Saturday 21 March 2020

मेरी जिंदगी की बहुत बड़ी कल्चरल कसक पूरी करती पंजाबी पीरियड फ़िल्में!

जिंदगी में जब-जब हिंदी (बॉलीवुड) फ़िल्में देखी, टीवी सीरियल्स देखे (देखे क्या धक्के से देखने के लारे लगने की कोशिश करी परन्तु नहीं लग पाया, क्योंकि इनमें हकीकत कम और काल्पनिकता, बौरायापन, भोंडापन ज्यादा भरा होता है) इन सबमें जिस चीज की कमी खलती थी वह आजकल आ रही पंजाबी पीरियड फिल्मों ने पूरी की है| मेरा मेरे कल्चर से अटूट लगाव, इसकी समझ व् इसको संजोते हुए अगली पीढ़ियों को पास करने की ललक मेरे परिवार-रिश्तेदारों से ले मित्र-प्यारों किसी से छुपी नहीं हुई है| और मुझे जिंदगी में किसी चीज ने कभी भटकाया भी है तो इस चिंता ने कि क्या-कैसे हो कि हरयाणवी कल्चर का जो वास्तविक व् पॉजिटिव रूप है वह ऊपर लाया जाए|

हरयाणवी कल्चर के अलावा बाकी नहीं कुछ भी गोळा जिंदगी मे| हंसते हुए परिस्तिथियों को गोला-लाठी करते हुए गुजरे हैं| यहाँ तक कि इस कल्चर प्रेम के चलते रिश्तेदार-मित्र प्यारों तक के लेक्चर सुने हैं वह भी पेरिस में बैठे| क्या पागलों की तरह लगा रहता है फेसबुक वगैरह पे, जब देखो हरयाणवी पोस्ट्स, हरयाणवी गाने, हरयाणवी वेबसाइट बना डाली; खापों-खेड़ों में घुसा रहता है| यही सब करना था तो पेरिस किसलिए गया या आया है आदि-आदि| परन्तु मैं क्या करूँ जब मथन बनाया ही परवर्तीगार ने ऐसा है तो? काम तक से निढाल हो के भी पड़ जाऊं खटोली में तो बेसुध दिमाग-होशो-हवास में कल्चर की कोंधनी चलती जरूर मिलनी|

ऐसा नहीं है कि मैं इसको बदल नहीं सकता, बिलकुल बदल सकता हूँ| परन्तु ऊपर वाले ने इस कोंधनी में एक प्रेरणा और डाल रखी है साथ में जो मुझे इसको बदलने नहीं देती| कहती है कि तुझे इन चीजों की समझ के साथ, चेतना के साथ धरती पे भेजा है तो मैंने भी तो कुछ विचारा ही होगा, वरना तुझे छह दिन के को तुझे पैदा करने वाली के साथ ही ना उठा लेता? तुझे अनखद खिलवाई हैं, इस कल्चर की अमीरी-प्यार-प्रेम-वातसल्य-उत्सव से अकेलापन-मायूसी-लाचारी-बिछोह झिलवाई हैं तो तुझे कुछ बड़ा करने को ट्रेंड करने के लिए ही किया है मैंने| यह सबके विरोध देख के भी, कोई विरला ही तेरे स्तर पर पहुँच कर भी, इस हरयाणवी कल्चर की पब्लिक में बात करता है| तुझे इसकी डंके की चोट पर बातें करने की निर्भीकता व् विश्वास दिया है तो मेरा भी कोई उद्देश्य है इसके पीछे| और जब दादा नगर खेड़े बड़े बीर की और मेरी ऐसी बातें होती हैं तो दादा को बोलता हूँ कि दादा अब तो 35 बनाम 1 भी हो लिया और कितनी बाट दिखवायेगा? मेरे जरिये मेरे कल्चर का जो भी सधवाना है अब सधवा भी ले?

और फ़िलहाल तो सधवाना इतना ही है कि जो कोई हरयाणवी बीर-मर्द ताउम्र हिंदी फिल्मों-नाटकों के नकलीपन व् इनमें परोसे जाने वाले हरयाणवी कल्चर के विपरीतपन से ऊब चुका हो और वास्तविक हरयाणवी कल्चर की हूबहू चीजें देखना-जानना-महसूस करना चाहता/चाहती हो, वह आजकल आ रही पंजाबी पीरियड फ़िल्में देखे| बस सिवाए भाषा के फर्क के डिट्टो यूँ-की-यूँ चीजें ला रहे हैं पॉलीवुड वाले वड्डे वीर, जो हम-आप देख-बरत बड़े हुए हैं| जिस दिन इनके हरयाणवी वर्जन आने शुरू हो गए, चाला तो उस दिन पाटैगा|

कोरोना वायरस के चलते लॉक-डाउन से मिले वेल्ले बख्त का यही प्रयोग करना है| मैंने नी इंटरनेट पे पड़ी एक भी पंजाबी पीरियड फिल्म छोड़नी, मैक्सिमम रफड देनी हैं| एक आधी तो ऐसी हैं कि कई-कई बार देख डाली परन्तु फिर भी जी ना भरता|

काश! शहरों में हंगाई उदारवादी जमींदारी की लुगाईयों को भी इन फिल्मों को देखने की प्रेरणा हो जाए तो उनको समझ आये कि तुम अपने पिछोके से बिदक कितनी दूसरों के कल्चर में डूबी आर्टिफिसियल कल्चर लाइफ जी रही हो और अपनी पीढ़ियों को जिलवा रही हो| यह अनुरोध औरत को इसलिए क्योंकि मेरे कल्चर में कल्चर व् आधात्यम का प्रतिनिधित्व औरत को ही दिया गया है| इसका सबसे बड़ा प्रमाण खुद मूर्तिओं रहित दादे नगर खेड़े हैं जिनपे औरत ही लीडरशिप के साथ स्वछंदता से धोक-ज्योत करती आई है, मर्द को करवाती है आई है, कोई मर्द पुजारी सिस्टम नहीं रहा इनपे कभी सदियों से| 100% औरत का आधिपत्य व् उसके मर्दों का सानिध्य, सुरक्षा व् इन खेड़ों की देखभाल|

लौट आओ री इन जड़ों की तरफ, इनकी तरफ लौटे बिना 35 बनाम 1 हो या भांड मीडिया व् सिस्टम की थारे कल्चर पे यदाकदा होती सॉफ्ट-टार्गेटिंग, कुछ नहीं थमने वाला| शहर आलियो थमनें देख, खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदले की तर्ज पर इन गाम्माँ आलियाँ कै भी 50% से ज्यादा को गधों वाले जुकाम हुए पड़े हैं| पड़े हुए हैं और इनको और तुमको अहसास भी नहीं हो पा रहा कि कैसे तुम तुम्हारे पुरखों के तुमको 100% दिए आधिपत्य के आध्यात्म से छिंटक मर्दवादी आध्यात्म की गुलाम होती जा रही हो और अपनी पीढ़ियों को बना रही हो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: