Thursday 24 November 2016

हस्तकला का अजब नमूना हरियाणवी फुलझड़ी!

मित्रों, फुलझड़ी हरियाणवी लोककला का ऐसा सतरंगी नमूना है जो हरियाणवी महिलाओं की हस्तकला को प्रतिनिधित्व प्रदान करता है। लोक कला का यह नमूना हरियाणवी लोकजीवन में महत्वपूर्ण रहा है। लड़की की विदाई के समय महिलाएं हस्तकला के अनेक विषय वस्तुओं को ससुराल पक्ष के लोगों के लिए देने की परंपरा रही है। इसमें कोथली, पोथिया, गिन्डू, बोहिया, फुलझड़ी अनेक ऐसी विषय वस्तुएं रही हैं जो हरियाणवी महिलाओं के हस्तकला को प्रदर्शित करती रही है। फुलझड़ी भी उसी तर...ह का एक हस्तकला का नमूना है। इसे बनाने के लिए सरकंडे का प्रयोग किया जाता है। सरकंडे को सबसे पहले वर्गाकार रूप में जोड़ लिया जाता है। जोडऩे के पश्चात जब इसकी आकृति पिंजरे जैसी बन जाती है तो उसके उपर रंगीन कपड़ों को तिरछे आकार में लपेटा जाता है। वर्गाकार सभी सरकंडे रंगीन कपड़ों से लपेट दिए जाते हैं। इसके साथ ही उसके पश्चात घोटा तथा पेमक चढ़ाकर इन सरकंडों के वर्गाकार स्वरूप को कलात्मक स्वरूप प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही फुलझड़ी के ऊपरी सिरे पर जिसे बंधने वाला सिरा भी कहा जाता है पर कपड़ों से बना हुआ तोता बांधा जाता है। इसके वर्गाकार ऊपरी कोनों पर भी छोटे-छोटे तोते बांधने की परंपरा है। इसके पश्चात वर्गाकार स्वरूप में धागे की लडिय़ां लटकाई जाती हैं। इन लडिय़ों में तिकोने रंगीन आकार के कागज पुर दिए जाते हैं। ये छोटी-छोटी मोतियों जैसी लडिय़ों की अनेक लटकनें फुलझड़ी की शोभा को बढ़ाती हैं। इसके साथ-साथ रंगीन कपड़ों से ढ़ककर बीच-बीच में माचिश भी बांधी जाती है जिनमें अनाज के दाने ड़ाल दिए जाते हैं। इसके साथ ही फुलझड़ी की सभी लडिय़ों के निचले हिस्से तथा आखिरी छोर पर बल्ब तथा रंगीन कपड़ों के बने हुए छोटे गोलाकार गिन्डू बांधने की परंपरा भी रही है। फुलझड़ी की सतरंगी आभा इतनी अनोखी तथा आकर्षक होती है कि वह सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। नववधु को दूसर यानि के दूसरी बार ससुराल में जाते समय हस्तकलाओं के अनेक नमूने ले जाती है। उसमें से फुलझड़ी भी एक है। फुलझड़ी को घर के दालान में शहतीर के बीच में लगे हुए कड़े पर बांधने की परंपरा है। कौन बहु कितनी सुंदर फुलझड़ी लाती थी इसकी चर्चा आस-पड़ोस में अवश्य होती थी। इसके साथ ही फुलझड़ी नववधु के जेठ द्वारा बांधी जाती है। नववधु की फुलझड़ी बांधने के बदले में ज्येष्ठ कुछ राशि के रूप में इनाम भी नववधु से लेता है। जेठ द्वारा बहु की फुलझड़ी बांधना लोकजीवन में गर्व एवं गौरव का हिस्सा रहा है। नववधु, ससुर, देवर, जेठानी, ननद सभी के लिए कुछ न कुछ हस्तकला का नमूना लेकर आती रही है। फुलझड़ी बांधना तथा संदूक उतरवाना जेठ के हिस्से में आता है। वर्तमान में फुलझड़ी बनाने की परंपरा लुप्तप्राय हो चली है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय रत्नावली समारोह में फुलझड़ी बनाने की प्रतियोगिता को शामिल किया गया है। उसी की एक झलक आप लोगोंं से सांझा कर रहा हूं।

Author and Content: Mahasingh Poonia, Mahasingh Poonia

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