Saturday 20 May 2017

भारत के मुग़ल-अंग्रेज गुलामीकाल के वो ऐतिहासिक सुनहरे पन्ने जब भारतीय सिंह-सूरमों ने "दिल्ली" पर 5 बार विजय पताका फहराई!

1) सन 1753 में भरतपुर (ब्रज) के महाराजाधिराज अफलातून सूरजमल सुजान ने दिल्ली जीती! और ऐसी झनझनाती टंकार पर जीती कि कहावत चल निकली, "तीर चलें तलवार चलें, चलें कटारे इशारों तैं; अल्लाह मिया भी बचा नहीं सकदा जाट भरतपुर आळे तैं"!

2) सन 1757 में मराठाओं ने कमांडर रघुनाथ राव की अगुवाई में दिल्ली जीती|

3) सन 1764 में भरतपुर के ही महाराजा भारतेन्दु जवाहरमल ने दिल्ली जीती और मुग़ल राजकुमारी का हाथ नजराने में मिला परन्तु अपनी सेना के फ्रेंच कप्तान समरू को नजराने में दे दिया| हाँ, चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मावती के काल से अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा वहां के किले का उखाड़ कर लाया गया अष्टधातु का दरवाजा जो तब से अब तक दिल्ली लालकिले की शोभा बढ़ा रहा था, वह जरूर उखाड़ के भरतपुर ले गए| जो कि आज भी भरतपुर के दिल्ली दरवाजे की शोभा बढ़ा रहा है| यह जीत "जाटगर्दी" व् "दिल्ली की लूट" के नाम से भी जानी जाती है|

4) सन 1783 में सरदार बघेल सिंह धालीवाल ने दिल्ली को फत्तह किया! और दिल्ली में एक के बाद एक 7 गुरुद्वारे स्थापित किये|

5) सन 1834 में शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह संधावालिया ने शाहसूजा को हराकर उससे कोहिनूर हीरा नजराने के रुप में लिया और दिल्ली फतेह की !

क्योंकि लेख में जिक्र गुलामी काल में भारतियों द्वारा दिल्ली जीतने का था, इसलिए दिल्ली की जीत की तारीखों पर फोकस रखा गया| इसके अलावा जो सबसे मशहूर और विश्व सुर्ख़ियों में छाने वाली जीतें थी, वो थी भरतपुर में अंग्रेजों की एक के बाद एक 13 हारें| जो इतनी बुरी थी कि इधर भरतपुर में भरतपुर सेनाएं अंग्रेजों को मार पे मार मारे जा रही थी और उधर कलकत्ता में अंग्रेजन लेडीज अंग्रेज अफसरों व् सैनिकों की लाश पे आती लाशें देख कर इतनी रोई कि कहावत चल निकली, "लेडी अंग्रेजन रोवैं कलकक्ते में!"

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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