Tuesday 22 September 2015

मैं आज आजीवन प्रण लेता हूँ कि, "मैं किसी 'हिन्दू अरोड़ा/खत्री' की दुकान से सूई तक भी नहीं खरीदूंगा!"


फिर चाहे मुझे दस दुकान छोड़ के आगे से सामान लाना पड़े, चाहे मुझे एक शहर छोड़ के दूसरे शहर से लाना पड़े, परन्तु इनकी हर प्रकार की दुकानों पे कोई भी सामान लेने नहीं चढूंगा!

विद्यार्थी जीवन में कभी "हिन्दू अरोड़ा/खत्री" मित्र को सहपाठियों द्वारा 'रिफूजी' कहने का ना सिर्फ विरोध करने वाला अपितु उनको यह समझाने वाला कि यह हमारे भाई हैं, वही फूल कुमार मलिक यानि मैं आज ऊपरलिखित स्पथ को आजीवन धारण करता हूँ।

भारतीय सविंधान के विधेय, "मेरी स्वेच्छा से किसी से रिश्ता रखना, लेन-देन रखना या ना रखना" के मेरे सवैंधानिक अधिकार को प्रयोग में लाते हुए मैंने यह सवैंधानिक स्पथ ली है, और यह पूर्णत: कानूनी है|
इस स्पथ की वजहें:

1) महाराष्ट्र जैसे राज्य में कोई महाराष्ट्री एक बिहारी को सीएम स्वीकारने की कल्पना तक भी नहीं कर सकता, और वास्तव में बनाने की तो बात बहुत दूर की है। जबकि हम हरयाणवियों द्वारा एक गैर-हरयाणवी को बिना किसी अवरोध के सीएम स्वीकार करने के बावजूद भी, वर्तमान सीएम हरयाणा श्रीमान मनोहरलाल खट्टर, हरयाणा की सबसे बड़ी जाति जाट को "डंडे के जोर पे" चलने वाली बताते हैं। जबकि खुद जीवन भर आरएसएस के कैम्पों में डंडे घुमाते और लहराते रहे हैं।

2) पानीपत शहर में ट्रकों के कारोबार में जाटों द्वारा बढ़त बना लेने पर वहाँ के स्थानीय हिन्दू अरोड़ा/खत्री नेता श्रीमान सुरेन्द्र रेवड़ी कहते हैं कि जाटों ने उनका कारोबार छीन लिया। और यह कहते हुए वह 1947 से लेकर आज तक जाट समाज ने उनके समाज को यहां बसने में जो सहयोग दिया उसको एक झटके में सिरे से ख़ारिज करते हैं। वैसे तो आजतक किसी जाट ने ऐसी बात कही नहीं, फिर भी अंदाजा लगाइये कि अगर एक जाट यह बात कह दे कि इन्होनें हमारे रोजगार से ले कारोबार तक बंटवा लिए तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी?

3) रोहतक के वर्तमान एमएलए श्रीमान मनीष ग्रोवर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) की ऑफिसियल लेटर-पैड पर एमडीयू को लेटर जाता है कि यूनिवर्सिटी में जितने भी जाट अध्यापक अथवा कर्मचारी हैं उनके रिकॉर्ड चेक किये जाएँ। और पूछे जाने पर एमएलए साहब बड़ी गैर-जिम्मेदाराना ब्यान के साथ ना सिर्फ इससे खुद को अनजान बताते हैं वरन जो यह कृत्य करने वाला था उसकी छानबीन भी नहीं करवाते।

4) "गुड्डू-रंगीला" फिल्म में "हुड्डा खाप" का मजाक उड़ाने पर जब जाट समाज कलेक्टर को इस फिल्म के डायरेक्टर श्रीमान सुभाष कपूर (हिन्दू अरोड़ा/खत्री जाति) के खिलाफ शिकायत करने जाते हैं तो बजाय उससे माफ़ी मंगवाने में सहयोग करने के इसको जाटों की तानाशाही बताया जाता है।

