Friday 12 February 2016

वामपंथ हरयाणा में ज्यादा कामयाब क्यों नहीं हुआ?

क्योंकि इनके बंगाली आइडॉलॉजिकल गुरुज ने इनको हरयाणा में भी उसी प्रकार का सामंतवाद दिखाना चाहा जैसा बंगाल में था या अभी भी है| जब यह बंगाली वामपंथी नए-नए हरयाणा-पंजाब की धरती पर आये तो यहां के लगभग हर दूसरे किसान-जमींदार की बढ़िया-बढ़िया हवेलियां देखी जो कि बंगाल के गाँवों में इक्कादुक्का होती थी| तो इन्होनें सोचा कि हो ना हो यहां भी यह हवेलियां उसी तरह दलित-मजदूरों पर जुल्म करके बनाई गई होंगी, जैसे कि बंगाल के जमींदार करते हैं|

र खुद हरयाणवी वामपंथी, इनको गॉड्लाइक मानने के प्रभाव में यह ही नहीं समझा पाये कि यह सर छोटूराम की धरती है, यहां बंगाल की तरह जमींदार खेत के किनारे खड़ा हो के बंधुआ मजदूरी नहीं करवाता, अपितु बाकायदा मजदूर के साथ खुद भी खेत में कस्सी-क्सोला ले के खटता है और सीरी-साझी को बंधुआ नहीं अपितु बाकायदा एक साल के लिखित बही-खातों वाले कॉन्ट्रैक्ट पे रखता है|

यह बताने में फ़ैल रहे कि हरयाणा के मजदूर-दलित की वो समस्याएं नहीं है जो कि बंगाल वालों की हैं| वामपंथी विचारधारा तो ली, परन्तु बंगालियों की| सर छोटूराम वाली ले के चलते तो बहुत आगे पहुंच जाते| पर सर छोटूराम ठहरे जाट, उनको बंगाली स्वर्ण हरयाणवी वामपंथियों को कहाँ आइडियल मानने देते|

उल्टे, हरयाणा में जमने के चक्कर में यहां कि सभ्यता-संस्कृति-खाप सबकी छवि का मलियामेट करने में कोई कोर-कस्र नहीं छोड़ी| और इसीलिए यह लोग कभी भी हरयाणा में पैर नहीं जमा पाये|

आज जेएनयू के बहाने जब देखता हूँ कि अब यह लोग इनके एक्सट्रीम अपोजिट राइट वालों यानी आरएसएस-बीजेपी के सीधे निशाने पर आ गए हैं तो फीलिंग आ रही है कि "अब आया ऊँट, पहाड़ तले|"

इन्होनें अब तक सेंट्रल-लिबरल थ्योरी पे चलने वाले जाट-खाप के लत्ते उतारे थे, पता तो अब लगेगा इनको जब सुरड़ाई हुई सूरी की भांति सब कुछ नाक पे धर के चलने वाले एक्सट्रीम राइट्स से मोर्चा लेंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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