Sunday 4 December 2016

जाट अगर इस जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े को पलक झपकते समेटवाना चाहते है तो यह करें!

जाट मर्द खुद भी और अपने घर की औरतों से भी यह कह दें कि हमारे घरों-दरवाजों-गलियों-चौराहों पर मन्दिर-गौशाला-जगराता-भंडारा आदि के नाम पर हर दान मांगने आने वाले, हर दान की पर्ची काटने वाले को यह कहो कि जा के पहले यह जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े बंद करवाओ और फिर दान ले जाओ।

मैं जानता हूँ कि इन्हीं में से किसी-किसी के इशारों पर चलने वाले इन जाट बनाम नॉन-जाट रुपी अखाड़ों वाले यह बड़े भोले बनते हुए कहेंगे कि अजी हमने कौनसा इनको ऐसा करने-रचने-बोलने को बोला है।

तो जवाब देना कि हमने कब कहा है कि आपने रचने-करने-बोलने को बोला है परन्तु हम इतना जानते हैं कि आपके कहने से यह चुप बैठ जायेंगे और समाज का भाईचारा बचा रहेगा और सबका भला हो जायेगा।

और जो यह ढीठ बनते हुए यह कह दें कि अजी हमारी नहीं सुनेंगे तो जुबानी तीरों से इनको थपड़ाने के लहजे (ध्यान रहे हाथों से नहीं थपडाना, मेरी दादी वाले स्टाइल में सिर्फ जुबान-जुबान में ही टाकलना है) में जवाब देना कि जब तुम्हारी कोई सुनता ही नहीं तो हम क्यों सुनें? जाओ कोई और दरवाजा देखो।

देखना जब आगे से ऐसे दो-टूक जवाब मिलेंगे, बिना दान के जब भूखे मरते पैर कूटेंगे और पेटों में इनके मरोड़े लगेंगे तो यह तो क्या सीधा मोहन भागवत और शंकराचार्य तक ना राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य और अश्वनी चोपड़ा जैसों के मुंहों पे "तोड़े-से-भी-ना-टूटे" वाले फेविकॉल चिपका दें तो।

मैंने तो यह नियम बना लिया है और मेरे घर-रिश्तेरदारों में इसको फैला रहा हूँ; आप भी यह काम शुरू कर लें तो देखो कितना जल्दी घर बैठे जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े सिमटते हैं।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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