5) सन 2005 में खाप सामाजिक संस्था के खिलाफ पंजाब और हरयाणा हाईकोर्ट में पीआईएल डालने वाला पंचकुला का श्रीमान साहनी एक "हिन्दू अरोड़ा/खत्री" था। जो कि शायद पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपने आप में इकलौता ऐसा मामला होगा।

6) इनकी तीन-तीन पीढ़ियां बीतने के बाद भी जब भी इनसे कोई पूछता है कि तुम्हारा मूल क्या है तो यह हरयाणवी ना बताकर पाकिस्तानी-पंजाबी बताते हैं।

7) हरयाणवियों और जाटों ने इनके पुरखों को अपने यहां बसाने हेतु जो अमिट सहयोग और दरियादिली दिखाई उसको याद रखने की बजाये यह लोग सिर्फ उन अपवादों को सीने से लगाए बैठे हैं जो किन्हीं स्थानीय असामाजिक तत्वों के चलते इनको मिले होंगे।

8) आप लोगों के लिए संस्कृति और सभ्यता एक घिनौना मजाक है इसीलिए आप जब पंजाब में होते हैं तो अपनी मातृभाषा हिंदी बताते हैं और जब हरयाणा में होते हैं तो पंजाबी बताते हैं। इसकी वजह से आपको सांस्कृतिक व् सभ्यता के स्तर पर समुदाय में सामाजिक भाईचारा व् सौहार्द की समझ नहीं है।
ठीक है हिन्दू अरोड़ा/खत्री भाईयो आपको जाटों से इतनी ही घृणा चलानी है तो लो फिर आप जी भर के चलाओ। परन्तु आज यह जाटनी का जाया भी आजीवन स्पथ लेता है कि आपकी दुकानों से एक सुई तक भी खरीदने नहीं चढूँगा।

विशेष:
1) जाटों और हरयाणवियों से अनुरोध है कि इनकी जाति में "पंजाबी" शब्द प्रयोग ना करें अपितु जो यह हैं वो ही प्रयोग करें और वह है "हिन्दू अरोड़ा/खत्री"। पंजाबी शब्द के प्रयोग से हम अपने ही सिख भाइयों से दूर हो जाते हैं। इसलिए यह जो हैं उसको सही शब्द "हिन्दू अरोड़ा/खत्री" से ही इनको सम्बोधन करें।

2) मेरा "हिन्दू अरोड़ा/खत्रियों" से कोई विरोध नहीं है, विद्यार्थी ज़माने में इनको 'रिफूजी' कहने वाले हर किसी का विरोध करने वाला व् उनको आगे से इनको 'रिफूजी' ना कहने की वकालत करने वाला यह "फूल मलिक" यानी मेरा अब इनकी सामाजिकता और व्यवहार को देखकर इनसे मन भर चुका है इसलिए मैं आज से इस स्पथ को आजीवन अपने जीवन में लागू करता हूँ।

3) भारतीय सविंधान के विधेय, "मेरी स्वेच्छा से किसी से रिश्ता रखना, लेन-देन रखना या ना रखना" के मेरे सवैंधानिक अधिकार को प्रयोग में लाते हुए मैंने यह सवैंधानिक स्पथ ली है, इसलिए यह पूर्णत: कानूनी है| इसको अपनाना, मानना या इसके प्रभाव में आकर ऐसा ही फैसला लेने के लिए आप अपने निजी अधिकार क्षेत्र कानून के तहत स्वतंत्र हैं। जो भी पाठक अपने विवेक से मेरे इस विचार व् प्रण का समर्थन करता है मैं उसका धन्यवादी होऊंगा।

4) क्योंकि खत्री जाटों में भी गोत (गोत्र) होता है, इसलिए यहां मेरा मंतव्य जाटों वाले गोत से नहीं अपितु 'हिन्दू अरोड़ा/खत्री' जाति से है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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