Friday 19 August 2016

दोस्तों, नरसिंह जाधव (यादव) मामले के चक्कर में जाट-यादव भाईचारे को संभालना मत भूल जाना!

भारत के लीचड़ राजनीतिज्ञों ने नरसिंह यादव को एक मोहरे की भांति इस्तेमाल किया है, वैसे तो हर भारतीय इस पोस्ट में दिए तर्कों पर गौर फरमाये परन्तु जाट और यादव तो अवश्य ही फरमाएं; इनमें भी जो जाट और यादव आत्मीयता से आपस में जुड़े हैं वो तो जरूर से जरूर गौर फरमाएं, क्योंकि आप ही लोगों की वजह से आगे जाट-यादव भाईचारा कायम रहने वाला है| बात तथ्यों के आधार पर रखूँगा, कहीं भी तथ्यहीन लागूं तो झिड़क दीजियेगा:

1) नर सिंह यादव रियो बर्थ के लिए क्वालीफाई करते हैं, कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष खुद उसी वक्त कह देते हैं कि बर्थ फाइनल हुई है खिलाडी नहीं| रियो नरसिंह जायेगा या सुशिल इसका फैसला ट्रायल से होगा| टाइम्स ऑफ़ इंडिया की उस वक्त की न्यूज़ गूगल करके पढ़ सकते हैं|

2) भारतीय कुश्तिजगत, इसकी परम्परा और इतिहास की थोड़ी सी भी समझ रखने वाला अच्छे से जनता होगा कि अगर सुशिल ट्रायल के लिए नहीं बोलते तो लोग कहने लग जाते कि या तो दम नहीं बचा होगा या फिर तैयारी नहीं कर रखी होगी; इसीलिए ट्रायल के लिए सामने नहीं आया|

3) भारतीय कुश्तिजगत की परम्परा और इतिहास कहता है कि ट्रायल यानी चुनौती को अस्वीकार करना अस्वीकारने वाले खिलाडी की हार के समान देखा जाता है| नर सिंह को चाहिए था कि वो ट्रायल स्वीकार करते; नहीं स्वीकारी तो भी कोई बात नहीं थी|

4) अखबारों से विदित है कि नर सिंह के क्वालीफाई करने के बाद भी भारतीय कुश्ती संघ पहलवान सुशिल कुमार को ट्रेनिंग पर भेजता रहा, जॉर्जिया भेजा| तो जाहिर था कि ट्रायल हो के ही खिलाडी जाना था, इसलिए दूसरे खिलाडी की भी ट्रेनिंग करवाई गई| अन्यथा पहले खिलाडी के रियो में क्वालीफाई करते ही दूसरे की ट्रेनिंग रुकवा दी जाती| इसी वजह से सुशिल को इसमें अपने साथ अन्याय लगा और वो कोर्ट चले गए| कोर्ट में क्या हुआ इससे सब वाकिफ हैं| सुशिल कुमार प्रधानमंत्री ऑफिस और हाईकोर्ट का रूख देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट में नर सिंह और अपना वक्त ज्याया करना ठीक नहीं समझे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट नहीं गए|

5) फिर नर सिंह के डोप का जिन्न निकल आया, जिसको बीजेपी और आरएसएस ने वोट पॉलिटिक्स का मौका समझ, इस मामले को ऐसे प्रोजेक्ट करवाया गया जैसे यह दो जातियों (जाट और यादव) के स्वाभिमान की लड़ाई हो| खैर, यूपी इलेक्शन के मद्देनजर पीएम ने खुद अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए, नाडा से मनमाना निर्णय करवा के नरसिंह को रियो के लिए आगे बढ़वा दिया| यहां, गौर करने की बात थी कि नाडा चाहती तो नरसिंह को सिर्फ वार्निंग दे के छोड़ सकती थी और मामला रफा-दफा हो जाता; और नर सिंह चार साल के बैन से शायद बच जाता| जाहिर है पीएम जैसे पद वाले व्यक्ति को हर बात का पता होता है, परन्तु पीएम ने नर सिंह पर अँधेरे में तीर मारा कि चल गया तो नर सिंह को आगे अड़ा के यूपी में यादव वोट बटोरेंगे, नहीं चला तो भाड़ में जाए| और वाकई में हमारे देश की लीचड़ राजनीति ने हमारे एक महान खिलाडी को नाडा से क्लियर कर वाडा में भेज, भाड़ में भेज दिया|

6) वाडा की अपील पर CAS कोर्ट ने जाँच और सुनवाई की तो पाया कि नाडा के पास इसके कोई सबूत ही नहीं हैं कि खाने में मिलावट हुई है| जो साबित करता है कि कैसे कोरी सिर्फ पीएम की गलत दखलंदाजी और प्रभाव के चलते नर सिंह को आगे बढ़ाया गया| पीएम, एक जाति विशेष से नफरत के अतिरेक और दूसरी जाति के वोट लुभाने के लालच में इतना भी भूल गए कि यहां तो 'बेटी बाप के घर है", वार्निंग दे के उसको सुधारने का मौका दे दो; परन्तु नहीं चढ़ा दिया वाडा की बलि| जहां पर चार साल का बैन लगना ही लगना था|

इस तरह एक जातिगत नफरत में अंधे और जाति के आधार पर वोट पाने की फिरकापरस्ती वाले पीएम की अंधी मानसिकता ने भारत के एक स्वर्णिम खिलाडी से उसका कैरियर ही छीन लिया| इसलिए मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि देश की गन्दी पॉलिटिक्स ने नर सिंह का करियर लीला है ना कि ग्राउंड पर जीरो परन्तु इनके दिमाग में पुरजोर से चलने वाले किसी जातिवादी जहर ने|

इसलिए जाट और यादव समाज के बुद्धिजीवी भी इस मामले को नजदीक से विचार देवें और इसकी वजह से किसी भी प्रकार की बढ़ सकने वाली जातीय दीवारों को पाटने हेतु आगे आवें; और अगले चुनावों में ऐसी वर्ण व् जातिवाद से ग्रस्ति राजनीति को धूल चटावें| इसके साथ ही सोशल मीडिया पर बैठे हर समझदार जाट-यादव से गुजारिस है कि अपने-अपने समाज के बच्चों को गुस्से-नफरत या आपसी अलगाव की पोस्ट निकालने से ना सिर्फ रोकें, अपितु ऐसी पोस्टें ले के आवें जो दोनों कौमों को एक साथ बैठ के सोचने की ओर अग्रसर करें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: