विधवा विवाह का मूल अर्थ
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Saturday, 20 August 2022
विषय: जाटों व् उसकी मित्र जातियों में विधवा विवाह, वर्णवादियों द्वारा उसके बारे फैलाये नकारात्मक पहलु व् इस विवाह के विधान अनुसार इसके सकारात्मक पहलू!
Friday, 19 August 2022
ठीक-ठीक लगा यार; क्यों पुरखों के कल्चर का बेखळखाना बनाने पे तुले हो?
अभी दो दिन पहले राखी मना के हटे हो, और आज उन्हीं बच्चों को रासलीला वाली ड्रेसेज पहना के BF-GF बना के मटकियां फुड़वा भी रहे हो? चाहते क्या हो अपने कौम-कल्चर से आप ऐसे लोग?
भाभियों को बहन कहना व् देवर-जेठों को भाई साहब कहना; अति-मर्दवादी समाजों का कल्चर है हमारा नहीं!
ऐसे मर्दवादी समाज, जो माँ की हॉनर किलिंग करने वाले को भी भगवान मानते हैं; यह उन समाजों का कल्चर है| हॉनर किलिंग करने वाला जहाँ भगवान हो, वहां औरत कितनी दबा के रखी जाती है, इसी से अंदाजा लगा लो|
यह लोग बेहद वासनाकृत लोग हैं, इनके यहाँ सगी बेटियों को देख संखलित हो जाने वाले उदाहरण होते हैं; इनके चलते इनकी औरतें बहुत शर्म व् डर महसूस करती यहीं| और उनमें इनके प्रति कुंठा भर जाती है|
यह कुंठा फूट के कहीं बाहर ना निकल पड़े; इसलिए देवर-जेठ को "भाई साहब" बोल के उस कुंठा को कुछ हद तक शांत रखवाने के चोंचले हैं यह इन अति-मर्दवादी समाजों के|
जाटों में, देवर-जेठ मतलब देवर-जेठ व् भाई-बहन मतलब भाई-बहन|
हमारे यहाँ ना तो हॉनर किलिंग करने वाले को भगवान बनाते, ना बेटियों को देख संखलित होने वालों को व् ना ही अपनी बहन को अपनी बुआ के लड़के के साथ भगाने वाले को| कोई ऐसा हो भी जाता है हमारे समाजों में तो उसको या तो समाज से निष्काषित करते हैं या उसके हाल पे छोड़ देते हैं|
कोई मेल ही नहीं है जी सोच से ले अचार-व्यवहार किसी का भी|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Tuesday, 16 August 2022
जालौर घटना के लिए जितना जिम्मेदार रूढ़िवादी वर्णवाद है, उतने ही SC/ST व् OBC समाज से आने वाले IPS/IAS ऑफिसर्स व् फ़ौज के कमीशंड अफसर भी जिम्मेदार हैं!
जालौर जैसी घटना के पीछे दोष तो SC/ST व् OBC समाज से आने वाले उन IPS/IAS ऑफिसर्स व् फ़ौज में इन तबकों के उन कमीशंड अफसरों का भी है; जहाँ आम कांस्टेबल/थानेदार/फौजी उस लिफ्ट से नहीं जा सकते जिससे यह अफसर जाते होते हैं, उन मैस या बर्तनों में नहीं खा सकते जिनमें यह अफसर खाते हैं|
जब इस स्तर पर जा के यह लोग, इन प्रोक्टोकॉलस को डिपार्टमेंट के अंदर सब के लिए बराबर नहीं कर/करवा सकते, तो किस SC/ST या OBC से उम्मीद करते हो इन चीजों को सुधारने की? उससे जो दो जून की रोटी अगले दिन कैसे कमानी है; आज की दिहाड़ी खत्म होते ही इस चिंता में जीवन जीता है?
दरअसल, SC/ST व् OBC के अफसरों ने ना कभी इन विभागों के इस भेदभाव को खत्म करने को चिंता दिखाई और ना ही मिथक चरित्रों पर फंडियों द्वारा इनकी बना दी जाने वाली पहचान पर?
ऐसे तो भाई, कितनी सदियां और निकाल लेना; नहीं निकल पाओगे फंडियों के वर्णवाद के चंगुल से|
जय यौधेय! - फूल मलिक
जालौर काण्ड हुआ वर्णवाद के चलते, दोष जातिवाद पे; करेक्शन करो यार!
जालौर में दलित बच्चे द्वारा मटके से पानी पीने पर मारने से उसकी मौत का कारण बनने वाला है, एक वर्णवादी; परन्तु दोष जातिवाद पर?
