Thursday 24 March 2016

यही सोशल मीडिया तो सही मायनों में ग्लोबलाइजेशन है!

फेसबुक पे लिखने से क्रांति नहीं आती! - बोलने वालों के लिए!

तुम क्रांति की बात करते हो, आज मोदी-खटटर जो पीएम और सीएम बन हरयाणा के भाईचारे की तार-तार बिखेर रहे हैं वो इसी फेसबुक की बदौलत तो है| अंधभक्तों की पूरी फ़ौज ने जो सोशल मीडिया के जरिये माहौल खड़ा किया उसी ने आज यह दिन दिखा रखे हैं देश को| हाँ वो अलग बात है कि इन्होनें इसका प्रयोग समाज को तोड़ने और नफरत फ़ैलाने हेतु किया| परन्तु ऐसे भी बहुत हैं जो जागरूकता फ़ैलाने हेतु कर रहे हैं और लोग उनको पसंद भी कर रहे हैं|

क्योंकि लेखनी और सोशल मीडिया विचारधारा को चलाती है, लोगों को नहीं| कभी-कभी लोगों को बहम हो जाता है कि उनको कोई इंसान चला रहा है, जी नहीं आपको इंसान नहीं उसकी विचारधारा चला रही होती है| कभी कई लोगों को बहम हो जाता है कि उनको ऊपर के लोग दबा रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह होती है कि ऐसे लोगों को ऊपर के लोग नहीं उनकी अपनी हीनता वाली सोच मार रही होती है| भले ही फिर वो विचारधारा किसी धरातल पर बैठे हुए की हो या मेरी तरह विदेशों में बैठ के भी धरातल की लिखने वालों की हो| मेरी क्रेडिबिलिटी ऐसे मामलों में थोड़ी ज्यादा इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि विदेश में बैठ के भी धरातल से जुड़ा रहता हूँ, परन्तु हीनभावना से ग्रस्त लोग इस बात को नहीं समझ पाते|

यही सोशल मीडिया तो सही मायनों में ग्लोबलाइजेशन है| इसको आत्मसात करो और इसको समझो कि इस सोशल मीडिया के युग में अपनी विचारधारा से लोगों में जागरूकता फ़ैलाने के लिए धरातल पर होना जरूरी नहीं; परन्तु हाँ विचार धरातलीय होने बहुत जरूरी हैं|

मुझे आज भी याद हैं वो 19-20-21-22 फ़रवरी की जाटों पे गोलियां चलवाने और हमलों की काली रातें और जो मेरे साथ इन काली रातों में पल-पल की खबर आपस में भाईयों को पास कर रहे थे, वो इसके साक्षी भी हैं| बहुत से साथी तो अपने मुंह से मेरे को यह कह के गए कि भाई मैदान छिड़ा बेशक हरयाणा में हो परन्तु इस लाइव कास्ट हो फ्रांस से रहा है| 4 की 4 रात ऑफिस-रिसर्च के काम छोड़ के एकटक टीवी और सोशल मीडिया पे बैठा था, ताकि सही खबर को आगे भाईयों तक पहुँचाऊँ और अफवाहों को ना फैलने देने में सहयोग दूँ|

जिससे सोशल मीडिया के माध्यम से हो पा रहा था, उससे सोशल मीडिया पे अन्यथा फोनों पे वार्तालापें चलती रही| ऑस्ट्रेलिया वाली कृष्णा चौधरी आंटी जी तो मेरे लाड लड़ाते हुए मेरी तन्मयता देख यूँ भी चुटकी ले जाती थी कि 'छोरे तुझे आरएसएस और बीजेपी वाले डिपोर्ट करवा लेंगे इंडिया, कित का मंड रह्या सै बावलों की ढाल|" और हँसते हुए आंटी जी को मैं यही जवाब देता कि आंटी फेर आप किस दिन खातर हो, छुड़ा लाईयो|

क्या जींद, क्या रोहतक, क्या गोहाना, क्या झज्जर, क्या सोनीपत, क्या करनाल, क्या भिवानी, क्या हिसार और क्या पानीपत; हर जगह से कोई आंदोलन-स्थल से तो कोई जाट-धर्मशालाओं से मेरे से जुड़ा हुआ था| हर कोई एकटक देख रहा था कि फूल भाई की खबर आएगी तो उसको ही सच्ची मानेंगे|

तो जो भाई अपरिपक्व सोच के हैं या मेरे को अपने लिए खतरा मानते हैं तो वह मुझे खतरा ना मानें| क्योंकि इंसान तो एक निश्चित समय के सफर के बाद आगे बढ़ जाता है, जो जिन्दा रहती है वो है उसकी विचारधारा| मेरे को होने का या अपनों में सम्मान पाने का कोई चीज जरिया है तो वह मैं नहीं अपितु मेरी सोच, विदेश में हो के भी धरातल से जुड़ा होना और एक निस्वार्थ कौम-समाज की सेवा-भावना| और विश्व में सबसे ताकतवर कोई सेवा है तो वो है विचारधारा की सेवा|

इसलिए फेसबुक से या कागजों पर लिखने से क्रांतियाँ नहीं होती, ऐसा सिर्फ वो लोग बोलते हैं जो एक बंद सोच में जीते हैं| सोच खुली करो और ग्लोबल बनो| यह दुनिया आपकी है सिर्फ जिला-राज्य या देश ही नहीं और ना ही सिर्फ इसके अंदर बैठे लोग, इससे बाहर की जियोग्राफी के लोग भी आपके ही हैं| आपके अपने हैं आपके शुभचिंतक हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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