यूनियनिस्ट मिशन की दिशा-दशा बारे कई बार पब्लिक प्लेटफार्म पर भी बातें
करने का मन करता है| हालाँकि मिशन की कोर-टीम में तो अक्सर चर्चाएं चलती ही
रहती है| आज एक ऐसी चर्चा और दिशा का सुझाव सबके सामने ला रहा हूँ, जो इस
घोर जातिवाद हो चले सरकारी-सामाजिक माहौल में कैडर को "फ़ूड फॉर थॉट" का काम
करेगा|
गोडसे ने गाँधी को गोली मारी, आरएसएस बैन हुई| 1950 से ले के 1984 तक बैन रही| जब तक 2014 वाली बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं आई, बीजेपी ने गोडसे को छुआ भी नहीं; क्योंकि गोडसे की पब्लिक छवि एक आतंकवादी की रही| परन्तु सत्ता और पावर वो करिश्मा है जो कल तक आतंकवादी कह जाने वाले को आज आदर्शपुरुष बना कर पेश करे तो बड़े-बड़ों के मुंह पर ताले लग जाएँ|
यही कहानी मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सिंध में सरकार बनाने वाले सावरकर की रही और यही कहानी कश्मीर में लाल चौक पर श्यामाप्रसाद मुखर्जी का कत्ल होने की रही| परन्तु लोक-आलोचना के चलते आरएसएस/बीजेपी ने इनको पब्लिक में नहीं उठाया और ना ही इन तीनों को भूली; बल्कि सीने में इनके प्रति अपने प्यार को दबाये तब तक चलती रही जब तक पूर्ण बहुमत की सत्ता इनके हाथ में नहीं आई|
इसलिए किसी का इन उदाहरणों जैसे किसी व्यक्तित्व से लगाव है तो उस लगाव को सीने में दबा के रखे, और
पहले सत्ता, सांस्कृतिक और सामाजिक हालात बदलने पर कार्यरत रहे|
ज्यादा बेचैनी व् निराशा घेरे तो "खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तबदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है।" की ध्यान-केंद्रित करने की राह पर निकल जावें; हल जरूर मिलेगा।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
गोडसे ने गाँधी को गोली मारी, आरएसएस बैन हुई| 1950 से ले के 1984 तक बैन रही| जब तक 2014 वाली बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं आई, बीजेपी ने गोडसे को छुआ भी नहीं; क्योंकि गोडसे की पब्लिक छवि एक आतंकवादी की रही| परन्तु सत्ता और पावर वो करिश्मा है जो कल तक आतंकवादी कह जाने वाले को आज आदर्शपुरुष बना कर पेश करे तो बड़े-बड़ों के मुंह पर ताले लग जाएँ|
यही कहानी मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सिंध में सरकार बनाने वाले सावरकर की रही और यही कहानी कश्मीर में लाल चौक पर श्यामाप्रसाद मुखर्जी का कत्ल होने की रही| परन्तु लोक-आलोचना के चलते आरएसएस/बीजेपी ने इनको पब्लिक में नहीं उठाया और ना ही इन तीनों को भूली; बल्कि सीने में इनके प्रति अपने प्यार को दबाये तब तक चलती रही जब तक पूर्ण बहुमत की सत्ता इनके हाथ में नहीं आई|
इसलिए किसी का इन उदाहरणों जैसे किसी व्यक्तित्व से लगाव है तो उस लगाव को सीने में दबा के रखे, और
पहले सत्ता, सांस्कृतिक और सामाजिक हालात बदलने पर कार्यरत रहे|
ज्यादा बेचैनी व् निराशा घेरे तो "खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तबदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है।" की ध्यान-केंद्रित करने की राह पर निकल जावें; हल जरूर मिलेगा।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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