तुम्हारे दिमाग में कोई लोचा है क्या? वर्णवाद को वर्णवाद कहो ना? खामखा, रॉंग चैनल (wrong channel) पकड़े चल रहे दशकों से! वर्णवाद का शोर करो, फिर देखो नतीजा! वह वर्णवाद जो ना कर्म आधारित व्यवहारिक है और ना जन्म आधारित! थोथा सगूफा छोड़ रखा है, ना जाने कब से!
यह जन्म आधार पर सही होता तो ब्राह्मण वर्ण में सब अध्यापक, वाचक ही पैदा होते; दिल्ली -एनसीआर में रिक्शा चलाने वाला हर दूसरा पांडे-मिश्रा ना होता या खेती करने वाले पैदा ना होते इस वर्ण में| ऐसे ही जन्म आधार पर क्षत्रिय वर्ण में क्षत्रिय ही पैदा होते व् वैश्य व् शूद्र वर्णों में वैश्य व् शूद्र ही पैदा होते; यह वर्ण-क्रॉस कर क्षत्रियों में शूद्रमति वाला, शूद्रों में वैश्यमति वाला पैदा ना होता|
और ना ही यह कर्म आधारित व्यवहारिक है; ऐसा होता तो एक प्रोफेसर बने शूद्र को ब्राह्मण का सर्टिफिकेट मिलता व् एक रिक्शा चलाने वाले ब्राह्मण को शूद्र का|
मिलता है क्या ऐसा कुछ, कोई संस्था, कोई सिस्टम जो कर्म-के-आधार पर वर्ण बदलता हो? नहीं है, बल्कि जो जहाँ पैदा हो रखा वह ताउम्र वही लाभ-हानि-दंश झेलते-भोगते हुए जीता है; जीता है या नहीं?
तो है कोई व्यहारिकता इस कांसेप्ट में; खामखा गोबर-ज्ञान में टूटे रहते हो व् इसी को ढोते रहते हो|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Sunday, 7 August 2022
फसल-नस्ल-असल: जिस समुदाय के यह तीनों दुरुस्त हैं, वह संख्याबल में कम हो के भी सबसे पावरफुल है!
1) - फसल: कृषक है तो उसके लिए खेती की उपज उसकी फसल है, व्यापारी है तो उसका व्यापार उसकी फसल है, नौकर है तो उसकी नौकरी|
2) - नस्ल: आपकी अगली-पिछली पीढ़ियों के जैनेटिक्स|
3) - असल: आपके समुदाय की दार्शनिक विरासत यानि किनशिप|
फसल व् नस्ल की दुरुस्ती का भी आधार है असल| अगर आपका असल नहीं है अथवा अस्त-व्यस्त बिखरा हुआ है तो आपकी फसल व् नस्ल को फंडी जीमता है, वह भी डंके की चोट पर| बिना असल का समुदाय ही दरिद्र है|
ऐसे ही उदारवादी जमींदारी समुदाय है उत्तर-पश्चिमी भारत में, जिसका असल हैं उसके खाप-खेड़े-खेत| इतिहास में झाँक के देखो जब-जब यह समुदाय अपने असल पर दुरुस्त रहा है तो समाज की इकॉनमी की धुर्री रहा है| इसलिए इस दार्शनिक विरासत को सबसे ज्यादा तन्मयता से लीड करने वाली जाति को "जी" व् "देवता"; इसकी दार्शनिकता पर ही गिद्द-दृष्टि रखने वालों द्वारा इसीलिए लिखा-कहा-गाया गया; क्योंकि इसी दार्शनिकता के चलते यह समाज के इकनॉमिक (आर्थिंक) पहिये की धुर्री बनते आए| परन्तु यह इस लिखत व् गाने से सुस्त होता चला गया, क्योंकि यह इसके अपनों ने नहीं लिखी थी व् दिग्भर्मित करने वाली बात थी, जिसके चलते यह उदारवादी से अति-उदारवादी होता गया| व् अति किसी भी चीज की बुरी होती ही है, तो इसके नतीजतन आज इनका असल अस्त-व्यस्त हालत में है और जिसकी वजह से यह 35 बनाम 1 झेल रहा है| और झेलता ही रहेगा जब तक अपने असल यानि अपनी दार्शनिक विरासत को अस्त-व्यस्त से व्यस्त नहीं करेगा|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Wednesday, 3 August 2022
"ओए, तुझे ईगो प्रॉब्लम है क्या"? - आखिर क्या है यह बला?
