों से अपने समाज को बचाने के लिए सैंकड़ों युद्ध, उजड़ने और विरोध झेले हैं| और आज का जाट भी जरा अपने बुजुर्गों के बलिदानों से सींची इस धरा को आने वाले कल में क्या बनाना चाहता है, इस पर विचार करे और कम से कम अंधभक्ति से तो जरूर बचे| - फूल मलिक

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