Monday 4 April 2016

कट्टरवादी ताकतें कृपया "खाप के खौफ" को ना भुनावें!


आज जनसत्ता में एक फैब्रिकेटेड न्यूज़ आई है कि वेस्ट यूपी में किसी गुमनाम खाप ने मुस्लिमों का विरोध किया है। उस खबर में ना किसी खाप का नाम और ना किसी खाप के चौधरी का। हँसी आती है मुझे इनकी असहायता पर।

यानि अब इनकी खुद की नहीं चल रही तो यह "खाप के खौफ" को भुनाना चाहते हैं। इन कुंठित लोगों से आग्रह है कि आपको अपने संगठन के नाम पे जो आग लगानी है लगाओ, परन्तु "खाप" शब्द को मत घसीटो इसमें।

खाप सदियों से जातिपाती व् धर्म से रहित शुद्ध सेक्युलर संस्था रही है।
1) 1669 में औरंगजेब के दरबार में कत्ल किये गए 21 खाप चौधरियों में एक मुस्लमान भी था।
2) महाराजा सूरजमल ने भरतपुर में अगर लक्ष्मण मंदिर बनवाया था तो मोती-मस्जिद भी बनवाई थी।
3) 1857 की आज़ादी की पहली क्रांति की बागडोर अपने हाथों में लेने की खापों से अपील करने वाले अंतिम-मुग़ल बादशाह बहादुरशाह भी एक मुस्लिम ही थे।
4) सर छोटूराम जी ने सर सिकंदर हयात खान टिवाणा जी के साथ यूनाइटेड-पंजाब में धर्म-जाति से रहित सफल सरकार दी थी।
5) राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने मुस्लिमों के साथ मिलके ही अफगानिस्तान में पहली भारतीय सरकार व् आज़ाद हिन्द फ़ौज (जिसको बाद में नेता जी सुभाषचन्द्र बॉस ने टेकओवर किया था) की नींव रखी थी।
6) चौधरी चरण सिंह जी की तो राजनीति की चूली ही हिन्दू-मुस्लिम एकता थी।
7) चौधरी देवीलाल जी की पार्टी इनेलो को आज भी हरयाणा की मुस्लिम बहुल सीटों पर इन्हें एकमुश्त वोट पड़ती हैं।
8) बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की तो हर रैली का आलम यह होता था कि अगर स्टेज से आवाज आती "हर-हर महादेव" तो जनता दहाड़ती "अल्लाह-हु-अकबर"। स्टेज से आवाज आती "अल्लाह-हु-अकबर" तो जनता गरजती "हर-हर महादेव"।

और इतने ही सच्ची और सार्थक सद्भावना के अनंत किस्से।

इनके ढोंग कौन समझ ले, कल तो रोहतक में सद्भावना रैली करते फिर रहे थे और आज खाप को भी जोड़ के वही हिंसा और मतभेद फैलाने के इनके काम। हमें क्या पड़ी किसी का विरोध करने की, अगर विरोध करवाने हैं तो देश से कानून बनवा लो, परन्तु हमें चैन से जीने दो।

वैसे भी हमें जिन चीजों के खत्म होने के या उनपे हमले होने के झांसे, भय अथवा डरावे दिखा के तुम इंस्टीगेट करना चाहते हो, यह डरावे उनको दिखाना जो ऐसी नौबत पड़ने पर, सलवार-कुरता पहन के ऐसे दुम-दबा के भागते हैं कि जैसे कुछ पल पहले कुछ था ही नहीं।

रहम करो! हमारी मानसिक शांति पर, हमें रोजगार और घर भी चलाने होते हैं। तुम तो छूटे लंगवाडे हो, तुम्हारा क्या जाता है। कसम से बाज जाओ, ना तो धर्म पे तो जब मुसीबत आवेगी तब आवेगी, उसतैं पहल्यां तुम ऐसी नौबत ना ला दियो कि देश में वैसे ही गृह-युद्ध छिड़ जाए।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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