Sunday 28 June 2015

एक वीर यौद्धा बाबा बंदा सिंह बहादुर जी!


चंडीगढ़ के पास बुड़ैल गाँव है, जो गुलामी के दौर में मुस्लिम रांघड़ के अधिपत्य में होता था| यहां का फौजदार हिन्दू धर्म की तमाम 36 बिरादरी की औरतों को शादी के तुरंत बाद कुछ दिन अपने पास रखता और फिर पति के घर जाने देता| बुड़ैल के स्थानीय ग्रामीण इस बाध्यता से तंग थे और इसपे सितम तो यह था कि यह इलाका मूलरूप से इस मुस्लिम रांघड़ की हिन्दू जाति बाहुल्य था|

जब इसकी शिकायत बाबा बंदा सिंह बहादुर जी को पहुंचाई गई तो उन्होंने 1712 में 80% जाट योद्धाओं से सुसज्जित टुकड़ी के साथ बुड़ैल के फौजदार को मार दिया और इस अमर्यादित कुकर्म का खात्मा किया| उसके बाद बुड़ैल में बाबा जी का गुरुद्वारा बनाया गया जो कि आज भी मौजूद है|

ऐसे ही किस्से जब हम कलानौर रियासत की तरफ आते हैं तो वहाँ के सुनने को मिलते हैं| यह भी मुस्लिम परमार रांघड़ द्वारा शाषित रियासत थी और इसके इर्द-गिर्द के 10-12 गाँव इसी रांघड़ की हिन्दू जाति बाहुल्य थे जो कि आज भी हैं| तब ऐसा ही अमर्यादित तंत्र एक रात हेतु इसने सिर्फ आसपास के ही नहीं अपितु दूर-दराज वालों के यहां से गुजरते डोलों पर भी चलाया था| तो ऐसे ही इनके यहां से जब एक जाट बारात गुजरी तो इन्होनें उस डोले को उतारना चाहा परन्तु उस डोले में बैठी दुल्हन गठवाला खाप की दादीरानी समाकौर गठवाला ने इसका विरोध किया और वहाँ से भाग निकली व् अपने मायके आ अपने पिता से पूछा कि, "मैं जाटों के ब्याही हूँ तो कालनौरिया मेरा डोला कैसे रोक सकता है?" इस पर उनके पिता ने गठवाला खाप हेडक्वार्टर आहुलाना गोहाना सन्देश भिजवाया| वहाँ से गठवाला खाप ने तमाम खापों को चिट्ठी फाड़ी (यानी ऑफिसियल लेटर भेज कर सर्वखाप महापंचायत बुलवाई, यहां मीडिया के वो भीरु ध्यान देवें कि कोई भी खाप पंचायत ऑर्गनाइज कैसे की जाती है) और फिर हुआ 1620 में गठवाला खाप की अगुवाई में कलानौर के पास गढ़ी-टेकना का रण तैयार| खाप की इस कार्यवाही के लिए लीडर दादावीर चौधरी ढिलैत जी की कमांड तले पूरी कलानौर रियासत को नेस्तो-नाबूत कर खापों ने इस जुल्म को खत्म किया|

ऐसे ही झज्जर के पास 17 गाँव राजपूत जाति बाहुल्य हैं, जहां की तमाम हिन्दू औरतों पर भी ऐसे ही जुल्म हुआ करते थे| तब यहां के स्थानीय खुडान गाँव के पूनिया गोती (गोत्री) जाटों ने इन गाँवों को रांघड़ों के जुल्मों से मुक्त करवाया था| आज भी यह 17 गाँव, खुडान गाँव के पूनिया जाटों के सर पगड़ी रखते हैं| बाकी सही-सही जानकारी की वर्तमान यथास्थिति इन गाँवों में जा के प्रत्यक्ष देखी जा सकती है|

खरखौदा, हसनगढ़ और भरोटा को भी इन्हीं वजह से तोड़ा गया था|

बड़ा गर्व महसूस होता है जब बहादुर जातियों के ऐसे आपसी सहयोग के किस्से सुनने और पढ़ने को मिलते हैं। काश! सोशल मीडिया पे आपस में भिड़ने से पहले इन जातियों के आज के नादान युवा इन ऐतिहासिक बारीकियों को समझें और ऐसे ही आपसी सहयोग और तालमेल से रहें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

 

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