Tuesday 31 May 2016

जाट आरक्षण के मुद्दे पर फेसबुक पर एक मनुवादी से कुछ इस तरह हुई बहस!

मैंने नौकरियों के साथ मंदिर की कमाई में भी आरक्षण की बात कही, तो वो कैसे धरती भी बंटवाने की बात करने लगा और फिर कैसे मैंने उसको निरुत्तर किया, पढ़ें नीचे की चैट|

मनुवादी: न्यूं बता किस चीज की कमी है थारे धोरै? हरयाणा की या-ता करके धर दी थमनैं| थारे गेल न्यूं हो रह्या है अपनी लासी ने कोई खाटी नहीं बताया करदा| तो थम अपनी गलती तो मानो कोनी| हरयाणा का बेडा गर्क करके धर दिया तुमने| इब जदे किमें करते दिखो, थारे तो जूत मारे सरकार, जद बेरा लागे थामने| और रही दान-चंदे की बात इब हमें वो कोन्या रह रहे, हमनें भीख मांगन की आदत कोन्या, जदे हम इसके खिलाफ सां| ना तो आरक्षण माँगा हमने, अपने दम पर भरोसा है सरकारी ना सही, प्राइवेट सही|

मैं: तेरे दर्द से सहानुभूति है मुझे, परन्तु आरक्षण तो अब खत्म होवे कोनी| बल्कि अब तो मंदिरों की कमाई और नौकरियों में भी आरक्षण लेंगे; क्योंकि वो कोई तुम मामा के यहां से ना लाये, यह सारी पब्लिक की साझी प्रॉपर्टी हैं, सबके पैसे से बनी हुई| अत: इनकी कमाई भी सबकी होनी चाहिए|

मनुवादी: ठीक बात है, धरती भी बराबर बॉटनी चाहिए, के मामा के तें लयाए थे| बराबर के हक का हम भी स्वागत करेंगे, हिम्मत है तो बात कर|

मैं: ना मामा के तें तो नहीं ल्याए थे, हाड-तोड़ खून-पसीना बहा के हमारे बुजुर्गों ने जंगल-पत्थर तोड़ के समतल बनाई थी और उस जमाने में भी धरती के टैक्स (माल-दरखास) भरे थे जब लोग टैक्स से डर के धरती लेते भी नहीं थे| तो धरती में तुम किस मुंह से हिस्सा मांगोंगे? जाट ने सबसे ज्यादा और सबसे कटिबद्धता से मुग़ल-अंग्रेज और अब सबके जमानों में माल-दरखास भरी, तभी तो कहावत चली कि, "जमीन जट्ट दी माँ, हुंदी ए!" जाट भूखे सो जाया करते, पर माल-दरखास पुगाया करते|
और मंदिर में तो सब दान करते हैं, इसलिए मंदिर और इनकी कमाई बाई-डिफ़ॉल्ट पब्लिक की है|
और धरती भी तो जनसंख्या की डबल से भी ज्यादा है तुम्हारी बिरादरी के पास? तुम हरयाणा में जनसंख्या में तो सिर्फ 6-7% और जमीन तुम्हारे पास 18-20%, पहले यह तो सोच लिया है ना कि मंदिर की कमाई के साथ-साथ यह जनसंख्या से तीन-गुना ज्यादा जो जमीन लिए बैठे हो इसको भी बंटवाने को खुद तो तैयार हो ना?

मनुवादी: बात बराबरी की कर, हर जवाब बराबर का मिलेगा|

मैं: हाँ, बराबरी की मेहनत के हिसाब से और टैक्स किसने भरे उसके हिसाब से ही तो होगी? तुमने कौनसे मंदिर के टैक्स घर से भरे हैं, चंदे से भरे होते हैं वो? और कौनसे मंदिर सिर्फ तुम्हारी कमाई से बनाए तुमने, जनता के पैसे के बने हैं सारे|
जबकि जाटों ने धरती अपनी मेहनत अपने पैसे से बनाई या खरीदी है, जाट ने अकेले ने अपनी कमाई से टैक्स भरे हैं धरती के; मंदिरों की तरह कोई पब्लिक ने दान ना दिया धरती खरीदने के लिए| तो फिर किस हक़ से धरती लेगा या बंटवाएगा?

मनुवादी: तेरे जैसों को समाज तोड़ने के अलावा आता ही क्या है? घुमा फिरा के बात ना कर|

मैं: मैंने तो टू दी पॉइंट बात करी है, सुनके तुम घूम गए हो तो मैं क्या करूँ?

मनुवादी: इनबॉक्स में बात कर|

मैं: पब्लिक डिबेट है, पब्लिक में बोलो जो बोलना है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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