Sunday 28 June 2015

मुझे हिन्दू शब्द का भविष्य बताओ, इसको शास्त्र-ग्रंथों में स्थान दिलवाओ!


हिन्दू शब्द का अस्तित्व तभी तक है जब तक इसको भुनाने वालों को एक प्रतिद्ंवदि धर्म विशेष से डर है; जिस दिन यह डर खत्म उस दिन हिन्दू शब्द को ऐसे उतार के त्याग दिया जायेगा, जैसे सांप अपनी केंचुली त्याग देता है|

क्योंकि हिन्दू शब्द का इतना ही धार्मिक औचित्य होता और इसको भविष्य में भी आगे बढ़ाने का प्लान होता तो अब तक इस शब्द को तमाम ग्रन्थ-शास्त्रों में जगह मिल चुकी होती|

समय भले ही दशक लगे, अर्धशताब्दी लगे, शताब्दी लगे या शताब्दियाँ लगे, परन्तु यह पूर्वनिर्धारित है और अवश्यम्भावी है|

जिसको मेरी बात अटपटी लगे, वो जा के इस शब्द को भुनाने वालों से पूछ लेवें| और मुझे कहने की आवश्यकता नहीं है कि जब इस शब्द को त्यागा जायेगा तो इसकी रिप्लेसमेंट में कौनसा शब्द तैयार करके रखा जा चुका है| और खुद हिन्दू शब्द भुनाने वालों ने इस शब्द को धर्म नहीं अपितु जीवनशैली की एक पद्द्ति कह के इसको रास्ते से हटाने की समानांतर तैयारी शुरू भी कर दी है|

इसपे भी जिसको जिसको यकीन ना हो वो मेरी इस पोस्ट के स्क्रीनशॉट ले लेवें, कहीं बहुत ही सुरक्षित जगह पे सेव कर जावें| आप अपने जीवन में ऐसा होते हुए नहीं देख पाएं, तो गाली देते हुए ही सही परन्तु अपने बच्चों को जरूर कहना कि इस फूल कमीने की बात जब सच होवे तो हमें स्वर्ग में खत डाल के अवगत करवा देवें| साथ ही उनको यह भी लिख जावें कि नए नाम के तहत हमें स्वर्ग में ही रहना है या हैवन (heaven) अथवा जन्नत या इसके ही जैसे नए शब्द के रूप में ईजाद की गई जगह पे शिफ्ट होना होगा| कोई डाकिया/ईमेल ना मिले तो हमारे श्राध वाले दिन कौव्वे को खीर खिलाने की जगह यह चिठ्ठी उसकी चोंच में बत्ती बना के उसको गिटका देवें, वो हम तक पहुंचा देगा; ठीक वैसे ही जैसे कव्वे की खाई खीर सीधी स्वर्ग में बैठे पुरखे खाते हैं|

वैसे मुझे अचंभा भी होता है कि जिस शब्द को अब आ के धर्म नहीं अपितु जीवन जीने की एक शैली बताया जाने लगा है, उसी शब्द के नाम से भारत में सिर्फ एक वर्ग विशेष ही कानूनी कागजों में इस शब्द को धर्म के नाम से क्यों दर्शाता है; उस वर्ग विशेष के इस शब्द से 'हिन्दू मैरिज अधिनियम 1955' बने हुए हैं और तमाम तरह की कानूनी और सरकारी योजनाये भी हैं, परन्तु दूसरी तरफ इस शब्द को शास्त्र-ग्रंथों में कोई जगह ही नहीं। यह भी एक दूसरी और ख़ास वजह है इस शब्द को ले के मेरे संशय की।

बात कड़वी है, बहुतों को चुभेगी, परन्तु सोलह आने डंके की चोट पे सच्ची है|

इसलिए इस शब्द से अपने आवेश और परिवेश को बांधने वाले जितना जल्दी हो सकें उतना जल्दी इसको शास्त्र-ग्रंथों में एंट्री दिलवाने बारे आंदोलन चलायें अथवा चलाने पे मंत्रणा करें|

वैसे एक पक्ष इसका यह भी है कि जो सांप की केंचुली की भांति बदल दिया जाए वो धर्म स्थाई या अपने वंश-कुल का खून स्थाई?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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