मोठ लुहारी गांव है हांसी के पास। आजादी से पहले यहां राघड बसते थे, कुछ घर जाटों व दूसरी जातियों के भी थे। दबदबा मुस्लिम राजपूतों का ही था। यहां के दलितों को पीने के पानी के लिए कुंआ खोदना था। शामलाती जमीन पर जब ये कुंआ खोदने लगे राघडों ने जूते मारकर भगा दिया।
बात भगत फूल सिंह मलिक तक पहुंची। कांधे पर चादरा रखकर वो मोठ लुहारी चले आए। मोठ वालों ने सोचा दलित किसी मोडे को मदद के लिए लाए हैं। भगत जी ने समझाया लेकिन रांघड इस बात के लिए तैयार नहीं हुए कि कुंआ खोदने देंगे। भगत जी ने अनशन दे दिया। तीन चार दिन ही हुए थे राघडों के कई छोरे भगत जी को रात को उठा ले गए और मरा हुआ मानकर जंगल में छोड गए।
सुबह एक लाला जी जंगलपाणी के लिए गए तो भगत सिंह को करहाता हुआ पाया। इसके बाद उनको नारनौंद के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। बात चौधरी छोटूराम तक पहुंची तो उन्हेांने चौधरी माडू सिंह जी को मौके पर भेजा। सेठ छाजूराम ने भी संदेशा भिजवाया कि पचास कुएं खुदवा दूंगा आप जिद छोड दें वहीं कुएं की।
भगत जी ने कहा कि बात कुएं की नहीं है सम्मान की है। अब तो कुआं शामलात जमीन पर ही बनेगा और उसका ही पानी पीकर अनशन तोडूंगा। राघड माने तब भी कुंआ खोदने में 23 दिन लगे और चौधरी छोटूराम ने खुद पानी पिलाकर भगत जी का अनशन तुडवाया। महात्मा गांधी ने अपने हरिजन सेवक अखबार में इसका विवरण लिखते हुए कि मेरे राजकोट के अनशन में तपस्या कम रह गई लेकिन भगत सिंह फूल जी के तप मुझसे भी बडे हैं।
ऐसे महान भगत फूल सिंह जी की 14 अगस्त 1942 को फाैजी वर्दी में घोडों पर आए रांघड बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी। आज उनका बलिदान दिवस है।
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