आगे बढ़ने से पहले एक तो यह जान लें कि इंडिया के जितने भी जानेमाने गुरु-प्रवचन देने वाले हुए हैं या हैं लगभग सभी छुपे रूप से जिनसे मनोविज्ञान का ज्ञान चुराते हैं, आईये सीधा उनमें से एक सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत से समझते हैं कि क्या बला है ईगो। सिगमंड फ्रायड के सिद्धांत के अनुसार हर इंसान की तीन तरह की न्यूरोलॉजी यानि मानसिक अवस्था होती हैं, जिनमें ईगो आपको बीच में लटकाने वाली चीज है:
(1) आईडी/ID (इदम) न्यूरोलॉजी: जैसे आपकी बाह्य शक्ल-सूरत की एक सामाजिक आइडेंटिटी व् नाम होता है, ऐसे ही यह आपकी आंतरिक आइडेंटिटी होती है। आपकी आंतरिक आइडेंटिटी इच्छा / वासना / आकांक्षा / लालच / मूढ़ता से बनी होती है। आईडी व्यक्तित्व इंसान व् पशु दोनों में समान पाया जाने वाला एक पाशविक (पशु) हिस्सा है, जो कि ज्यादा यौन-क्रिया करने, जीवित रहने और पनपने मात्र तक की एक अचेत अवस्था है, जो बच्चे को दंभी अथवा दब्बू दोनों में से एक बना देती है। पशु इससे आगे विकसित नहीं हो पाते, परन्तु क्योंकि इंसान को प्रकृति ने इससे आगे विकसित होने का गुर बख्शा है तो वह अपने आपको इससे आगे विकसित कर सकता/ती है। जो ऐसा नहीं करता, वह खुद के शरीर को खुद खाने लगता है। सही समझ, देखभाल व् माहौल नहीं मिल पाने की वजह से शरीर के विकास का खुद ही दुश्मन बन बैठता है। और अगर यह दुश्मनी चिरस्थाई हो जाए तो ऐसा व्यक्ति "कस्तूरी वाले हिरण" की ज्यों कस्तूरी की तलाश में ही मर जाता/जाती है। इनको "भरी थाली को ठोकर मारने वाले भी कहा जाता है"। यह समस्या घर के भीतर-बाहर दोनों जगह से आपके बच्चे में आ सकती है। परिवार के भीतर बचपन में बच्चों को इस ट्रैक पर जानबूझकर भी धकेला जा सकता है व् जवानी या किशोरावस्था में वह खुद भी इसका शिकार हो सकता/सकती है। परन्तु अगर जन्म से 10 साल तक का वक्त बच्चे का सही देखभाल, निगरानी व् जिम्मेदारी से निकलवा दिया जाए तो किशोरावस्था में उसमें यह समस्या आने के आसार नगण्य होते हैं। घर से बाहर फंडी का गपोड़ ज्ञान व् प्रवचन आपके बच्चे को इसी अवस्था तक रोकने हेतु फंडियों के साइकोलॉजिकल वॉर गेम का हिस्सा होता है, इसलिए अपने बच्चों को इनसे अवश्य बचाएं।
(2) अहंकार/Ego (अहम) न्यूरोलॉजी: अहंकार वह जगह है जहां चेतन मन रहता है। यह एक यथार्थवादी और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके से आईडी/ID की जंगली इच्छाओं को पूरा करने के मुश्किल काम से भरा हुआ है। यह ID व् Super-Ego के मध्य की अवस्था है। यही वह स्टेज है जिसमें आपको लोगों से यह सुनने को मिलता है कि इसमें तो ईगो ही बहुत है। दरअसल यह अवस्था इस वजह से आती है क्योंकि आपने अभी तक अपनी नैतिकता व् विवेक को नहीं पहचाना होता है। हर आदर्श अभिभावक को अपने बच्चों को इस अवस्था से अगली अवस्था तक नहीं ले जाने तक उनकी जिम्मेदारी अधूरी रहती है।
(3) सुपर अहंकार / Super-Ego (परम-अहम) न्यूरोलॉजी: सुपर-ईगो व्यक्तित्व का नैतिक घटक है और उसे उसके नैतिक मानकों को प्रदान करता है जिसके द्वारा अहंकार यानि Ego को संचालित किया जाना होता है। सुपर-ईगो द्वारा की गई आलोचनाएं, निषेध और अवरोध एक व्यक्ति के विवेक का निर्माण करते हैं, और इसकी सकारात्मक आकांक्षाएं और आदर्श व्यक्ति की आदर्श आत्म-छवि, या "अहंकार आदर्श" का प्रतिनिधित्व करते हैं। मूलरूप से कहा जाए तो आपके नैतिक मूल्य आपकी सुपर-ईगो हैं। इन तक पहुंचा हुआ व्यक्ति ही ईगो व् आईडी को कण्ट्रोल कर सकता है| इसलिए सुनिश्चित कीजिए कि आप या आपके बच्चे सुपर-ईगो तक विकसित किए गए हों|
और इन्हीं को हमारे महारथियों ने इनसे कॉपी मार तामसिक, राजसिक, सात्विक की व्याख्याएं घड़ रखी हैं; बिना इनको क्रेडिट दिए| यही काम है इन फंडियों का|
जय यौधेय! - फूल मलिक