Saturday 28 December 2019

सातवाँ जाटरात्रा - 29 दिसंबर - "सर्वखाप का अखाड़ा मिल्ट्री कल्चर"!


इस रात्रे का शीर्षक: "खापलैंड के हर गाम-खेड़े में "कुश्ती-अखाड़ों" के जरिये सर्वखाप द्वारा सदियों से पाले जाने वाला "मिल्ट्री-कल्चर" यानि "सर्वखाप का सोशल सिक्योरिटी एंड सेफ्टी सिस्टम" व् ग़ज़नी-गोरी-तैमूर-अंग्रेज आदि को लूटने-मारने से होते हुए वर्ल्ड वॉर 1 व् 2 और वर्तमान इंडियन डिफेंस सिस्टम में इस कल्चर का योगदान| साथ ही जानें कि कई गाम व् शहरों के नाम में "गढ़ या गढ़ी" लिखे मिलने का राज; जैसे सांपलागढ़ी, राखीगढ़ी, गढ़ी टेकना मुरादपुर, बहादुरगढ़, बल्लबगढ़ आदि|

अनुरोध: हालाँकि इस लेख में जितना भी मटेरियल लाया हूँ, उसमें योगदान सर्वसमाज व् सर्वधर्म का रहा है| परन्तु क्योंकि जाटरात्रे चल रहे हैं और जाट सर्वखाप की सबसे बड़ी व् अहम् इकाई रहा है तो इनका जिक्र जाट की रिफरेन्स में करना जरूरी हो जाता है| अगर कल को सर्वसमाज मिलकर "खापरात्रे" मनाता है तो उस अवस्था में इस लेख में "जाट शब्द" का जिक्र मायने नहीं रखेगा| परन्तु जब तक सर्वसमाज " खापरात्रे" शुरू नहीं करता तब तक "सर्वखाप का सबसेट यानि जाट" सर्वखाप को "जाटरात्रों" के माध्यम से याद करते रहेंगे|

सातवेँ जाटरात्रे को मनाने का थीम - "उदारवादी जमींदारी की थ्योरी खापोलॉजी का 'मिल्ट्री-कल्चर' विश्व का सबसे पुराना ऐसा सिस्टम रहा है जो रातों-रात जितने हजारों-लाखों की सेना चाहिए, उतनी कैपेसिटी की तुरंत तैयार करने की क्षमता व् माद्दा रखता आया है"|

मुख्य मंथन क्या करें - "जाट व् खाप, ऑफ-सीजन (off-season) यानि माइथोलॉजी की गपेड़ों वाले छत्री नहीं अपितु प्रैक्टिकल ग्राउंड यानि ऑन-सीजन (on-season) पर दुश्मन के सामने गाड़े जाने वाले तम्बू क्यों कहलाएं हैं?" विशाल हरयाणा की खापलैंड पर जो काफी गामों-शहरों के नामों के पीछे "गढ़" व् "गढ़ी" लिखे मिलते हैं यह सब सर्वखाप की छापामार युद्धकला के दौरान बनाई जाने वाली "गढ़ियों" के स्थान रहे हैं, जो नाम से ही साक्षी हैं कि इन गामों में किसी न किसी युद्ध में खापों ने गढ़ियाँ (मॉडर्न मिल्ट्री लैंग्वेज में जिनको बंकर बोला जाता है) बनाई थी|

उत्सव स्वरूप क्या चर्चा करें?: फरवरी 2016 के 35 बनाम 1 दंगे होने के बाद जनवरी 2017 में इंडिया आया था| आते ही साथी-सहयोगियों के साथ मिलकर सर्वखाप के सबसेट "सर्वजाट सर्वखाप" की वर्कशॉप ऑर्गनाइज़ करी थी| इस वर्कशॉप को अटेंड करने वालों में दर्जन भर एनआरआई जाट्स, दो दर्जन के करीब जाट खापों के चौधरी व् 50 के करीब ब्यूरोक्रेसी-सोशल संगठनों व् बुद्धिजीवी तबके के जाट व् जाटनी जुटे थे| उसमें सबसे अहम् कथन यही रखा था कि, "जिस प्रकार अगर ब्राह्मण मूर्तिपूजा वाले मंदिरों की देखरेख करनी छोड़ दे तो यह अगले ही दिन खत्म होने शुरू हो जाएँ, उसी प्रकार जाट अगर “सर्वखाप-सिस्टम” व् "दादा नगर खेड़ों" की देखरेख छोड़ दे तो खाप सिस्टम व् दादा नगर खेड़े स्वत: ही अपनी मौत मर जाए"| क्योंकि जैसे मूर्ती-पूजा सिस्टम का जनक कहें या इसकी प्रेरणा में ब्राह्मण बैठा है, ऐसे ही सर्वखाप सिस्टम का जनक कहें या इसकी प्रेरणा में जाट बैठा है| इन दोनों में बड़ा फर्क यही है कि मंदिर की कमाई व् ताकत, ब्राह्मण दिखाता सबकी है परन्तु हकीकत में इनकी कमाई व् ताकत दोनों पर कब्जा अकेले का कायम रखने की कोशिश में रहता है, जबकि सर्वखाप व् दादा नगर खेड़ों को जाट (वर्णवादी प्रभाव वाले जाट को छोड़कर) हकीकत में ही सबका रखता है सर्वसमाज इनके यश व् ताकत से लाभान्वित होता आया है|

