“सांझी की साँझ” अंतराष्ट्रीय मेळा अर मुकाबला - 2020
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Monday, 26 October 2020
“सांझी की साँझ” अंतराष्ट्रीय मेळा अर मुकाबला - 2020 के नतीजे इस प्रकार रहे!
Friday, 16 October 2020
पंजाबी-हरयाणवी कल्चर में "सांझी" का व्यवहारिक महत्व:
एक कहावत है हरयाणवी में, "गाम की 36 बिरादरी की बेटी सबकी सांझी होती है" यानि वह पैदा किसी भी बिरादरी में हुई हो, लेकिन बेटी वह सबकी होती है| यही कांसेप्ट पंजाब में है| यह बात इस बात से भी सत्यापित होती है कि गाम की बेटी का पति सिर्फ बेटी के घर-कुनबे या बिरादरी का नहीं अपितु पूरे गाम का जमाई कहलाता है| ऐसा उच्च दर्जे का आदर-मान-स्वीकार्यता रही है पंजाबी-हरयाणवी कल्चर में बेटियों की| हरयाणवी कल्चर का फैलाव वर्तमान हरयाणा, दिल्ली,वेस्ट यूपी, उत्तरी राजस्थान व् दक्षिणी उत्तराखंड तक जाता है|
और इसी "सांझी" शब्द से "सांझी का त्यौहार" बना है| जिसके तहत 36 बिरादरी की बेटियां इकट्ठी हो, घर-गाम की बड़ी औरतों के सानिध्य व् निर्देशन में सांझी मनाती आई हैं| सांझी मूलत: एक रंगोली है जिसके तहत छोटी लड़कियों को आर्ट व् कल्चर सिखाया जाता है व् सुवासण यानि किशोर हो आई लड़कियों को इस 10 दिन की वर्कशॉप के जरिए शादी के बाद के 10 दिनों बारे मानसिक तौर से परिपक़्व किया जाता है| आठवें (कहीं-कहीं सातवें या नौवें दिन) दिन सांझी का भाई उसको लेने आता है| वह 2 दिन रुकता है व् यह ओब्सर्व करता है कि नए घर में मेरी बहन कितनी रची-बसी-घुली-मिली व् बहन के ससुराल वालों ने बहन को अपने कुनबे में कितना स्थान दिया| फिर बहन को ले के दोनों अपने घर आते हैं और भाई यह ओब्सर्वेशन रिपोर्ट अपने माँ-बाप को बताता है| और पहले जमाने में ऐसे ही सुनिश्चित किया जाता था कि बेटी ससुराल में कितनी रची-बसी या ससुराल वालों ने उसको कितना रचाया बसाया|
सिर्फ ससुराल का घर ही नहीं अपितु पूरी ससुराल भी अपनी बहु के प्रति कुछ यूँ प्यार दिखाती है कि जब सांझी व् उसके भाई को जोहड़ों में तैराने जाया जाता है तो यह होड़ होती है कि सांझी को जोहड़ के पार नहीं जाने दिया जाता| उनका संदेश होता है कि हमें हमारी भाभी इतनी प्यारी है कि हम उसको गाम से बाहर नहीं जाने देंगे|
कल से शुरू हो चुकी यह 10 दिन चलने वाली सांझी, पूरे पंजाब-विशाल हरयाणा में अगले 10 दिन तक मनाई जाएगी| यह पंजाबी-हरयाणवी त्यौहार अवधि दहशरे व् रामलीला, बंगाली दुर्गा पूजा, गुजराती गरबा व् नवरात्रों के ही समानांतर मनाया जाता है| इन सभी मैथोलॉजिकल त्योहारों का आदर करते हुए ख़ुशी-ख़ुशी वास्तविकता पर आधारित अपनी सांझी को भी मनाएं व् मनवाएं|
व् इस बार उज़मा बैठक द्वारा खासतौर से इंटरनेशनल स्तर पर 25 अक्टूबर को ऑनलाइन मनाए जा रहे इस त्यौहार को ज़ूम व् उज़मा बैठक के इस फेसबुक पेज पर www.facebook.com/UZMABaithak लाइव देखना ना भूलें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Tuesday, 6 October 2020
आओ बच्चो, मीडियाई गुंडों से वर्णवाद व् जातिवाद सीखते हैं!
जरा यह सलंगित खबर पढ़ो, और सोचो क्या शिक्षा मिलती है इससे?
