Friday 3 January 2020

तेरहवाँ जाटरात्रा - 4 जनवरी - "माइथोलॉजी अधूरा कल्चर है, उसके आगे का पूरा जाट-कल्चर जानना है तो सर्वखाप को पढ़िए"!


इस रात्रे का शीर्षक: "माइथोलॉजी अधूरा कल्चर है, उसके आगे का पूरा जाट-कल्चर जानना है तो सर्वखाप को पढ़िए"|

तेरहवें रात्रे को मनाने का थीम: "जाट अपने मूल स्वभाव यानि DNA की साइकोलॉजी-फिलॉसोफी-आइडियोलॉजी को पहले जाने, फिर उसी के आधार पर समाज से डील करे, नेगोसिएट करे| काबिले-गौर है कि जाट जब तक नेगोसिएट नहीं करता तब तक ही नुकसान में रहता है, वरना जब-जब जाट पुरखों ने नेगोसिएशन करी, सामने वाले से ना सिर्फ अपना सम्मानजनक बचाव कर पाए अपितु उसको उसकी बुद्धि का जायज स्थान भी आभास करवा पाए| दर्जनों ऐसे उदाहरणों में से दो ख़ास उदाहरण महाराजा सूरजमल सुजान व् सर छोटूराम के हैं| महाराजा जी ने ओपन टेबल पर नेगोशिएट किया तो सदाशिव राव भाऊ नामक चितपावनी पेशवा की चालाकी व् चालों से ना सिर्फ खुद को बचा पाए वरन भाऊ को पानीपत के मैदान में अपनी बुद्धि की परख भी भलीभांति हुई व् बाद में पेशवे ऐसे अहसान करके जाटलैंड से विदा किये जैसे कोई झुण्ड से बिछुड़े जानवर को उसकी माँ से मिलवाता है| सर छोटूराम तो इतने बड़े नेगोसिएटर थे कि एक साथ अंग्रेजों से ले सूदखोरों-कालाबाजारियों व् तीन-तीन धर्मों की कट्टर धार्मिक ताकतों को ऐसे खूँटे बाँध नचाया, जैसे मदारी बंदर नचाता है| ऐसे नेगोशिएट करते थे सर छोटूराम कि अंग्रेजों से गेहूं के 6 रूपये मण के भाव की जगह 11 रूपये मण का भाव लेकर उठते थे| अत: मंथन कीजिये कि आपका DNA माइथोलॉजी नहीं है अपितु फैक्टोलॉजी-ब्रोदरहुड-इंसानियत है जो सिर्फ और सिर्फ पुरखों की अनंतकाल से आजमाई हुई खापोलॉजी, दादा नगर खेड़ा व् उदारवादी जमींदारी से ही समझी जा सकती है"|

मंथन क्या करें?: माइथोलॉजी अधूरा कल्चर है, उसके आगे का पूरा जाट-कल्चर जानना है तो सर्वखाप को पढ़िए अर्थात खून-खूम-खूँट के आपसी झगड़े सुलझाने का माइथोलॉजियों का रास्ता घर उजड़वाने, झगड़े लगवाने व् अंत में आपस में मर-कटने की ओर ले जाता है| जबकि जाट का यह कल्चर रहा ही नहीं है कभी भी| जाट की सर्वखाप ने हमेशा शांति से परस-चुपाड़ों के चोंतरों (चबूतरों) पर बैठकर ना सिर्फ ऐसे झगड़े निबटवाये अपितु अंत में दोनों पक्षों के दिल भी मिलवाये| जाट की किसी भी खाप की मीटिंग/पंचायत का ऐसा रिकॉर्ड नहीं मिलेगा कि वह माइथोलॉजी की तरह झगड़ा/मसला नहीं सुलझा पाई तो सगे खूनों में ही युद्ध ठनवा के उठी हो| कोरी बकवास फिलॉसफी है यह माइथोलॉजी वाली, जो जाट के पंचायत कल्चर से कोसों-कोस मेल नहीं खाती|

जाट ही नहीं अपितु सर्वसमाज को आपके-हमारे घरों को झगड़ों में उलझाए रखने की फंडी की यह माइथोलॉजी वाली कूटनीति समझनी होगी| आपके-मेरे-हमारे घरों में झगड़े बने रहेंगे तो इन फंडियों के टूने-टोटकों की दुकानें चलते रहने का स्कोप बना रहेगा| यह कभी न्याय नहीं करते सिर्फ न्यायकारी बनने के फंड रचते हैं तभी यह फंडी कहलाते हैं| इसीलिए तो बड़ी-बड़ी मैथोलॉजिकल किताबों के लेखकों ने इनके हर किस्से का अंत युद्ध पर लाकर किया| तो आप अपना ज्ञान पूरा कीजिये व् माइथोलॉजियों के बाद का रास्ता जानने के लिए पुरखों के पास बैठकर सर्वखाप के ऐतिहासिक इतिहास, बड़ी-बड़ी पंचायतों के न्यायिक फैसले, समाजों-गामों को उजड़ने से बचाने के केसों (मामलों) की स्टडी कीजिये| दो-चार केस भी बुजुर्गों से समझ लिए तो पाओगे कि माइथोलॉजी वाकई में मिथ है, इसका प्रक्टिकलिटी से कोसों-कोस तक कोई वास्ता-नाता नहीं|

