Sunday, 10 August 2025

मराठा नहीं, महाराजा सूरजमल और सिख मिसलें थीं उत्तर भारत की ताकत

1. महाराजा सूरजमल का वास्तविक राज्य (1748–1763)

राजस्थान (पूर्वी) – भरतपुर, डीग, करौली, अलवर, शाह पुरा और जयपुर के कुछ इलाके।
हरियाणा – फरीदाबाद से लेकर रोहतक, झज्जर, पानीपत तक विस्तृत नियंत्रण।
दिल्ली – कई बार दिल्ली पर अधिकार किया, 1748 और 1763 के बीच दिल्ली की राजनीति में निर्णायक भूमिका।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश – आगरा, मथुरा, हाथरस, मेरठ , बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी आदि।
मध्य प्रदेश का उत्तरी हिस्सा – मुरैना, भिंड, ग्वालियर के आसपास के क्षेत्र।
ये स्वतंत्र राज्य था — न तो मुग़ल के अधीन, न ही मराठों के अधीन।
2. 1757 की चौमुहां (फरीदाबाद) की लड़ाई
अब्दाली दिल्ली लूटकर लौट रहा था।
सूरजमल ने रास्ता रोका और उसे खुली लड़ाई में हराकर भारी नुकसान पहुँचाया।
यही अब्दाली, जो सूरजमल से टकराकर मुश्किल से बचा, बाद में 1761 में मराठों को पानीपत में हरा सका।
यह साबित करता है कि सूरजमल की सेना और रणनीति मराठों से कहीं ज़्यादा सक्षम थी।
3. 1761 – तीसरी लड़ाई (मराठों की हार और सूरजमल का न होना)
पानीपत की लड़ाई में मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ ने सूरजमल की सलाह और मदद ठुकरा दी।
नतीजा – मराठों की 3 लाख सेना में से अधिकांश मारे गए, जबकि अब्दाली के पास संख्या में बहुत कम सैनिक थे।
सवाल सही है — अगर इतने “धुरंधर” थे, तो 200 अफ़ग़ानों को भी क्यों न मार पाए मराठे?
असल कारण — रणनीतिक गलतियाँ, उत्तर भारत के भूगोल व लॉजिस्टिक्स की अनदेखी, और स्थानीय राजाओं से दुश्मनी।
4. सिख जाट राज्यों का फैलाव
हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, पाकिस्तान के बड़े हिस्से — तत्कालीन समय में कई स्वतंत्र सिख-जाट मिसलों के अधीन।
महाराजा आलम सिंह, महाराजा रंजीत सिंह, नाभा, पटियाला, जिंद, कैथल, सिरसा इत्यादि।
ये क्षेत्र भी न तो मराठों के अधीन थे, न मुग़लों के — बल्कि स्वतंत्र शक्ति केंद्र थे।
5. नक्शों में “मराठा साम्राज्य” का अतिशयोक्ति
कुछ आधुनिक “हिंदुत्व” या RSS-प्रेरित नक्शों में पूरे उत्तर भारत को “मराठा” रंग में दिखाया जाता है।
असलियत — 1761 के पहले और बाद में मराठों का सीधा प्रशासनिक नियंत्रण सिर्फ़ दक्कन, महाराष्ट्र, गुजरात, मालवा और कुछ समय के लिए दिल्ली/आगरा तक था।
भरतपुर, सिख राज्यों, रोहतक–झज्जर–पानीपत बेल्ट, पंजाब, हिमाचल — इन पर कभी मराठों का स्थायी नियंत्रण नहीं रहा।
ऐसे नक्शे राजनीतिक “प्रचार” के लिए बनाए जाते हैं, ताकि यह लगे कि पूरा उत्तर भारत “मराठा अधीन” था — जबकि यह ऐतिहासिक रूप से ग़लत है।
6. असली शक्ति संतुलन (1748–1765)
जाट राज्य (भरतपुर) – महाराजा सूरजमल
सिख मिसलें – पंजाब से हिमाचल और पश्चिमी पाकिस्तान तक
मराठा – अस्थायी गठबंधन के साथ दिल्ली-आगरा तक
अब्दाली – लूटमार के लिए अस्थायी आक्रमण
अवध – नवाब शुजाउद्दौला
मुग़ल – सिर्फ़ नाममात्र के बादशाह
यह रहा 1748–1763 का वास्तविक राजनीतिक नक्शा, जिसमें महाराजा सूरजमल का भरतपुर राज्य, सिख मिसलें, अवध, दिल्ली क्षेत्र और मराठों का अस्थायी प्रभाव अलग-अलग रंगों में दर्शाया गया है। इसमें साफ़ दिखता है कि उत्तर भारत पर मराठों का स्थायी नियंत्रण नहीं था।

By: Sanjay Mann




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