Tuesday 28 June 2016

2013 में मुज़फ्फरनगर में वही दोहराया गया जो सन 1435 में मोखरा, जिला रोहतक में दोहराया गया था!

आजतक टीवी के स्टिंग ऑपरेशन में कपिलदेव अग्रवाल का मुज़फ्फरनगर दंगों में मास्टरमाइंड पाया जाना मुझे "लाला बीहड़" के किस्से की याद दिलाता है| फर्क सिर्फ इतना है कि कपिलदेव ने हिन्दू को मुस्लिम से लड़वाया; और लाला बीहड़ ने जाट को राजपूतों से लड़वाया था|

और ऐसा लड़वाया था कि तमाम तरह के डूबाढाणी, खत्म-कहानी जैसे शब्द भी छोटे पड़ जाएँ|

जानिये गठवाला जाटों द्वारा राजपूतों को हराने, फिर राजपूतों द्वारा जाटों से राजीनामा कर उनको सामूहिक भोज पर आमंत्रित कर, राजीनामा संधि तोड़ते हुए (प्राण जाए पर वचन ना जाए की डींग हांकते ना थकने वालों ने) धोखे से सामूहिक रूप से अग्नि में जला देने और फिर वहाँ से लगभग उजड़ चुके मोखरा के गठवाला जाटों के पुनर-स्थापन का ऐतिहासिक, दर्दनाक एवं गौरवमयी किस्सा|

इस किस्से को सविस्तार इस लिंक से पढ़ सकते हैं: http://www.nidanaheights.net/scv-hn-mokhra.html

लेख में कहाँ जिक्र है इस किस्से का:
इस किस्से को पढ़ने के लिए इस लेख के बांये कॉलम के मध्य जा के "मम का मोखरा नींव रखने के बाद सवा दो सौ साल तक सुखचैन से बसता रहा|" वाले पैराग्राफ से पढ़ें|

यह किस्सा मेरे हृदय से इसलिए भी जुड़ा हुआ है क्योंकि मेरी जन्म-नगरी निडाना, जिला जींद भी हमारे पुरख दादा मंगोल जी महाराज ने सन 1600 में मोखरा से ही आकर बसाई थी| यानि मेरे पुरखों की भी जन्मस्थली है मेरा मोखरा|

मोखरा गाँव से जुडी एक रोचक बात यही भी है कि यही मोखरा सन 1620 में गठवाला खाप के निमंत्रण व् अगुवाई में रांगडों (मुस्लिम राजपूत) की रियासत का कोला तोड़ने की क्रांति का केंद्रबिंदु बना था और कलानौर की ईंट-से-ईंट बजा के पूरी रियासत को तहस-नहस कर दिया था|

लेखक: सर राजकिशन नैन जी
सामग्री उपलब्धकर्ता: सर रणबीर सिंह फोगाट जी (सर राजकिशन नैन जी की सहमति सहित)
वेब-संकलन/प्रस्तुति: फूल मलिक
जय यौद्धेय!

No comments: