Monday 15 February 2016

जाटों द्वारा सैनी को प्रतिउत्तर देने के बाद अब मंडी-फंडी दलित-पिछड़ों को और कैसे जाटों के खिलाफ खड़ा करने के षड्यंत्र रचेगा!

निसंदेह पिछले 2-3 दिन से चल रहा जाट आंदोलन अकेले आरक्षण के लिए नहीं है, क्योंकि ऐसा होता तो जाट युवा आंदोलन को अपने हाथों में ना लेता; पहले की भांति अपने बुजुर्गों के साथ अपने घरों को लौट जाता| इतना शैलाब मात्र आरक्षण का मामला होता तो बिलकुल नहीं आता|

इसको शैलाब का रूप दिया है मंडी-फंडी की सरकार द्वारा पिछले डेड साल से जाटों को मानसिक रूप से तोड़ने, उनके नैतिक सम्मान को गिराने के लिए उन पर छोड़े गए राजकुमार सैनी, मनोहरलाल खट्टर और रोशनलाल आर्य जैसे लोगों के भैड़े और भद्दे जुबानी तीरों ने| कभी खट्टर बोला कि हरयाणवी कंधे से ऊपर कमजोर होते हैं तो कभी सैनी और आर्य गाली भरी जुबानों में बोले कि हमने जाटों को जवाब देने हेतु फलानि-धकड़ी ब्रिगेडें खड़ी कर ली हैं|

हरयाणा में जाट सीएम आया या नॉन-जाट; जाटों ने इसको कभी सीरियसली नहीं लिया| परन्तु इस बार गैर-जाट सीएम आने में 18 साल क्या लग गए कि आते ही जाटों के खिलाफ सारा माहौल ऐसा बना दिया जैसे जाट कोई किसान-जमींदार ना हो के किसी ऐसे मंदिर के पुजारी हों जो दलित को मंदिर में चढ़ने नहीं देता, बंगाल-बिहार के ठाकुरों-ब्राह्मणों की भांति दलित-पिछड़े से बेगारी करवाता रहा हो| डेड साल से जाट चुपचाप सब सुन रहा था क्योंकि जाट अपने और अपने पुरखों के खून-पसीने से सींची हुई इस हरयाणा की मिटटी के शांति और शौहार्द का प्रहरी रहा है| परन्तु जब प्रहरी पर ही वारों की इंतहा होने लगे तो प्रहरी कहीं तो जा के फूटेगा|

खैर, अब जो शैलाब आया है इससे सैनी तो शायद चुप हो जाए, परन्तु जाटों को ध्यान रखना होगा कि मंडी-फंडी चुप नहीं होगा| वो फिर से किसी नए राजकुमार सैनी को किसी नए पैंतरे के तहत जाटों पे तानेगा| मुझे इसके संशय आज विभिन्न पोस्टों पर कमेंटों से पढ़ने में मिले| जिनमें कुछ दलित-पिछड़ों के यह कमेंट आ रहे थे कि भाई जाटो तुम तो मालिक हो हरयाणा के, हमें भी कुछ जमीनें दे दो| हमारे पास कुछ भी नहीं| और इसी तरह के और भी बहुत से सवाल आएंगे, जिनके जवाब अब जाटों को तैयार रखने होंगे|

ऐसे सवाल करने वाले भाईयों को कहा जाए कि भाई जाट एक बार आपको बिना किसी विरोध के जमीनें लेने देने में सहयोगी रहे हैं; अब एक बार जमीनों की तरफ मुंह करना छोड़ के मंदिरों और फैक्टरियों वालों की तरफ भी मुंह कर लो| और वो क्यों कर लो, वो इसलिए कर लो|

1980-1990 के दशकों में एक बहुत ही मसहूर दलित कल्याण योजना आई थी जिसके तहत हरयाणा के हर गाँव में खाली पड़ी जमीनें दलितों को खेती-किसानी करने हेतु बांटी गई थी और इसके लाभार्थी दलितों को 1.5 से 1.75 एकड़ जमीन प्रति परिवार मिली थी| हाँ वो बात अलग है कि आपके लोग आज उन जमीनों में से 80% से अधिक जमीनें बेच चुके हैं| इसलिए जाटों का आपको जमीनों के मालिक बनने से विरोध होता तो जाट इस योजना का विरोध जरूर करते, परन्तु किसी भी जाट ने कभी इसके विरोध आवाज उठाई हो, इस योजना के सम्पूर्ण जीवनकाल में आज तक ऐसा कोई वाकया नहीं|

