Sunday 11 October 2015

यू लाग्या हरयाणा के नॉन-जाट किसानों के भी ताड़ा सा!

अब भाई इस टाइटल को समझने के लिए शर्त है कि आपको हरयाणवी आनी चाहिए| खैर मैं टाइटल से आगे की बात पे बढ़ता हूँ|

राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की चासनी में वैसे तो एक-आधा जाट भी उतरा हुआ है परन्तु हरयाणे में जाट से ज्यादा नॉन-जाट किसान तो लगभग सारा ही उतरा हुआ है|

अब जब भी नॉन-जाट किसान या नॉन-जाट किसानी-परिवेश के मित्रों से बात करता हूँ तो सारे कहते हैं कि मार दिए इस खटटर ने तो बिन आई| बाधे पे किल्ला लिया 30000 का, उसमें जीरी हुई 17000 की, इसमें क्या तो नंगा नहा ले और क्या निचोड़ ले|

एक दूसरा नॉन-जाट मित्र बोला कि भाई चाचा जी खेती करते हैं, हमारे यहां की जमीन भी तगड़ी है और पानी भी खूब लगे है फिर भी 44000 का किल्ला उतरा, जबकि हुड्डा (जाटों से नफरत करने वाले ध्यान देवें) के राज में 130000 का किल्ला उतरा करता| और अबकी बार तो लागत भी पूरी ना हुई|

मैं भी पटाक दे सी बोल्या की ना मखा और ले ल्यो राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद के सुवाद, और चले जाओ जाटों से दूर और कर लो नफरत अभी बाकी रह री हो तो|

मखा चिंता ना करो, अभी तो एक ही साल हुआ है, चार साल और पड़े हैं| अगर 2019 आते-आते थारे घरों में इन तथाकथित राष्ट्रवादियों ने मुस्सों (चूहों) की कलाबादी ना करवा दी तो कहना| शरीर से धोले-चमकीले बाणे उतरवा के टांकी लगे लित्तर-लतेड़ ना पहरा दी तो कहना मुझे कि भाई के कहवे था|

दोनों भाई यूँ बोले यार क्यों हंसी उड़ा रहा| कोई हल बता|

मैंने भी कह दी मखा हल तो इब या तो श्री राजकुमार सैनी बतावैं या फिर खुद खट्टर| मखा एक काम कर लो आरएसएस के दफ्तरों में जा के ट्राई मार लो, हो सके है कि हिन्दू के नाम पे उनका हृयदा पिघल जा और जाट सीएम वाली सरकार से ज्यादा ना सही तो उसके बराबर भाव दिलवा दे|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

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