Wednesday 13 April 2016

अंग्रेजों तक ने नहीं छेड़ी हमारी संस्कृति तो तुम क्यों छेड़ रहे हो?

अंग्रेजों ने Haryana को Hariyana नहीं लिखा क्योंकि यह था ही हरयाणा यानि हरा-भरा आरण्य; तो इसको हरियाणा क्यों लिखा जा रहा है?

अंग्रेजों ने 'Jind' को 'Jeend' नहीं लिखा क्योंकि यह था ही 'जिंद'। तो इसको हिंदी में 'जींद' क्यों लिखा जा रहा है? 'जिंद' एक पंजाबी शब्द है, जिसके नाम पर 'जिंद' रियासत का नाम है| 'जिंद' यानि 'जिंद ले गया दिल का जानी' गाने वाला 'जिंद'। कितना प्यारा नाम है| अब भाई रहम करना, कहीं कल को सुनने को मिले कि 'जिंद' का नाम भी बदल के जयन्तपुरी या जैतापुरी रख दिया| वर्ना तो फिर हमें उठ खड़ा होना ही पड़ेगा, इन्होनें तो हरयाणवी और पंजाबी संस्कृति को मिटाने की कसम सी खा ली है ऐसा लगता है| आज गुड़गांव का गुरुग्राम कर दिया, कल करनाल का किलोग्राम करेंगे, परसों पानीपत का 'पानीपुरी' करेंगे| गज़ब तो तब हो जायेगा जो अगर चंडीगढ़ का बदल के चड्ढीगढ़ कर दिया तो।

कभी चड्ढी बदल रहे हो कभी शहरों के नाम, भैया कुछ बदलना है तो अपनी मेंटलिटी बदलो।

भैया तुमको यहां रोजगार बंटवाना है हमने ख़ुशी-ख़ुशी बंटवाया है, अपने घर-मकानों तक में पनाह दे के बसाया है; परन्तु हमारी संस्कृति को मत छेड़ो, हम नहीं चाहते कि अब हमारा हरयाणा क्षेत्रवाद और भाषावाद के पचड़े में सुलगे| अंग्रेजों तक ने नहीं छेड़ी हमारी संस्कृति तो तुम क्यों छेड़ रहे हो?

खट्टर बाबू गुड़गांव का गुरुग्राम बनाओ या मेवात का नूहं, परन्तु यह कहावत तो बदलने वाली नहीं, "ब्रजभूमि ना बाह्मन की ना देवन् की, कुछ जाटन् की कुछ मेवन् की"।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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