Wednesday 26 October 2016

"खेड़े के गौत" की लिंग-समानता की थ्योरी, जाटू-सभ्यता को "समगौत भाईचारे" की थ्योरी से भी ऊपर ले जा के बैठाती है!

आजतक यूरोप-इंग्लैंड-फ्रांस-भारत-मिडिल-ईस्ट, यहां तक कि अमेरिका-कनाडा-ऑस्ट्रेलिया तक की भी; गौत यानी गोत्र यानि उपनाम के प्रयोग बारे जितने भी सिद्धांत व् चलन जानने में मिले, 'जाटू-सभ्यता' के 'खेड़े के गौत' वाली लिंग-समानता की परिपाटी किसी में नहीं दिखी| नहीं दिखी, विश्व की किसी भी अन्य सभ्यता में यह सभ्यता जो औलाद का गौत सिर्फ पिता के गौत के आधार पर ही नहीं वरन माता के गौत के आधार पर भी रखने का निर्बाध-निर्विरोध-सर्वमान्य विकल्प देती हो|

क्या कभी सुना है कि फलाने का उपनाम (गौत, गोत्र) उसके पिता की बजाये उसकी माता के उपनाम पर है?
"जाटू-सभ्यता" में यह कांसेप्ट है, यह खुलापन है जहां औलादों के गौत पिता के गौत के साथ माता के गौत के आधार पर भी जाने जाते हैं| और यह मानवीय-मूल्यों और संस्कारों की पराकाष्ठा की अनुभूति "जाटू-सभ्यता" का "खेड़े के गौत" का कांसेप्ट देता है|

"खेड़े के गौत" का कांसेप्ट कुछ समान्तर सम्भावनाओं के साथ मूलतः इस सिद्धान्त पर बना हुआ है कि गाँव में गांव के बेटे की औलाद बसे या बेटी की, दोनों सूरतों में उनकी औलादों का उपनाम "खेड़े का गौत" चुनना सर्वोत्तम रहता है| गाँव की बहु व् गाँव के जमाई का गौत पीछे छूट जाते हैं या कहें कि द्वितीय हो जाते हैं|

ग्रेटर हरयाणा व् पंजाब (जाटू सभ्यता बाहुल्य इलाके) के लगभग हर गाँव-नगरी में 2-4 से ले 10-20-50 तक ऐसे घर मिलते हैं जिनको "धाणी की औलाद" (पंजाब-हरयाणा के बॉर्डर के साथ लगते एरिया में), "ध्याणी की औलाद" (जींद-हिसार-भिवानी क्षेत्रों में), "देहल की औलाद" (रोहतक-सोनीपत-झज्जर-दिल्ली क्षेत्रों में), "बेटी की औलाद" (पश्चिमी यूपी क्षेत्रों में) इत्यादि बोला जाता है|

मेरी (लेखक की) जन्म नगरी निडाना, जिला जींद, हरयाणा में करीब 40 घर ऐसे हैं जो "ध्याणी की औलाद" कहलाते हैं| यानि 3-4 पीढ़ी पहले हमारी कोई बुआ अपने पीहर यानी हमारे गाँव में बस गई थी, और तब से उस बुआ की औलादों का गौत "मलिक" यानी "निडाना के खेड़े" का गौत बजता है, फूफा का गौत पीछे छूट गया था| और यह कांसेप्ट क्या जाट, क्या धानक, क्या चमार; गाँव की हर जाति अनुसरण करती है|

तो जब कभी आपको "समगौत" जैसे मुद्दों पर किसी ऐसे बजरबटटु से जिरह करनी पड़ जाए जो आपकी संस्कृति को तुच्छ दिखाने की कुचेष्टा रखता हो, तो उसके साथ डिफेंडिंग मोड में ना आवें; अपितु इस खुली मानवता के पहलु के साथ उसको "समगौत" से भी आगे "खेड़े के गौत" तक ला के समझावें और बतावें कि कैसे पूरे विश्व में इकलौती सिर्फ जाटू-सभ्यता है जिसमें औलाद का उपनाम उसकी माँ का उपनाम भी हो सकता है| और लगे हाथों उससे यह प्रश्न भी दाग दें, कि बता तेरे यहां क्या फंडा है इस पहलु पर?

हमारे पुरखे इंग्लैंड की आदतों के रहे हैं, जैसे उन्होंने कभी अपना सविंधान, मान-मान्यताएं नहीं लिखी ऐसे ही जाटों ने नहीं लिखी| और जो हिन्दू धर्म के शास्त्र-ग्रन्थों के लेखक है वो तो आजतक भी "जाटू-सभ्यता" को "एंटी-ब्राह्मण" बोलते आये हैं, तो इसलिए इन्होनें भी इनकी डॉक्यूमेंटेशन पर विशेष ध्यान नहीं दिया| परन्तु अब जिस वाहियात व् कबीलाई तरीके से जाट-खाप-हरयाणा के पीछे यह लोग पड़े रहते हैं, ऐसे माहौल में इनको समझाने व् दिखाने हेतु, यह चीजें लिखित रूप में उतारनी जरूरी हो गई हैं| वर्ना यूँ ही चलता रहा तो बहुत जल्द ही यह लोग औरों की तो छोडो खुद जाटों के बीच से ही "जाटू सभ्यता" को समेट देंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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