Thursday 23 June 2016

फरवरी-जून के जाट आंदोलनों के बाद आर.एस.एस. के जाट-सम्मोहन के प्रयास!

जाट-सम्मोहन शब्द प्रयोग किया है तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि आरएसएस पहले से जुड़े जाटों के अतिरिक्त नए जाट जोड़ने हेतु इस सम्मोहन को चलाये हुए है, नहीं; अपितु जो पहले से जुड़े हुओं में फरवरी-जून के जाट आंदोलनों के चलते शंकाएँ बन गई हैं, आरएसएस उन शंकाओं को खासतौर पर मिटाने में लगी हुई है। क्योंकि आरएसएस को इन जाटों का आरएसएस के प्रति मोह-भंग होने का भय सताने लगा है। और कुछ इस प्रकार के वशीकरण सोशल मीडिया समेत आमजन गलियारों से सुनने को आ रहे हैं, जो मैं हर बिंदु के दूसरे भाग में मेरे प्रतिउत्तर के साथ रखूँगा:

1) आरएसएस इसमें शामिल जाटों को कहती है, "देखो इन दोनों आंदोलनों से आरएसएस का कोई लेना-देना नहीं!", जबकि महम में तो खुद जाटों ने नरवाना से आरएसएस के भेजे गए गुर्गों को पीटा और इसीलिए महम में इतना भयंकर बवाल भी हुआ था। जाट एसडीएम लेडी वीणा हुड्डा की गाड़ी में आग लगाने वालों ने हाथों पर धागे और सर पर काले व् भगवा पट्टे बाँध रखे थे। और ऐसी ही हर दूसरे दंगाग्रस्त कस्बे-जिले से बहुत खबरें सामने आई थी।

2) जाटो, देखो आरएसएस जातिपाति से रहित संस्था है, इसमें जातिवाद के लिए कोई जगह नहीं। वाक्य सुनने को सम्मोहित करने वाला है परन्तु हकीकत नहीं। क्योंकि आरएसएस सिर्फ ब्राह्मण-राजपूत व् एक-दो और चुनिंदा जातियों की हस्तियों के जन्मोत्सव, बलिदान दिवस आदि मनाती है| या तो किसी का भी ना मनाये वर्ना महाराजा सूरजमल, गॉड गोकुला, राजा नाहर सिंह, सर छोटूराम, महाराजा रणजीत सिंह आदि जाट हस्तियों के भी मनाये? क्या सिर्फ कुछ चिन्हित जातियों के महापुरुषों के उत्सव मनाना और जाटों के नहीं मनाना, यह जातिवाद नहीं?

3) आरएसएस कहती है कि जाटो, हम महापुरुषों को जातिवाद के आधार पर नहीं देखते? गलत क्योंकि आरएसएस सिर्फ चुनिंदा जातियों के इतिहास-महापुरुषों पर पुस्तकें निकलवाती है, उन पर विचार-गोष्ठियां करवाती है; परन्तु जाट इतिहास पर इनसे कुछ पूछो तो इनके पास प्रमाणिकता से कहने को कुछ नहीं? आखिर ऐसा क्यों? क्या सिर्फ हम जातिवादी नहीं कहने भर से काम चल जायेगा और प्रैक्टिकल में शून्यता से अपनी दबी मंशाएं छुपा लेगी आरएसएस?

4) आरएसएस कहती है हम "हिन्दू धर्म की एकता और बराबरी" के लिए कार्य करते हैं? तो फिर यह स्टेट-सेंटर दोनों जगह आरएसएस की राजनैतिक इकाई बीजेपी की सरकार होने पर भी हरयाणा में "जाट बनाम नॉन-जाट" क्यों मचा हुआ है? मैं आरएसएस के जाटों से अपील करना चाहूंगा कि भाई एक बार मोहन भागवत जी से बयान जारी करवा दीजिये कि हरयाणा से "जाट बनाम नॉन-जाट" को खत्म किया जाए। ऐसा होता है तो मैं आपकी दलीलों से भी सहमत होऊंगा, और; मैं और मेरे जैसे भी आरएसएस ज्वाइन करने पर विचार करेंगे।

5) आरएसएस कहती है कि भारत में जहां-कहाँ भी दंगे-उत्पीड़न होता है हम वहाँ-वहाँ सहायता कैंप, मदद व् रशद मुहैया करवाते हैं। क्या किसी भाई ने देखी मुज़फ्फरनगर व् हरयाणा दंगों में जाटों की सहायता के लिए कहीं भी आरएसएस दौड़ती हुई? नहीं, बल्कि 'चोर की दाढ़ी में तिनका' की भांति अपनी शाखाओं से बाहर भी निकल के नहीं देखा कि कौन जिया, कौन मरा|

क्या इसके बाद भी मुझसे यही कहलवाना चाहोगे कि थ्योरी में खुद को जातिवाद से मुक्त बताने वाली आरएसएस, प्रैक्टिकल में भी जातिवाद से मुक्त है?

मेरा आरएसएस से जुड़े जाट भाईयों से इतना अनुग्रह है कि ब्राह्मण से कुछ सीखना है तो यह सीखो कि वह कैसे कांग्रेस-बीजेपी-लेफ्ट यहाँ तक कि बीएसपी में भी मिश्रा जैसे ब्राह्मणों को शिखर की पोस्ट पर घुसा के अपनी पैठ रखते हैं और अपनी बातें और सरोकार मनवाते हैं। मैं इस लेख के जरिए आपको आरएसएस से विमुख नहीं करना चाहता; वह तो आप खुद अपने विवेक से निर्धारित कर लेवें; परन्तु जब तक इनके साथ हैं तो इनसे इन ऊपर लिखित बिंदुओं पर भी तो कुछ करवाएं? वर्ना यूँ सिर्फ हांजी-हांजी करते हुए इनकी दरियां बिछानी हैं तो भाई, इससे अच्छा तो अपने किसान भाईयों के खेत-खलिहानों में खरड-तरपाल-पल्ली बिछ्वाओगे (और नहीं तो कारसेवा के तौर पर ही सही) तो बेहतर आत्मिक संतुष्टि और आत्मबल मिलेगा।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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