Wednesday 13 April 2016

दलितों के पास हथियार होते तो अंग्रेज व् मुस्लिम नहीं जीत पाते! - आर्गेनाइजर

इनको बोलो कि जहां-जहां तुम्हारा 'मनुवाद' चलता था वहाँ-वहाँ नहीं रही होगी दलितों को हथियार उठाने की इजाजत, परन्तु जहां खापवाद चलता था वहाँ दलित किसानी जातियों से कंधे-से-कन्धा मिला के लड़ते थे| ऐसे ही कुछ एक उदाहरण यह रहे:

1) सन 1398 में मुहमद बिन तुगलक भी जिस तैमूरलंग को नहीं रोक पाया था, उस तैमूर लंगड़े को भारत से भगोड़ा बनाने वाली विजयी खापसेना के दो उप-सेनापतियों में एक हांसी के दलित दादावीर धूला भंगी बाल्मीकि जी थे|
2) 1355 में चंगेज खान की चुगताई सेना का मार-मार मुंह सुजा देने वाली खाप पंचायत सेना की 30000 की महिला-विंग टुकड़ी की 10 सहायक सेनापतियों में एक दादीराणी बिशनदेई बाल्मीकि जी और एक दादीराणी सोना देवी बाल्मीकि जी, दोनों दलित थी|
3) दादावीर मोहरसिंह वाल्मीकि जी: आप सन् 1529 में खाप पंचायत सेना के सहायक सेनापति थे; आपको राणा रायमल चित्तौड़ ने “मोहर तोड़” के वीरता पदक से आपकी वीरता के लिए सम्मानित किया था।
4) दादावीर मातैन वाल्मीकि जी: आप एक महान् मल्ल योद्धा थे जो अपनी 81 वर्ष की आयु तक में भी अखाड़ों में मल्ल युद्ध सिखलाते थे तथा पूरे प्राचीन हरयाणा के अखाड़ों का निरीक्षण करते थे।
5) अब तो खैर युद्ध नहीं होते और ना ही धाड़ें पड़ती, वर्ना गए दो दशक तक भी खपलैंड के लगभग हर गाँव में "खाप-पंचायतों" के पहलवानी दस्ते होते आये हैं; जो एक कॉल पर रातों-रात बताई जगह पे इकठ्ठा हो जाया करते थे| मेरे गाँव में जाटों के साथ-साथ धानक कम्युनिटी के लड़कों को पूरा गाँव घी-दूध-राशन-पानी दे के सिर्फ इसलिए पहलवान बनाता था ताकि खाप की एक कॉल पे कूच किया जा सके|

इसलिए यह 'आर्गेनाइजर" वाले उन दलितों-पिछड़ों तो को उल्लू बना सकते हैं जो खापलैंड से बाहर के भारत में बसते हैं, परन्तु उनको नहीं जो खापलैंड से हैं और अपने यहाँ की संस्कृति और परम्परा से वाकिफ हैं या रहे हैं| मतबल दलितों को रिझाने के लिए कुछ भी क्या?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Fake claim News source which compelled me to bring-up these facts:
http://navbharattimes.indiatimes.com/india/Arming-Dalits-could-have-helped-beat-invaders-RSS/articleshow/51805224.cms?utm_source=nbt&utm_medium=Whatsapp&utm_campaign=onpagesharing

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