Saturday 21 March 2020

लालडोरा रेगुलराइजेशन के लाभ चुटकी भर भी नहीं होने जबकि नुकसान बरोटा भर होंगे, क्योंकि!

लाभ:

मैंने लालडोरे के भीतर मेरे गाम-गुहांड में आजतक एक भी ऐसा केस नहीं सुना मकान-प्लाट का जो आपसी भाईचारे से ना सुलटाया गया हो और उसको कोर्ट-कचहरी देखनी पड़ी हों| असल तो इस सिस्टम की ब्यूटी यह रही कि 99% ऐसे केस बने ही नहीं, कहीं-कहीं 1% जितने बने भी तो भाईचारों में आपस में बैठ के सुलटा लिए जाते रहे| तो ऐसे में चुटकी भर भी लाभ नहीं होना लोगों को इसका, खामखा का खेचला होने के सिवाए|

नुकसान:

आर्थिक व् मानसिक परेशानी:
लालडोरे के बाहर लगभग एक चौथाई से ले आधोआध तक लोगों के खूंड बजते हैं| थानें-तहसीलें-कचहरियें चक्र बंधे रह सें, वो अलग| तो यह लालडोरे के भीतर की रेगुलराइजेशन इन झगड़ों को और ज्यादा बढ़ाने के अलावा, क्या लाभ देगी; सरकार ने विचारा भी है इसपे?

सदियों पुराने जांचे-परखे हरयाणवी कल्चर का मलियामेट:
सरकारों को चाहिए कि उदारवादी जमींदारी की खापोलॉजी के इस सिस्टम को ना छेड़ें| बल्कि ऐसी विचारधारा को पारितोषिक दें कि लोगों ने आपसी भाईचारे के कल्चर से यह चीजें मैनेज करके रखी, जिसके लिए किसी एडिशनल सिस्टम सरकार की जरूरत नहीं पड़ी|

अंग्रेज तक ने यह जरूरत मसहूस नहीं की थी तो इस सरकार को क्या फांसी फंसी हुई है जो शुद्ध हरयाणवी कल्चर के ऐसे सरोकारों को तहस-नहस कर, हरयाणवी जनमानस की स्वछंदता को खत्म करने को आतुर है? कच्छाधारियों के आदेश हैं क्या ये?

लालडोरे के भीतर के मकानों से माल-दरखास उगाहने में कोई दिक्क्त आ रही है? या चूल्हा टैक्स से ले बिजली बिल, पानी के बिल या कुछ भी ऐसी सरकारी एडमिनिस्ट्रेटिव कार्यवाही जो इसकी वजह से रूकती हो; कुछ तो वजह बताओ इस जरूरत की?

लोग भी नहीं पूछ रहे| लगता है फंडियों ने महाभारत सुना-सुना सबके आपसी भाईचारे बिखेर दिए हैं| क्या चाहते हो, सरकार से बोलते-पूछते क्यों नहीं इसपे?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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