Sunday, 24 August 2025

कुम्हारों का चाक लगान, जुलाहों का बुनकर लगान, नाइयों का करतन लगान; किसने हटवाए?

 कुम्हारों पर लगता था चाक लगान

जुलाहों पर लगता था बुनकर लगान

नाइयों पर लगता था करतन लगान


सवाल: किसने हटवाए? 

जवाब: दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने


हमारा दोष है कि हम उतनी बडी दृष्टि ही नहीं रख पाते हैं जितने महापुरुष रखते हैं। आजकल तो मूर्खों में फैशन हो गया है कि महापुरुषों पर अंगुली उठाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का लेकिन सच ये है कि बडे लोगों के दिल भी बडे होते हैं और वो जाति धर्म संप्रदाय के आधार पर किसी से भेद नहीं करते बल्कि खुले दिल से सबकी मदद करते हैं और चौधरी छोटूराम भी ऐसे ही महापुरुष थे। अब आइए उनके उन कामों पर चर्चा करते हैं जो वक्त की धूल में भुला दिए गए। 


चाक लगान समाप्ति 


राजपूताना के राजाओं तथा ठिकानेदारों के द्वारा कुम्हारों के घड़े और मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने पर 5 रुपये वार्षिक 'चाक लगान' लगा रखा था। राजाओं का कहना था कि जिस मिट्टी से कुम्हार घड़े और बर्तन बनाते हैं, वह मिट्टी राजाओं की जमीन की है। अतः यह लगान देना ही पड़ेगा।


चौधरी छोटूराम ने 5 जुलाई, 1941 को बीकानेर में कुम्हारों को एकत्र किया और महाराजा गंगा सिंह से बातचीत करके इस 'चाक लगान' को हटवाया। इससे खुश होकर कुम्हारों ने सर छोटूराम को एक सुंदर सुराही भेंट करके सम्मानित किया। यह ऐसी सुराही थी, जिसमें पानी बेहद ठंडा रहता था। इस सुराही को चौधरी साहब ने मृत्यु पर्यन्त अपने पास रखा।


बुनकर लगान से दिलाई मुक्ति 


राजस्थान के शेखावाटी और मारवाड़ क्षेत्र में तथा विशेष तौर पर जयपुर, पाली और बालोतरा में मेघवाल समाज के जुलाहे, रजाई, खेस, चादर और मोटा सूती कपड़ा बुनकर बेचते थे। इसके लिए गृहणियां सूत कातकर दे देती थीं।


ठिकानेदारों ने इन जुलाहों पर बुनकर लगान लागू कर रखा था। सर छोटूराम ने सन् 1937 से 1941 तक लगातार इस लगान का अपनी अगुवायी में विरोध करके इस लगान से मुक्ति दिलवाई।


9 जुलाई, 1941 को बालोतरा में ठिकानेदारों ने जुलाहों के घरों को लगान न देने के कारण आग लगा दी, जिससे काफी नुकसान हुआ। सर छोटूराम वहां गए और 8 दिन तक भूख हड़ताल की। तब जोधपुर के राजा का संदेश आया कि यह लगान समाप्त कर दी गई है।


सर छोटूराम 28 जुलाहा परिवारों को आग से हुए नुकसान के लिए 1500 रुपये प्रत्येक परिवार को राजा से दिलवाने के लिए अड़ गए। अतः तीन दिन बाद राजा ने हर परिवार को 1500 रुपए देने की घोषणा की। दलितों और पिछड़ों की भलाई के लिए किए गए ऐसे संघर्षों को देखकर दीनबंधु छोटूराम आज भी प्रासंगिक हैं और रहेंगे।


कतरन लगान हटवाना 


नायक, बाबरिया आदि जातियां भेड़-बकरियों के बालों से ऊन बनाकर बेचती थी। ठिकानेदारों ने ऊन बनाने और बाल काटने पर 'कतरन लगान' लगा रखा था। इसी प्रकार से, नाइयों के द्वारा बाल काटने का धंधा करने पर 'कतरन लगान' का भुगतान करना पड़ता था।


इस 'कतरन कर' से मुक्ति दिलवाने के लिए सर छोटूराम लाहौर से मारवाड़ के गांव पहाड़सर और रतनकुड़िया में जाकर 26 जुलाई, 1941 को वहां के भेड़-बकरी पालकों और उस क्षेत्र के नाइयों को एकत्र करके 'कतरन लगान' के खिलाफ जोरदार आन्दोलन किया और इस 'कतरन लगान' को हटवाकर दम लिया।


जागीरदारी प्रथा का उन्मूलन 


रियासती काल में लगान वसूल करने और बेगार लेने के ठिकाने जागीरदारों के अधीन थे। जागीरदार की मर्जी ही कानून था। ये जागीदार बड़े ही निरंकुश और मनमानी करने वाले थे। यदि किसान से लगान वसूली नहीं होती, तो किसान को पकड़कर ठिकाने के गढ़ या हवेली में लाया जाता था और उसके साथ बर्बरता की जाती थी, जैसे-भूखा रखना, काठ में डाल देना आदि।


इन सजाओं की कोई सीमा नहीं थी, कोई कानून नहीं था, कोई व्यवस्था नहीं थी। अभद्र गाली देना, खड़ी फसल कटवा लेना, पशु खुलवा लेना, वर्तन कपड़े आदि उठवा लेना, किसान की मुश्कें कसवा देना, जमीन से बेदखल कर देना, पंखा खिंचवाना आदि साधारण बात थी। चौधरी छोटूराम ने इस क्रूर प्रथा के खिलाफ आवाज उठाकर इसे समाप्त करवाया।


चौधरी साहब ने कहा कि किसान की कोई जाति नहीं, उसकी जाति जमींदार पार्टी है। किसान चाहे दलित हो, सवर्ण हो या पिछड़ा हो, वह 'जमींदार' कहा जाएगा। धर्म का भी इसमें कोई बंधन नहीं है, कोई भेदभाव नहीं होगा। जमींदार पार्टी सदस्य वो है जो अपने पसीने से अपनी रोटी कमाता है। 


साभार: दीनबंधु छोटूराम की जीवनी, लेखक: पदमश्री डॉ संतराम देशवाल

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