Tuesday 6 September 2016

जाट, खुद अपनी कौम से हुए नेता को जाट नेता ना कहें, और कोई कहें तो उनको भी समझाएं!

मंडी-फंडी जानता है कि अगर कोई उनकी हेकड़ी ढीली कर सकता है या इतिहास में कर पाया है तो वो सिर्फ और सिर्फ जाट हैं। इसीलिए इनका खेल चलता है कि जाट को मार लो, तोड़ लो, डरा लो, भ्रमा दो; बाकी तो राजपूत तक इनके 21 पीढ़ियों के पुरखों को मारने पर भी हमारे पैरों में पड़े रहते हैं; तो जाट के अलावा बाकी किसकी बिसात?

और सच भी है जाट के अलावा उत्तर-भारत में किसान (मजदूर व् दलित की भी) की आवाज उठा उसके लिए बेइंतहा कानून बनाने वाले कोई और जाति-समुदाय से (दलितों की आवाज बाबा साहेब व् कांशीराम जी को छोड़कर) विरले ही लीडर हुए हैं। इसीलिए यह लोग बार-बार ऐसा प्रोपगैंडा चलाते हैं कि जाट कौम में पैदा हुए लीडर्स बस जाट कौम के ही बता के प्रचारित करवा दिए जाएँ और यहां तक कि कई भोले जाट भी इस प्रचार के बहाव में बह के उनको किसानी-मजदूरी कौमों के नेता बताने की बजाये सिर्फ जाटों के नेता बताते देखे जाते हैं।
जबकि सर छोटूराम जी से ले के, सर फज़ले हुसैन, सर सिकन्दर हयात खान, सरदार भगत सिंह, सरदार प्रताप सिंह कैरों, चौधरी चरण सिंह, ताऊ देवीलाल, चौधरी बंसीलाल व् बाबा महेंद्र सिंह टिकैत तक कोई भी जाट नेता ऐसा नहीं हुआ जिसने कि सिर्फ जाट किसानों के लिए ही कानून बनवाएं हो, उनके हक़-हलूल की लड़ाई लड़ी हों। वो लड़े तो तमाम किसान-मजदूर-दलित बिरादरी के लिए लड़े।

तो जाट समुदाय मंडी-फ़ंडी के इस ट्रैप को समझें और अपनी कौम में पैदा हुए नेताओं के उन कार्यों बारे औरों को बतावें, जिससे समस्त किसान-मजदूर-दलित समाज के लिए कानून बने और भला हुआ।

उदाहरण के तौर पर सर छोटूराम जी द्वारा सैनी-छिम्बी-खात्ती जातियों को अंग्रेजों से जमीन के मालिकाना किसानी हक दिलवाने हेतु "मनसुखी" बिल पास करवाना। दलितों-महिलाओं-किसानों को भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम रोजगार आरक्षण देना।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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