क्या कभी देखा है कि दो भाईयों या देवरानी-जेठानी में झगड़ा हुआ हो और वह दोनों पक्ष एक ही फंडी के पास अपना झगड़ा ले के गए हों? कभी नहीं मिलेगा ऐसा| दोनों अलग-अलग के पास जायेंगे और उनसे पूछा-पडवाने, टूने-टोटके से एक दूसरे का विनाश करवाने के तजाम करवाएंगे, अपने घर फूंकेंगे, दिमाग फूंकेंगे और फंडी बैठे मौज मारेंगे| इनमें न्यायकर्ता-पंचायती मान बैठने वाले से बड़ा निर्बुद्धि कोई नहीं धरती पर| जबकि खून-खूम-खूँट के 99% झगड़े ऐसे होते हैं कि एक बार पुरखों की भाँति पंचायत करके बैठ जाओ तो झगड़ा तुरतो-फुर्ती में रफा-दफा|

एक माइथोलॉजी वाले तो मात्र दो परिवारों का झगड़ा सुलटवाने में ही रंभा लिए थे, पाँच गाम तक पर डील नक्की नहीं करवा सके| जबकि आपके पुरखे तो 84-84, 360-360 गामों के मुकदमे बड़ी सरलता से सुलझाते आये सदियों से| मामले सुलटवाने बारे दिल्ली की लाठ-महरौली तो इतिहास में इतनी मशहूर हुई है कि "लाठ-महरौली सर्वखाप के चौधरियों को लाट-साहब" बोला जाता रहा है| वही लाट-साहब शब्द जिसपे बॉलीवुड में फिल्मों से ले गाने, डायलॉग्स तक बने हुए हैं व् आमजन में कहावत भी चलती है कि, "फलानि धकडी बात, तू के लाट-साहब लाग रह्या सै"| इन 23 दिसंबर से 9 जनवरी तक चलने वाले 18 जाटरात्रों में जानिये अपने पुरखों की इन बुलंदियों वाले ऐसे इतिहास को जो लिटरेचर-कल्चर में इतने सम्मान से इतने गहरा समाया हुआ कहलाया है|

इसको जानना क्यों जरूरी है?: अगर सर्वखाप को पढ़े बिना अकेले माइथोलॉजी के आधे ज्ञान वाला ही अपना कल्चर मान बैठोगे तो जो ऊपर बताया कि फंडियों की तो मौज होगी ही होगी साथ में कभी पुरखों का दिया भाईचारे व् कौमी-एकता का कांसेप्ट धरातल पर कायम नहीं रख पाएंगे हम| घरों में आपसी भेदभाव-न्याय-अन्याय के लिए आवाज तो उठाते रहेंगे| फंडी इतना ही चाहते हैं कि घरों में एक-दूसरे पर क्रांतिकारी-विद्रोही ही बने रहो परन्तु उसके आगे अपनी जटबुद्धि लगा के दिल ना मिलने-मिलाने पाओ, झगड़े-मनमुटाव ना सुलटा पाओ| सुलटाने के नाम पर इनके दरवाजे जाओ, इनको मनाओं| चढ़ावा चढ़ाओ और झगड़े का निबटारा भूल जाओ| यानि शांतिपूर्ण हल कभी नहीं निकाल पाओगे| घर की औरतें बहम-अहम्-पक्षपात-वाद-विवाद आदि के चलते घर के ही सदस्यों पर ऐसे आखें तराती व् दाड़ पीसती रहेंगी जैसे "जोहड़ के गोरे पर बैठे भैंसों के झुण्ड में दो झोटे (भैंसे) बिना बात ही सिर उठाये एक दूसरे को घूरते हुए नथूने फुला-फुला खुर्री काटते रहते हैं, व् कई बार तो सिर भी मेल लेते हैं|

सलंगित है "सर्वधर्म-सर्वजातीय-सर्वखाप महापंचायत का लीजेंड"| इसकी हर कड़ी की व्याख्या विस्तार से जाननी है तो मेरे इस लेख पर पढ़ें - http://www.nidanaheights.com/Panchayat.html

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


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