Tuesday 27 September 2016

2019 में बीजेपी ने सीएम कैंडिडेट नहीं बनाया तो अलग पार्टी बना लूंगा? - राजकुमार सैनी

यह बयान भाजपा द्वारा सैनी के हाथों ओबीसी वोटों को 2019 में फिर से धोखे से हड़पने की लॉन्ग-टर्म कहो या नेक्स्ट टर्म प्लानिंग का हिस्सा है; आईये वस्तुस्थिति से समझें कि कैसे?

2019 के आसपास आ के बीजेपी का जाट-प्रेम जागेगा, और जाटों को खुश करने के लिए सैनी को पार्टी से बाहर करेंगे| या उसको सीएम कैंडिडेट नहीं बनाने का स्वांग करेंगे और इससे सैनी अपनी आज की यह कही हुई बात उस वक्त रखने का नाटक करते हुए, खुद बीजेपी छोड़ के अलग पार्टी बनाएगा| कुल मिला के बीजेपी के ही प्रीप्लानड एजेंडा के तहत सैनी खुद की पार्टी बनाएगा, ताकि बीजेपी से नाराज (नाराज क्यों वो अगले पहरा में पढ़ें) ओबीसी वोट सैनी की बनाई ताजी-ताजी पार्टी के पास बना रहे| भाजपा सपने ले रही है कि एक तरफ जाट को यह दिखा देंगे कि सैनी पर कार्यवाही करदी, दूसरी तरफ सैनी से ही नीचे-नीचे अलायन्स करके सैनी की नई पार्टी प्लस बीजेपी के जरिये बीजेपी फिर से सेकंड टर्म सरकार बना लेगी|

पर इन मुंगेरीलालों से सवाल यह है कि हरयाणा में आते ही बीजेपी ने फसलों के दाम गिरा दिए, छोटे व्यापारियों के पर क़तर दिए, ओबीसी नौकरियों के प्रमोशन में रोक व् ओबीसी मेरिट केस को जनरल केटेगरी से बाहर किये जाने के सगूफे चला दिए| गुड़गांव-फरीदाबाद-कुरुक्षेत्र में दलितों पर यादव-राजपूत जातियों के हमले हुए, उनको रोका नहीं| रही सही कसर मोदी ने अब पाकिस्तान के मामले में लीद करके पूरी कर दी, जिससे कि इनका तुरुप का इक्का राष्टवाद ढकोसला साबित हुआ| उससे पहले जाटों पर फरवरी में दूसरा जलियावाला बाग़ रच के थोड़े-बहुत बीजेपी-आरएसएस से जुड़े जाट भी रुष्ट कर लिए| जाट बनाम नॉन-जाट रचा के खुद ही अपने दूसरे तुरुप के इक्के "हिन्दू एकता और बराबरी" के नारे की बैंड बजा ली| अंत नतीजा और हालात यह बन रहे हैं कि बीजेपी का जनाधार दिन-प्रति-दिन घटता जा रहा है| ना इनसे किसान खुश है, ना दलित, ना मजदूर ना कर्मचारी, ना छोटा व्यापारी; सब रो रहे हैं|

उधर मनीष ग्रोवर और अश्वनी चोपड़ा, राजकुमार सैनी के सामानांतर अभी भी बयान देने में जुटे हैं कि हरयाणा में अगला सीएम भी नॉन-जाट ही बनाएंगे| तो फिर ऐसे में कौनसी कम्युनिटी को और कैसे आसानी से फददु व् बुध्धु बना के वोट हड़पे जा सकते हैं? दलित इनसे सवर्ण-दलित पहलु पे पहले से ही बिदक चुका, जाटों को इन्होनें जाटों से पंगा ले के खुद विरोधी बना लिया, माइनॉरिटी इनको कोई ख़ास वोट देने वाली नहीं (मुस्लिम माइनॉरिटी तो बिलकुल ही नहीं)| तो ऐसे में बचे कौन? बीजेपी के ट्रेडिशनल वोट्स और ओबीसी वोट|

तो क्या ओबीसी, अभी पहली योजना में ही ओबीसी आरक्षण पर कैंची पे कैंची चला रही बीजेपी और उधर फसलों के दाम कोड़ी के बराबर बनाने पे ओबीसी का किसान वर्ग सिर्फ एक जाट नफरत के कार्ड पर इनको फिर से वोट दे के, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा? प्रथम दृष्टया तो नहीं लगता, फिर भी अगर ऐसा होने वाला है तो गणतांत्रिक ताकतें अभी से चेत जाएँ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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