परन्तु जबसे खापों में राजनीति घुसी है तब से खाप सिस्टम डाउन ही डाउन गया है| खापों से सीख कर आरएसएस तक अपना नॉन-पोलिटिकल संघ खड़ा कर गई परन्तु खापों के 90% चौधरियों की ऐसी मति भर्मित चल रही है कि उनको सोशल चौधर भी चाहिए और पोलिटिकल कुर्सी भी| आरएसएस आपके पुरखों से सीख कर सोशल प्रेशर ग्रुप व् पोलिटिकल प्रेस्सुर ग्रुप्स अलग-अलग रखना सीख के इतना ग्रो कर गई परन्तु खाप दिशा भटक गई| अत: अपना रूतबा वापिस चाहिए तो यह सोशल चौधर और पोलिटिकल कुर्सी की दो नावों में एक साथ सवार होने की मंशा त्यागनी होगी| कहीं-कहीं असर देखने को भी मिला है परन्तु उतना व्यापक असर आना अभी बाकी है जितना हमारे पुरखों में होता था|

बस आज के जाटरात्रे में एक तो मुख्य चर्चा यही की जाए कि सोशल चौधर व् पोलिटिकल चौधर को अलग-अलग रख के, दोनों जगह अलग-अलग बंदे रख के खापें कैसे आगे बढ़ें व् दूसरा ऐसा करना क्यों जरूरी है| वह निम्नलिखित उदाहरणों से समझें कि आपके पुरखों ने सोशल व् पोलिटिकल सिस्टम अलग-अलग रखे तो ही वह जब-जब राजे-रजवाड़े व् धर्मगुरु फ़ैल हुए तो भी अपने अकेले दम पर देश को भारी मुसीबतों से बार-बार निकालते-बचाते रहे| अगर यह माद्दा पाले रखना है तो पुरखों की राही पर आना होगा हर खाप चौधरी को| कौनसा माद्दा भला, पढ़िए दर्जनों उदाहरणों में से निम्नलिखित सिर्फ 1 दर्जन उदाहरण:

1) सन 1025 में सोमनाथ की लूट को महमूद ग़ज़नी से ना कोई धर्मरक्षक बचा सका ना कोई हिन्दू राजा, वह किसने छीनी ग़जनी से? - जवाब है बाला जी जट्ट की अगुवाई में सिंध के जाटों की खाप आर्मी ने|
2) सन 1206 में पृथ्वीराज चौहान को 1192 में मारने वाले कातिल मोहम्मद गौरी को किसने मारा? - जवाब है दादावीर रामलाल खोखर ने उनकी खाप आर्मी के साथ|
3) सन 1193 में गौरी के गुलामवंश के प्रथम शासक कुतुबद्दीन ऐबक की आधी से ज्यादा सेना को हांसी-हिसार के टिल्लों में किसने काटा? - जवाब है दादावीर जाटवान सिंह गठवाला मलिक ने उनकी खाप आर्मी के साथ|
4) सन 1295 में हिंडन व् काली नदी के मुहानों पर अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना व् उसके सेनापति मलिक काफूर के छक्के छुड़ाने वाले कौन थे (वही खिलजी जिसने चित्तौड़गढ़ तबाह किया था)? - यही सर्वखाप आर्मी|
5) सन 1355 में चुगताई वंश के चार सरदारों को गोहाना से बरवाला तक दौड़ा-दौड़ा कर किसने पीटा? - किसी राजा या धर्मगुरु ने नहीं अपितु सर्वखाप यौद्धेया दादीरानी भागीरथी कौर ने व् उनकी सर्वखाप महिला आर्मी ने|
6) सन 1398 में मुहम्मद बिन तुगलक ने जब बिना लड़े ही तैमूर लंग के आगे हथियार डाल दिए थे तो तैमूरलंग की झाँग में भाला मार उसको लंगड़ा किसने बनाया व् देश से भगाया? - सर्वखाप आर्मी के उपसेनापति यौद्धेय बादली वाले दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जी महाराज ने व् सर्वखाप आर्मी ने| सनद रहे इस युद्ध में सर्वखाप सेनापति थे दादावीर जोगराज जी गुज्जर|
7) सन 1508 में बाबर के खिलाफ राणा साँगा की जान बचाते हुए उनकी झोली में जीत डालने वाले कौन थे? - वीर यौद्धेय कीर्तिमल जाट व् उनकी सर्वखाप आर्मी|
8) सन 1620 में दादीराणी समाकौर गठवाली मलिक के आह्वान पर दादी जी के सम्मान में कलानौर-रियासत, रोहतक को मलियामेट किसने किया? - गठवाला खाप के आह्वान पर जुटी सर्वखाप ने, दादावीर धोला जी सांगवान की सर्वोपरि वीरता में|
9) सन 1628 में मुगल शासक शाहजहाँ के भारी-भरकम कृषि-करों के खिलाफ उदारवादी जमींदारी क्रांति का बिगुल किसने फूंका? - दादावीर नंदराम जी के नेतृत्व वाली सर्वखाप आर्मी ने, जिसने शाही सेनाओं को हराया व् बढ़े कर वापिस करवाए| और तुम्हें-हमें लगता है कि आज वाली सरकारें यूँ-ही-बैठे-बिठाये एमएसपी रेट पर आपकी फसलें खरीदेंगी?
10) 1 जनवरी 1670 में जिन सर्वखाप यौद्धेय गॉड गोकुला जी महाराज की गुरु तेगबहादुर जी के बलिदान से 5 साल पहले औरंगजेब के दरबार में शहादत हुई, वह कौन थे? - वह थे विश्व की सबसे भयंकर व् 7 महीनों तक चलने वाली औरंगजेब से आमने-सामने की लड़ाई लड़ने वाली सर्वखाप आर्मी के सर्वेसर्वा| यह लड़ाई भी कृषि पर लगे भारी-भरकम टेक्सों के खिलाफ थी| जहाँ बड़े-बड़े राजे रजवाड़े मुग़ल शासकों के आगे दो-अढ़ाई घंटे ही ठहर पाते थे वहीँ सर्वखाप आर्मी 7-7 महीने उनसे लोहा लेती थी| तिलपत फरीदाबाद की लड़ाई थी वह| और यह सब सिर्फ "सर्वखाप के अखाडा मिल्ट्री कल्चर" की बदौलत|
11) वह भरतपुर रियासत किसकी देन थी जो ना कभी मुग़लों से हारी, न पेशवाओं से व् ना ही कभी अंग्रेजों से? - इसी सर्वखाप अखाडा मिल्ट्री कल्चर की|
12) 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को इतनी मुखर टक्कर देने वाली आर्मी कौन थी कि जिसकी ताकत को तोड़ने हेतु अंग्रेजों ने विशाल हरयाणा के ही "यमुना आर" व् "यमुना पार" बोल के दो टुकड़े कर दिए? - यही बाबा शाहमल तोमर व् अन्य दर्जनों खाप चौधरियों के नेतृत्व वाली सर्वखाप आर्मी|

यानि जहाँ सर्वखाप सिस्टम से अलग सिस्टम से निकले राजे-रजवाड़े फ़ैल हो जाते थे, माइथोलोजियों की गपेड़ों वाले वीर कहीं हकीकत व् प्रैक्टिकल में नजर नहीं आये कभी; वहां हमारी सर्वखापेँ बार-बार आगे आती रही और राजे-रजवाड़ों व् धर्म वालों के दावे-ढकोसलों के फ़ैल होने पर भी देश के सिस्टम को विदेशियों के पंजों में मानवता की क्रूरता की हद तक पडने से बार-बार बचाती रही|

