Saturday 4 January 2020

जाटरात्रे मनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

कई साथियों का फीडबैक आया कि भाई जाटरात्रे मनाने की जरूरत क्यों पड़ी, जबकि जाट तो सर्वसमाज सर्वधर्म को साथ लेकर चलने वाली कौम रही है सदियों से?

भाई बस, यही अहसास ना सिर्फ जाट अपितु जाट बनाम नॉन-जाट व् 35 बनाम 1 रचने-रचवाने वालों को याद रहे कि जाट "सर्वसमाज सर्वधर्म को साथ लेकर चलने वाली कौम है" इसको मत बदनाम करो, इस पर मत बदनीयत रखो; इसीलिए हर साल 23 दिसंबर से 9 जनवरी तक 18 दिन जाटरात्रे मनाने का निश्चय हुआ है| 365-18= 347 दिन सालभर सभी जाति-धर्म-पंथ-स्टेटों वालों के तीज-त्योहारों-व्यवहारों में हंसी-ख़ुशी बढ़चढ़कर शामिल होता है जाट लेकिन फरवरी 2016 के बाद से 18 दिन सिर्फ अपने पुरखों के स्थापित व् सत्यापित किये सिद्धांतों-आध्यात्म्यों वाले तौर-तरीके भी याद किया करेगा जाट|

ताकि शहरी हो या ग्रामीण हर जाट को यह अहसास रहे कि "जाट देवता" कहलवाने के लिए अंधांधुंध धन-दौलत, शहरों-सेक्टरों-गांव में ऊँची कोठी-बंगले व् एमबीए-सीए-बीटेक-एमटेक आदि की डिग्रियां मात्र पर्याप्त नहीं अपितु वह तौर-तरीके-कस्टम्स-ट्रडिशन्स-सिद्धांत आदि, एक शब्द में कहूं तो "कौम की किनशिप" आपस में जानना-जनवाना भी इतना ही जरूरी है जिसके चलते आपके-हमारे पुरखे 95% तथाकथित अक्षरी अनपढ़ व् ग्रामीण होते हुए भी सर्वसमाज-सर्वधर्म से "जाट देवता" कहलवा लेते थे| आप शहरों-विदेशों तक आ लिए, परन्तु वह जाट देवता वाला जज्बा व बिसात साथ लेकर नहीं चल पाए, निसंदेह वह साथ रखते तो शहरी मार्किट का सबसे बड़ा कंस्यूमर बेस यानि जाट, उसी के सेक्टरों पर फरवरी 2016 में 35 बनाम 1 की भीड़ ना टूटती|

यह तो शुक्र कहूं दादा नगर खेड़ों का कि ऐन मौकों पर ग्रामीण जाटों के छोरों ने भर-भर ट्रेक्टर-ट्रॉलियां तुर्ताफूर्ति में इन सेक्टरों के चौक-चौराहों पर अड़ाए अन्यथा हमला काबू बेशक इनके बिना भी हो जाता परन्तु नुकसान कितना ज्यादा करके जाता इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है| 19 फरवरी से 22 फरवरी 2016, 4 दिन-रात कॉल सेण्टर बन गया था मेरा घर फ्रांस में बैठे हुए भी, 4 दिन कोई काम नहीं किया था बस दिनरात सिर्फ जिंद की स्थिति रोहतक वालों को बता रहा था, सोनीपत की भिवानी वालों को, करनाल की गुड़गाम्मा वालों को, कैथल की झज्जर वालों को, दिल्ली-गाजियाबाद की फरीदाबाद वालों को, पंचकूला की हिसार वालों आदि को| वह चार दिन-रात परमानेंट छप चुके हैं जेहन में| और यह सब कौम को दोबारा ना देखना-झेलना पड़े, इसलिए जरूरी हैं जाटरात्रे मनाने|

एक ऐसी कौम जिसके बिना हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत का कोई भी पहलु पूरा नहीं हो सकता, जो इन शब्दों के मूल में बसती है; वह औरों को गले लगाते-लगाते खुद कब अपने आपको ही भूल गई इसका अहसास दिला गया फरवरी 2016| 90% गाम-खेड़े विशाल हरयाणा धरती के ऐसे हैं जिनके सदियों-शताब्दियों पहले जब यह गाम बसे होंगे तब इनकी नींव के पत्थर जाटों के पुरखों ने रखे हुए हैं और उसी जाट के खिलाफ यहाँ फरवरी 2016 में ऐसा शरणार्थी समझ लेने जैसा व्यवहार करने की कोशिश हुई, उसी के खिलाफ 35 बनाम 1 व् जाट बनाम नॉन-जाट? मखा कोई ना, जाट जब तक अनख पर नहीं लेता तब तक नहीं लेता; अब आगे 18 दिन तो जाट का इतना प्रचार रखेंगे कि आगामी जाट पीढ़ियां ऐसे किसी भी प्रोपगेंडा में नहीं फंसेगी|

अत:आगे वाली जाट पीढ़ियों पर फिर से फरवरी 2016 ना हों इसीलिए जाटरात्रे मनाना तय हुआ है| भले सिर्फ जाट ही मनावें परन्तु मनावें जरूर ताकि भविष्य में जाट के खिलाफ जाट बनाम नॉन-जाट रचने-रचवाने वालों को यह याद आता रहे कि जाट है कौन|

सनद रहे: जाटरात्रे किसी भी सूरत में किसी भी अन्य जाति या धर्म की आलोचना-तुलना अथवा चर्चा तक करने हेतु नहीं हैं| सर्वसमाज-सर्वधर्म के भाईचारे के सिद्धांत को पालते हुए व् सर्वोपरि रखते हुए "जाटरात्रे" भी मनाईये|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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