मुख्यत: यही कि जिस पार्टी-संगठन में जिस वर्ण-जाति-सम्प्रदाय की बहुलयता हो, जिस वर्ण-जाति-सम्प्रदाय के लीडर्स की अधिकता हो; उसको उसी वर्ण-जाति-सम्प्रदाय की पार्टी-संगठन बोला करो; क्योंकि इस देश का कानून तो इन ऐसे मीडियाई वर्णवादी व् जातिवादी गुंडों की इन हरकतों का स्वत: संज्ञान लेता नहीं कभी| ऐसा भी नहीं है कि RLD ने अपने रजिस्ट्रेशन व् संविधान में ही खुद को एक जाति-वर्ण विशेष की पार्टी घोषित कर रखा हो, जो यह मीडियाई गुंडे इस खबर में RLD के संदर्भ में जाट शब्द को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं|
दरअसल यह खुद को तुम्हारे ही धर्म, तुमको उनके ही धर्म के (मुस्लिम-सिख या ईसाई आदि नहीं) बताने-गाने-गिनने-लिखने वाले वर्णवादी कीड़ों की ऐसी सोच है कि जिन पार्टियों में जाट या ओबीसी या दलित वर्ग के लोगों व् नेताओं की बाहुलयता हो उनको ऐसे ही जाति संबंधित लिखो-दिखाओ-गाओ-फैलाओ| समझ में आई बच्चों, कि इस देश में सबसे बड़े वर्णवादी व् जातिवादी लीचड़ कौन हैं?
अब इनका कुछ इलाज भी कर सकते हैं क्या? हाँ, क्यों नहीं कर सकते, यही तो असली जंग है; जिसमें यह हराने हैं| और इसके लिए क्या किया जाए?
1) जो ब्राह्मण बाहुल्य या नेताओं की लीडरशिप की पार्टी-संगठन हैं, उनको ब्राह्मण पार्टी-संगठन कहना शुरू करो| जैसे कि बीजेपी ब्राह्मण बाहुल्य है, पूरे इंडिया में| कांग्रेस उत्तरी भारत में जाट, ओबीसी व् दलित जातीय बाहुल्य चल रही है पिछले लगभग डेड दशक से; इससे पहले इस बारे भी ब्राह्मण पार्टी होने का टैग था| ऐसे ही आरएसएस ब्राह्मणों में भी चितपावनी ब्राह्मण बाहुल्य है, उन्हीं का आधिपत्य है| हरयाणा के ब्राह्मण को तो चितपावनी ब्राह्मण, ब्राह्मण समाज के दलित बोलता/मानता है; ऐसा मेरे कुछ हरयाणवी ब्राह्मण मित्रों ने ही बताया है|
2) ऐसे ही जो राष्ट्रीय या राज्य स्तर का नेता है उसको सिर्फ उसकी जाति का बताया करो| जैसे कि महात्मा गाँधी, बनिया नेता; इंदिरा गाँधी ब्राह्मण नेता; अटल बिहारी वाजपेई, ब्राह्मण नेता; अमित शाह, जैनी नेता; मनोहरलाल खट्टर अरोड़ा/खत्री नेता आदि-आदि|
उद्घोषणा: इस लेख का लेखक वर्णवाद व् जातिवाद से पूर्णत: रहित इंसान है; इसलिए इस अखबार वाली टाइप की बातों में बिलकुल यकीन नहीं रखता| परन्तु इन अखबार वालों की आखें खोलने हेतु, इससे दुरुस्त कोई मार्ग भी नहीं दीखता| तो मात्र शायद यह लेख पढ़ के ऐसे मीडियाई गुंडों की लीचड़-कीड़े पड़ी सोच में कुछ डले, इसके लिए यह लेख लिखा है| और जब तक यह "कलम के गुंडे" इनकी ऐसी हरकतों से बाज नहीं आते, "Tit for tat" के सिद्धांत के तहत ऐसा लिखते रहने का समर्थक हूँ| बल्कि अगर यह नहीं सुधरते हैं तो इसको एक मुहीम बनाने पे कार्य करने तक का समर्थक हूँ| देश का कानून भी संज्ञान लेवे इनका, अन्यथा कल को पता लगा कि हमें ही जातिवादी व् वर्णवादी के टैग डाल दिए गए|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Monday, 5 October 2020
क्या फर्क है 1669 के औरंगजेब, 1943 के अंग्रेज व् 2020 के हिन्दू राजा में एक किसान के लिए?