दूसरी बात दलित-पिछड़े भाई अपने बुजुर्गों से पूछें कि क्या जाट ने जमीनें ऐसे तरीकों से हथियाई हैं जैसे साहूकार-सूदखोर किसानों-मजदूरों से ब्याज कमाते थे, उनकी सम्पत्तियों की कुर्की करते थे; या फिर ऐसे तरीकों से जैसे मंदिर वालों ने समाज का उल्लू बना-बना धन और धार्मिक संस्थानों के नाम पर लाखों-लाख एकड़ जमीने ढकारे बैठे हैं, अकूत सम्पत्ति पर कुंडली मारे बैठे हैं? आपकी जानकारी के लिए बता दूँ भारत के मंदिरों में दान के नाम पे आने वाला सालाना पैसा भारत के सालाना बजट (2012 में 13 लाख करोड़ रूपये) से भी ज्यादा होता है|

मुझे पूरा विश्वास है आपके बुजुर्ग आपको उनके और उनके पुरखों के जमाने याद करके बताएँगे कि नहीं जाटों ने तो अपनी मेहनत से खाली पड़ी बंजर जमीनों को अपनी पीढ़ियां गला-गला के, हाड-तोड़ मेहनत से, खुद को हलों में जोत-जोत के, पत्थर-जंगल काट-काट के हरयाणे की जमीनों को समतल करके अपना बनाया है| वो आपको बताएँगे कि आज जितना सुन्दर और स्पाट हरयाणा दीखता है यह यूँ ही नहीं कोई जाटों को आ के दान कर गया था| वो आपको बताएँगे कि हाँ बेशक हमने उनके यहां मजदूरी करी, हमारे जाटों से कारोबारी झगड़े रहे, परन्तु जाटों ने हमें धर्म-पाखंड-छूत-अछूत के नाम पे कभी ऐसे एकमुश्त जलील नहीं किया, जैसे मंडी-फंडी करते हैं|

तो दलित-पिछड़े भाईयों के ऐसे सवालों पे जाट विनम्रता से जवाब देवें कि भाई किसान बनने का एक मौका आप के बुजुर्ग ले चुके, हम तो आपको फिर से इसमें सहयोग कर देंगे| परन्तु फ़िलहाल आप लोग इन मंदिरों की सम्पत्ति और दान में हिस्सा मांगों, जिसका पुजारी लोग किसी को हिसाब तक देना गंवारा नहीं समझते| इन फैक्टरियों वालों से हिसाब मांगों जिनके यह मंडी-फंडी की सरकारें एक कलम में लाखों-करोड़ के कर्जे माफ़ कर दे रही है| किसान तो उल्टे आपकी ही तरह इनकी मार झेल रहे हैं| किसानों के चंद सौ करोड़ के कर्जे माफ़ करना तो मुहाल, सब्सिडियाँ तक खत्म करके दोहरी मार मारी जा रही है|

पिछड़े ज्यादा विरोध करें तो उनको हर जाट समझाये कि पिछड़े को अगर 27% से 60% आरक्षण मिल सकता है तो वो तभी मुमकिन है जब जाट पिछड़ा श्रेणी में आ जाए| खुद पिछड़ों से अग्रणी नेता शरद यादव तक यह बात कहते हैं कि अगर जाट पिछड़ा वर्ग में आ जाए तो अपनी संख्या के अनुपात में आरक्षण लेना बहुत आसान हो जायेगा| और सच मानो मंडी-फंडी इसी बात से डरा बैठा है कि अगर जाट ओबीसी में आ गया तो समझो आज आपका आधा आरक्षण जो यह बैकलॉग के बहाने अपने खाते चढ़ाये जा रहे हैं, वो इनसे छिन जायेगा| बस यही सबसे बड़ी वजह है कि क्यों हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े सजा रखे हैं|

आप जाटों को ओबीसी में आ जाने दो, फिर चाहो तो ओबीसी में भी जातिगत लाइन खिंचवा लेना| परन्तु ऐसे जाटों से बिछड़े रहे तो समझ लेना आपको पिछड़ा रखने के मंडी-फंडी के मंसूबों को ही पूरा करने के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा| आप जो अपनी संख्या के अनुपात में आरक्षण का ध्येय रखते हो वो कभी सिरे नहीं चढ़ेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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