Friday 17 June 2016

"लेखन-क्रांति" ही 'आइडेंटिटी-क्राइसिस‘ से मुक्ति!

ज्यादा पीछे से नहीं उठाऊंगा,
गॉड-गोकुला के काल से आगे की बतलाऊँगा!
1669, 1748, 1764, 1805, 1837, 1857, 1914, 1939, 1944
यह वो कुछ तारीखें हैं जब तुमने शौर्य व् युद्ध-कौशल का डंका बजाया,
परन्तु इतिहास में यथोचित स्थान फिर भी ना पाया,
क्योंकि कलम का सरमाया किसी और को था हुआ बनाया!
आज़ादी के बाद अपनी हल की क्षमता से सबको जनवाया,
देश का हर गोदाम "हरित-क्रांति" के अनाजों से भर बतलाया!
फिर "श्वेत-क्रांति" से पूरे हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी को दूध-दही की धरती गुंजवाया।
परन्तु क्या सरकार-साहित्य-इतिहास-संस्कृति की लेखनी में अब भी उचित सम्मान पाया?
नहीं, क्योंकि कलम का सरमाया अभी भी किसी और को ही है हुआ बनाया।
"युद्ध-क्रांति", "हरित-क्रांति", "श्वेत-क्रांति" के बाद बारी है "लेखन-क्रांति" की,
ऐ दुर्दांत! कलम उठा ले, अपनी "आइडेंटिटी" का सरमाया खुद को बना ले।
यह ऐसा हथियार है जो हथिया लिया तो सूदखोर-पाखंडियों का मिट जायेगा अपवाद!
सब स्वत: मर जायेंगे, जब सामने होगा तेरी अपनी लेखनी का वाद!
इतना समझ लो यह इंग्लैण्ड नहीं, जहां अलिखित सविंधान-संस्कृति से ही खुद को जनवा लोगे,
कदम-कदम पर कलम के सौदागर हैं, इनकी सौदागरी सूखा दो; स्वत: ही स्व को विश्व में गवा लोगे।
इतना जान लो, इतना समझ लो, जब तक नहीं घुसोगे सवैंधानिक तंत्र में राष्ट्रवादियों की तरह,
रहोगे इनके मुंह ताकते, और खुद ही खुद को काटते बेबस आदिवासियों की तरह।
हर गाम-खेड़ा तुम्हारा तुम्हारी संस्कृति-सभ्यता-इतिहास का अनूठा और नायाब गणतांत्रिक ठिकाना है,
बस ठान लो इतना कि अब हर बार छुट्टियों में कहीं और नहीं, अपने गाम का लेखा-जोखा लिखने जाना है।
लिख डालनी है अपने खेड़े की हर आध्यात्मिक-सांस्कृतिक-ऐतिहासिक झाँकी,
और फिर परखी जाए "analogy" पर विश्व की इसकी सर्वश्रेष्ठता की फाकी।
कुछ लगेगा ना तुम्हारा जेब से, क्योंकि इंटरनेट-स्मार्टफोन-लैपटॉप-कलम के खाली-समय प्रयोग की दिशा भर मोड़नी है।
डाल लो आदत में इसको अगर अनुचित लेखन के बरगद की जड़ चुपचाप कुरेद के एक झटके बिना फटके उखाड़नी है।


जय यौद्धेय! - फूल मलिक

विशेष: 1669 (God Gokula Revolt), 1748 {One sided win of Suraj Sujan (Badan Singh & Ishwari Singh alliance) over Rajputs, Maratha, Holkars & Mughals all on opposite front}, 1764 (Delhi win of Bhartendu Jawahar Singh), 1805 (Bharatpur win over British), 1837 (Maharaja Ranjit Singh win over Afghans), 1857 (Raja Nahar Singh win over Britishers and Sarvkhap Haryana revolt), 1914 (WW1), 1939 (WW2), 1944 (Azad Hind Fauj)

 

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