भाड़ में जाओ जाट बनाम नॉन-जाट की बकवास और चूल्हे में पड़ो ऐसी पोस्ट्स लिखने पर मुझमे व् मेरी पोस्टों में जातिवाद देखने वाले जनावर; तुम्हें गोलूँगा तो यह इतिहास, यह किनशिप कैसे पास करूँगा आगे की पीढ़ियों को? क्योंकि तुम तो फिल्मों-टीवियों आदि में कभी यह इतिहास ये वीर ये यौद्धेय-यौद्धेयायें दिखाते नहीं, मंदिरों के स्पीकरों से कभी इनके किस्से सुनाते नहीं बल्कि उल्टा सर्वखाप सिस्टम से निकले इकलौते अजेय भरतपुर साम्राज्य के अफ्लातूनों जैसे कि महाराजा सूरजमल जैसी अजेय-देदीप्यमान हस्तियों को "पानीपत" जैसी फिल्मों में हंसी का पात्र बनाते पाए जाते हो? हाँ, जाट जाति के गौरव को गाऊंगा, किसी अन्य जाति को नीचे दिखाऊं तो तुम्हारी जूती और मेरा सर|

इस इतिहास व् सिस्टम को वैसे तो सारा देश याद करे परन्तु आज सातवें जाटरात्रे के दिन जाट समाज तो कम-से-कम ना सिर्फ याद करे वरन ऐसे तमाम खाप-यौद्धेयों व् उनके "अखाडा मिल्ट्री कल्चर" को शीश नवाएँ-गाएं-बताएं-सुने-सुनाएँ| गर्व की बात है कि हमारे खापलैंड के गाम-खेड़ों के इसी मिल्ट्री कल्चर रुपी अखाड़ों से ही देश की डिफेंस फोर्सेज में सबसे ज्यादा जवान जाते हैं| वर्ल्ड वार 1 व् 2 में आधा दर्जन से भी ज्यादा 'विक्टोरिया-क्रॉस' वीरता मेडल्स लाते हैं| जिन जाटों को सराहने के नाम पर तथाकथित स्वधर्मी ग्रंथी व् लेखकों की कलमों की स्याही सूख जाती है, वही जाट जाति अंग्रेजों से "रॉयल रेस" का टाइटल व् पहचान पाती है| और इन सब उपलब्धियों की जड़ों में कोई है तो वह है "सर्वखाप का अखाडा मिल्ट्री कल्चर"| किसी ने सही कहा है, "इतने बड़े वीर, दुनियाँ बड़े-बड़े राजे-रजवाड़े, धर्माधीस व् अधिनायकवादी नेता बना के नहीं खड़े कर पाती, जितने बड़े सर्वखाप का "अखाड़ा मिल्ट्री कल्चर" बच्चों के खेल की भाँति देता आया है"|

सनातनी लोग फेनेटिक हैं सर्वखाप सिस्टम के: इसीलिए इन्होनें भी सर्वखाप अखाड़ों की तर्ज पर अपने अखाड़े बनाये परन्तु हमारे अखाड़ों वाला मिल्ट्री-कल्चर इनके अखाड़ों में आज तक नहीं पाल पाए या कहिये कि उस स्तर की बुलंदी तक कभी नहीं पहुँच पाए| सर्वखाप कल्चर से निकली भरतपुर रियासत ने जब अंग्रेजों को सन 1804 में 4 महीनों के भीतर 13 बार हराया तो, इनको फेनेटिज्म हुआ कि हम भी कुछ ऐसा ही पृथ्वीराज चौहान के बारे फैला देते हैं कि उन्होंने भी गौरी को 17 बार हराया था| जबकि दूसरी बार में तो गौरी ने पृथ्वीराज जी को मार ही दिया था| यहाँ यह बात एक तथ्य के तौर पर बताई गई है अन्यथा लेखक पृथ्वीराज चौहान जी की महानता का तहेदिल से प्रसंशक है क्योंकि वीरता व् कीर्तिमान में चौहान जी के नाम भी यह कीर्तिमान है कि उन्होंने एक बार गौर को हराया था|

पोस्ट के साथ सलंगित कर रहा हूँ सर्वजातीय सर्वधर्म सर्वखाप के हेडक्वार्टर चबूतरे (चौंतरे) व् चौपाल (परस) की फोटो व् इस दर-धाम पर किन-किन राजाओं-नवाबों-शहंशाओं ने शीश नवाये उसकी फेहरिस्त; पोस्ट के साथ इसको भी पढ़ना ना भूलें|

माफ़ी: समय की कमी व् प्रोफेशनल व्यस्तताओं के चलते, हर जाट-रात्रे की व्याख्या हेतु इतनी डिटेल्ड पोस्ट्स नहीं दे पा रहा हूँ | हालाँकि इस विषय की प्रथम पोस्ट में 18 के 18 रात्रों के शीर्षकों की सूची दे दी गई थी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


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