1) सन 1669 में औरंगजेब द्वारा बढ़ाए गए कृषि टैक्सों के विरोध में गॉड गोकुला जी महाराज की अगुवाई में सर्वखाप आंदोलन किया करती थी| 7 महीने तक चले इस आंदोलन को दबाने हेतु औरंगजेब को खुद युद्ध करने आना पड़ा था| इस आंदोलन के ऐवज में 1 जनवरी 1670 को आगरा के फव्वारा चौक पर हजारों किसानों की बलि दी गई थी| फंडी सरफिरे तुम्हें इसमें धर्म का एंगल दिखाएंगे, तुम सिर्फ किसानी का ही देखना, वजह नीचे आ रही है| आज वाले सर्वखाप चौधरी भी तो शायद कुछ तो तैयारी कर ही रहे होंगे, किसान के हक में?
2) सन 1943 में अंग्रेज वायसराय लार्ड वेवल से गेहूं के उचित दाम लेने हेतु सर छोटूराम झलसे किया करते और किसानों को बोल दिया करते कि, "जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी, उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो" अर्थात जिस खेत से किसान को ही रोजी के लाले पड़ें, उस खेत के हर तिनके को जला दो| तब जा के अंग्रेज झुकते थे और 6 रूपये प्रति मण की बजाए, मांगे गए 10 के भाव की जगह 11 का भाव अंग्रेजों के नळ में डंडा दे के लिया करते| और ऐसा नहीं कि जाति से जाट थे तो सिर्फ जाट या हिन्दू के लिए लिया करते; किसान चाहे ब्राह्मण हुआ, राजपूत,अहीर-गुज्जर-सैनी-खाती-छिम्बी-दलित किसी जाति व् सिख-मुस्लिम-बौद्ध किसी भी धर्म का हुआ, सबके लिए लिया करते|
3) सन 2020 में एक हिन्दू शासक आया, नाम है नरेंद्र मोदी| 3 ऐसे काले कृषि कानून लाया कि 3 महीने से ज्यादा सारे देश का किसान त्राहिमाम कर रहा है पर मजाल है ठाठी का पट्ठा जो टस से मस भी हो रहा हो तो? यह भी नहीं देख रहा कि आंदोलन करने वाला 90% किसान हिन्दू है या जो यह तथाकथित राष्ट्रवादी ही यह कह के उछालते हैं कि सिख भी हिन्दू से निकले हैं तो हिन्दू हैं| अब ना इनको सिखों में हिन्दू दिख रहे और ना हिन्दू किसानों में हिन्दू दिख रहे| शायद मनुवादी व् वर्णवादी चश्मा पहन लिए हैं बाबू जी, जिसमें लड़ाई-दंगों के लिए लठैत-लड़ाके चाहियें तो किसान इनके लिए क्षत्रिय हो जाता है, सदाचार की शेखी बघारेंगे तो वैश्य हो जाता है और अब आंदोलनरत किसान तो पक्का शूद्र दिख रहे होंगे?
तो अजी जनाब, भारत के किसान के लिए किस बात की आज़ादी आज 2020 में भी? शायद 1943 वाला अंग्रेज ही बेहतर था, प्रैक्टिकल उदाहरण ऊपर दिया है; लड़ के ही सही मान तो जाया करते अंग्रेज, कोई मना के ही दिखा दे इस हिन्दू राष्ट्र के प्रधानमंत्री को|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Sunday, 4 October 2020
"जब ऐसे ही जाट जी के से पुरुष हों तो पोपलीला संसार में ना चले" - गुजराती ब्राह्मण महर्षि दयानन्द उर्फ़ मूल शंकर तिवारी|
जयंत चौधरी पर लाठियां भंजवाने वाले योगी आदित्यनाथ को आर्य-समाज के सत्यार्थ-प्रकाश के ग्यारहवें सम्मुलास (एक पन्ना सलंगित है) का यह जाट जी और पंडा जी वाला चैप्टर पढ़वाया जाए| और उसको बताया जाए कि हमारे पुरखों और ब्राह्मणों के बीच 1875 में एक समझ लिखित में हुई थी कि ब्राह्मण जाट को "जाट जी" का आदर देगा और जाट ब्राह्मण को भाई का आदर देगा| पर मुझे लगता है कि यह बाबा बन के भी अपने अंदर का ब्राह्मण का बॉडीगार्ड यानि क्षत्रिय वाला किरदार निकाल नहीं पाया है और जाटों को ऐसे ट्रीट कर रहा है कि जैसे जाटों पे जुल्म दिखा के इसको अपने मालिकों को खुश करना हो|
किसान और सरकार के बीच से बिचौलिये नहीं अपितु सरकार खुद निकल गई है!
