Saturday 13 August 2016

ब्राह्मण का ओरिजिन यूरेसियन नहीं अपितु कम्बोडियन या इंडोनेशियन है!

क्या कभी देखा है ब्राह्मण को यूरेसियन ओरिजिन के किसी देश की यात्रा करते हुए? जबकि विदेश गए या जा के आ चुके लगभग हर दूसरे ब्राह्मण के पासपोर्ट में कम्बोडिया की स्टाम्प जरूर लगी मिलती है।

वो क्यों, क्योंकि जैसे मुस्लिम के लिए मक्का, ईसाई के लिए जेरुसलम, सिख के लिए अमृतसर सबसे बड़ा धाम है, ऐसे ही ब्राह्मण के लिए कम्बोडिया वाला अयोध्या सबसे बड़ा धाम है। इसीलिए हर सफल व् विदेश जा सकने लायक ब्राह्मण जीवन में कम-से-कम एक बार कम्बोडिया जरूर जा के आता है।

कुरुक्षेत्र और अयोध्या शब्द भी भारत में कम्बोडिया से ही लाये गए हैं। कुरुक्षेत्र तो आज के दिन भी कोई आधिकारिक शहर तक नहीं है, जिसको हम कुरुक्षेत्र बोलते हैं वो वास्तव में "थानेसर" है। जिस रिहायसी क्षेत्र को कुरुक्षेत्र बोला जाता है, जरा देखें तुलना करके, कुरुक्षेत्र से पुराने व् पुरातन अवशेष तो थानेसर के हैं।

क्या किसी ने यूरेसियन देश में हाथी व् नारियल का पेड़ देखा या सुना है? जबकि कम्बोडिया-इंडोनेशिया में यह दोनों प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। और यह दोनों ब्राह्मण की लिखी माइथोलॉजी और पूजा-पाठ में सबसे ज्यादा लिखे मिलते हैं। इसीलिए ब्राह्मण का ओरिजिन यूरेसियन नहीं अपितु कम्बोडियन ज्यादा तार्किक बैठता है।
यूरेसियन ओरिजिन का फंडा तो इन्होनें अंग्रेजों से अपनी नजदीकियां बढ़ाने के लिए खुद ही डेवेलोप किया था। जिसके बारे विस्तार से आगे की पोस्टों में लिखूंगा।

फ़िलहाल इतना लिख के आपके तर्क-वितर्क के लिए छोड़ रहा हूँ कि क्योंकि अंग्रेजों के यहां गाय एक डोमेस्टिक एनिमल है जबकि भारत में गाय एक जंगली एनिमल व् भैंस डोमेस्टिक एनिमल है। जब ब्राह्मणों देखा कि गाय के जरिये अंग्रेजों से नजदीकी बढ़ाई जा सकती है तो इन्होनें गाय को क्लेम करना शुरू कर दिया। वर्ना क्या कारण है कि यूरोप की गाय का दूध निकालते वक्त आपको उसकी टाँगें नहीं बांधनी पड़ती और ना ही आपको भारतीय भैंस की टांगें बांधनी पड़ती; जबकि भारतीय गाय की बांधनी पड़ती हैं? वजह यह है कि सदियों से भारत में कृषकों ने भैंस को जंगली से डोमेस्टिक एनिमल में कन्वर्ट रखा है और अंग्रेजों ने उधर की गाय को। जबकि भारतीय गाय डोमेस्टिक बनाई गई ही अंग्रेजों के आने के बाद से है वो भी पूरी तरह नहीं बना पाए। और कोई रामायण या महाभारत में गाय पाने का हवाला देवे तो मुझे समझावे कि अगर यह सत्य है तो आखिर भारत की गाय में ही ऐसा क्या है कि उसको जंगली से पालतू बनाने के बाद भी उसकी टाँगे बाँध के दूध दोहना पड़ता है जबकि यूरोप के देशों वाली गाय के साथ ऐसा नहीं?

विशेष: इस लेख को अपनी आस्थाओं पर हमला ना मानते हुए पढ़ें और तर्क-वितर्क देने हेतु पढ़ें हेतु। निरी आस्था पे हमला मानने के उद्देश्य से पढेंगे तो निसन्देह लेखक को गालियां देने का मन करेगा। परन्तु लेखक आपको आश्वस्त करता है कि उसकी इस पोस्ट का उद्देश्य सिर्फ तर्क-वितर्क है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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