भगवान की
तो बात आप छोड़ ही दो गडकरी साहब, रही सरकार की, तो एक तो यही बात जब दोबारा
वोट लेने उतरो तो इसको 'चुनावी जुमला' बना के उतारना, अच्छे से पता लग
जायेगा कि किसान आपके भरोसे है या आप किसान के|
दूसरी रही बात सरकार के भरोसे रहने वाली, ऐसा है जनाब आढ़त पे बैठ के किसान से बैर करना, घोड़े का घास से मुंह फेर लेने जैसा होता है| याद रखिये घास का तो घोड़े बिना काम चल जायेगा, पर घोडा दो दिन में भूखा मर जायेगा| और यहां यह घोडा आप हो और किसान घास| जिस दिन किसान ने पूरे FMCG sector को आप जैसों द्वारा सेकेंडरी प्रोडक्ट (secondary product) बनाने हेतु रॉ मटेरियल (raw material) रुपी अपना प्राइमरी प्रोडक्ट (primary product) ना देने का जाम बिठा दिया ना, उस दिन सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी| परजीवी हो के इतने बड़े बोल सजते नहीं आपके मुंह पे|
इसीलिए तो कहता हूँ, कि ऐसे लोगों को रेल-रोड जाम करने, जेल भरने या दिल्ली का दूध-पानी रोकने की भाषा समझ में ना आया करती, सारे किसान मिलके एक बार यह प्राइमरी और सेकेंडरी प्रोडक्ट के बीच की कनेक्टिविटी (connectivity) तोड़ के, एक महीना भी व्यापारियों से खाने-पीने के सामान को छोड़ (खाने-पीने का सामान भी इसलिए ताकि किसी व्यापारी का बच्चा बिना दूध के ना बिलखे) और इन धर्म के ठेकेदारों को दान-दक्षिणा और भाव ना देने का असहयोग आंदोलन चला दें तो नितिन गडकरी तो क्या, जनाब के फ़रिश्ते भी आके यह ना कहें तो कि 'हे किसान देवता, आप ही पालनहार हो, गलती हो गई माई बाप तोहफा कबूल करो!"
और ठेठ देशी समझ में आती हो तो देशी में सुन लो गडकरी बाबू, "दो दिन सिर्फ दो दिन तो गुजारे हमारे खेतों में हल पकड़ के, अगर ना आपके हांडे से पेट में भरी हवा फुस्स हो के खस्स हो जाए तो"।
अरे हम तो व्हट्स-एप्प, ट्विटर, फेसबुक वालों से जैसे मोबाईल कंपनियां रॉयल्टी/हिस्सेदारी मांग रही हैं, इंफ्रा प्रोवाइड करवाने की ऐसे देश के जीडीपी में खेती से आने वाले उस रॉ मटेरियल जिसके दम पे आपका पूरा FMCG sector चलता है, उसकी रॉयल्टी भी नहीं मांग रहे; फिर भी हमें चैन से ना जीने दे रहे| कसम दादा खेड़े की जिस दिन यह रॉयल्टी मांगनी शुरू कर दी ना तो जो यह खेती के नाम पे सिर्फ 14% जीडीपी दिखा रहे हो, यह 14 से 40 ना दिखे तो| शर्म कर लो जनाब कुछ! - फूल मलिक
दूसरी रही बात सरकार के भरोसे रहने वाली, ऐसा है जनाब आढ़त पे बैठ के किसान से बैर करना, घोड़े का घास से मुंह फेर लेने जैसा होता है| याद रखिये घास का तो घोड़े बिना काम चल जायेगा, पर घोडा दो दिन में भूखा मर जायेगा| और यहां यह घोडा आप हो और किसान घास| जिस दिन किसान ने पूरे FMCG sector को आप जैसों द्वारा सेकेंडरी प्रोडक्ट (secondary product) बनाने हेतु रॉ मटेरियल (raw material) रुपी अपना प्राइमरी प्रोडक्ट (primary product) ना देने का जाम बिठा दिया ना, उस दिन सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी| परजीवी हो के इतने बड़े बोल सजते नहीं आपके मुंह पे|
इसीलिए तो कहता हूँ, कि ऐसे लोगों को रेल-रोड जाम करने, जेल भरने या दिल्ली का दूध-पानी रोकने की भाषा समझ में ना आया करती, सारे किसान मिलके एक बार यह प्राइमरी और सेकेंडरी प्रोडक्ट के बीच की कनेक्टिविटी (connectivity) तोड़ के, एक महीना भी व्यापारियों से खाने-पीने के सामान को छोड़ (खाने-पीने का सामान भी इसलिए ताकि किसी व्यापारी का बच्चा बिना दूध के ना बिलखे) और इन धर्म के ठेकेदारों को दान-दक्षिणा और भाव ना देने का असहयोग आंदोलन चला दें तो नितिन गडकरी तो क्या, जनाब के फ़रिश्ते भी आके यह ना कहें तो कि 'हे किसान देवता, आप ही पालनहार हो, गलती हो गई माई बाप तोहफा कबूल करो!"
और ठेठ देशी समझ में आती हो तो देशी में सुन लो गडकरी बाबू, "दो दिन सिर्फ दो दिन तो गुजारे हमारे खेतों में हल पकड़ के, अगर ना आपके हांडे से पेट में भरी हवा फुस्स हो के खस्स हो जाए तो"।
अरे हम तो व्हट्स-एप्प, ट्विटर, फेसबुक वालों से जैसे मोबाईल कंपनियां रॉयल्टी/हिस्सेदारी मांग रही हैं, इंफ्रा प्रोवाइड करवाने की ऐसे देश के जीडीपी में खेती से आने वाले उस रॉ मटेरियल जिसके दम पे आपका पूरा FMCG sector चलता है, उसकी रॉयल्टी भी नहीं मांग रहे; फिर भी हमें चैन से ना जीने दे रहे| कसम दादा खेड़े की जिस दिन यह रॉयल्टी मांगनी शुरू कर दी ना तो जो यह खेती के नाम पे सिर्फ 14% जीडीपी दिखा रहे हो, यह 14 से 40 ना दिखे तो| शर्म कर लो जनाब कुछ! - फूल मलिक
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