Sunday 22 May 2016

जाटों को राजपूतों और ब्राह्मणों से सीखना चाहिए कि आपके पुरखे हारे हुए हों या जीते हुए, उनका मान-सम्मान कैसे बरकरार रखना होता है!


एक ऐसा राजा जो मेवाड़ से बाहर नहीं लड़ा कभी, दूसरे राज्य जोड़ के अपने राज्य का विस्तार करना तो दूर, खुद के राज्य को ही जो नहीं बचा पाया था; उसके बावजूद भी उसको राष्ट्रीय स्तर का हीरो कैसे बनाते हैं, यह जाटों को राजपूतों और ब्राह्मणों से सीखना चाहिए। सोच के देखो इनके पास जाटों जैसे मुग़लों और अंग्रेजों को बार-बार हराने वाले सूरमे होते तो यह लोग उनको किस स्तर की ऊंचाई पर ले जा के बैठा देते?

अब इनके इसलिए कहा क्योंकि ब्राह्मण या राजपूत जाट को अपना मानते तो जाटों के यहां हुए प्रतापी राजा-महाराजा का भी यह यशोगान करवाते, अब यह नहीं करवा रहे तो खुद तो करना पड़ेगा ना भाई|

राजपूत और ब्राह्मण इसको व्यंग ना समझें, मैं महाराणा प्रताप और उनके प्रति आपकी अटूट श्रद्धा का आदर करता हूँ, और आपके इस उदाहरण को जाट कौम में एक संदेश देने मात्र को प्रयोग कर रहा हूँ।

तो मैं कह रहा था कि इनसे ऐसा इसलिए नहीं सीखना चाहिए कि जाट भी इनकी भांति किसी ऐसे ही हारे हुए, अपने राज्य से बाहर तो दूर, जो कभी अपने राज्य को भी नहीं बचा पाया; जाटों के किन्हीं ऐसे ही राजाओं को जाट हीरो बना दें; नहीं। परन्तु हमारे हारे हुओं को भी ऐसे ही सम्मान देते हुए जैसे यह दे रहे हैं, कम से कम महाराजा जवाहर सिंह, महाराजा सूरजमल, महाराजा रणजीत सिंह (पंजाब और भरतपुर दोनों वाले), राजा नाहर सिंह, महारानी किशोरी देवी, महाराजा हर्षवर्धन, राजा पीटर प्रताप उर्फ़ महेंद्र प्रताप जैसे देदीप्यमान सूरमाओं को तो उन ऊँचाइयों व् आदर्शों पर स्थापित करें कि जनता को यह ना लगे कि उन्होंने सिर्फ हारे हुओं से सहानुभूति रखते हुए सिर्फ उनको ही हीरो बन दिया वरन उनको हीरो बनाया जिन्होनें वास्तव में मुग़लों और अँग्रेजों से ऐसे युद्ध लड़े जिनमें वो अजेय रहे।

जहाँ तक मैंने दुनियाँ का इतिहास जाना है, उसमें पाया है कि जाट ही एक ऐसी जमात है जिसके यहां राजाओं के साथ-साथ खाप यौद्धेय भी उतने ही धुरंधर हुए हैं जितने कि राजा या महाराजा। उदाहरण के तौर पर "गॉड गोकुला", "दादावीर जाटवान गठवाला जी", "दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जी", "दादावीर रामलाल खोखर जी", "दादावीर भूरा सिंह व् निंगाहिया सिंह जी", "दादावीर बाबा शाहमल तोमर जी", "दादीराणी भागीरथी महाराणी जी", "दादीराणी भंवरकोर महाराणी जी", "दादीराणी समाकौर महाराणी जी" आदि-आदि जैसे ऐसे धुरंधर हुए जिन्होनें उनको मारा जिनको राजपूत और ब्राह्मण मिलके भी नहीं मार सके।

लेकिन जाट इनको राष्ट्रीय स्तर तक प्रमोट क्यों नहीं कर पाते; वजहें यह हैं:

1) ब्राह्मण को दान देंगे, परन्तु उससे यह सुनिश्चित नहीं करवाएंगे कि वो इस दान का एक निश्चित हिस्सा जाट इतिहास लिखने और जाट महापुरुषों को प्रोमोट करने में लगाएंगे। जबकि इस बिना हिसाब किताब के दान से ही यह लोग जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े रचते हैं, और जाट फिर भी परोक्ष रूप से जाट के ही खिलाफ इनके इन अजेंडों को फाइनेंस करते रहते हैं।

2) थोड़ा सा जनसमर्थन मिलना शुरू हुआ नहीं और जाट लग जाता है स्व-महिमामंडन में। अपने पुरखों और इतिहास के लिए कुछ करूँगा कुछ करूँगा की मन में रहती तो है, परन्तु तब तक मौका हाथ से जा चुका होता है।

3) ब्राह्मण की तरह यह सोच नहीं ले के चलता जाट कि तू कांग्रेस में रह, इनेलो में रह, भाजपा में रह, रालोद में रह, बसपा में रह या लेफ्ट में रह; परन्तु रह टॉप में और अपनी कौम के हित को सर्वोपरि रख, और इस तरीके से रख कि किसी को भनक भी ना हो।

यह तीन बिंदु जिस दिन जाट ने ठीक कर लिए, उस दिन हर गली-चौराहे पर असली युद्ध विजेताओं की मूर्तियां होंगी, सहानुभूतिवश सिर्फ उनकी नहीं जिन्होनें दुश्मनों का विरोध मात्र किया हो। मैं यह नहीं कहता कि विरोध करने वाला महान नहीं होता, परन्तु विजेता तो विजेता होता है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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