मन की बात के लागदार जी, "3 नए कृषि बिलों के जरिए आपने किसान और सरकार के बीच से बिचौलिये नहीं निकाले अपितु सरकार निकाल दी है| और सरकार निकाल के किसान को बिचौलियों के बीच खुला डाल दिया है कि लो चूंट-नोंच लो इसको जितना चूंट-नोंच सको|"
अरे हे तथाकथित हिन्दू राष्ट्र के प्रहरी, हे तथाकथित राष्ट्रवाद के प्रणेता; आप राष्ट्रवाद तो छोडो धर्मवाद ही ढंग से निभाना सीख लो पहले? अपने ही धर्म के किसान पे कोई इतना जुल्म बरपाता है क्या कि उनकी आर्थिक सुरक्षा का कवच APMC ही हटाने चले हो?
हे वसुधैव कुटुंभ्कम के तथाकथित धोतक, जरा वसुधा के किसी कोने में यह तो दिखा दो कि, "यह किसानों से बिना पूछे, बिना कंसल्ट किये" वाले कृषि कानून कौनसे फलाँ देश में लगे देखे, जो यह वसुधा के उस कुटुम्भ की बात यहाँ लागू कर रहे हो? ईसाई धर्म के किसी देश में देखी या थारे मोस्ट फेवरेट enemy religion वाले मुस्लिम देश में देखी?
कोई ऐसा मुस्लिम या ईसाई देश नहीं जिसमें क्रमश: मौलाना-मौलवी व् पादरी-पॉप, क्रमश: अपनी-अपनी मस्जिद या चर्च से बाहर निकल एमएलए/एमपी बनने को लालायित रहते हों| एक यह म्हारै वाले ही अनूठे हैं कि क्या मजाल जो इनका दीदा मंदिर-मठ-डेरे में बैठे टिक जाए| दो डोब्बे ज्ञान के क्या आ जावें इनके भेजे में कि लगें बंदर की तरह कूद-फांद करने कि अरे ओ समाज वालो, ो धर्म वालो तुम दूर हटो; तुमको हमने अपने धर्म का होने नाते मोल ले लिया है इसलिए हम ही तो धर्मस्थल संभालेंगे और हम ही सविंधानस्थल संभालेंगे| या फिर इनको संसदों-विधानसभाओं में बैठाते हो तो दो इनके डेरों-मंदिरों पर भी धरने| कुछ तो करो, या तो पूरे इस साइड चल लो या उस|
भारत के किसान हों, मजदूर, व्यापारी या विधार्थी; तुम्हारी दुर्गति की सबसे बड़ी वजह ही यह है कि "वसुधैव कुटुंभ्कम" का नारा देने वाले, एक भी वसुधा के नियमों का पालन नहीं करते; जबकि बाकी सारे करते हैं; दो उदाहरण ऊपर दिए|
और यकीन मानना जब तक आप इस चक्र में रहोगे तब तक आप विश्व के सबसे पिछड़े समुदाय में हो (खुद मैं भी), और देश को तो विश्व का सबसे पिछड़ा देश यह बंदर आने वाले सालों में बना ही देंगे, अगर यूँ ही सत्ता रुपी बंदूक इन बंदरों को दिए रखी तो| अगर चाहते हो अपना भला और वाकई में विश्वगुरु बनना तो सबसे पहले इनको मंदिर-डेरे-मठों में बंद करो, ठीक वैसे ही जैसे ईसाईयों ने पादरी-पॉप कर चर्च तक सिमित कर रखे हैं और मुस्लिमों ने मौलाना-मौलवी मस्जिदों तक|
इनको सबको समझ है कि समाज का चौधरी समाज से होना चाहिए, बस एक हमें ही पता नहीं कब समझ आएगी, जो समाज से भागे हुए भगोड़ों व् जोग लिए हुओं से देश के विकास की उम्मीद करते हैं; किसान-मजदूर-विधार्थी के भले की उम्मीद करते हैं|
ग्राउंड वालों को क्या आएगी, अभी तो उन एनआरईयों को ही समझनी बाकी है जो ईसाई व् मुस्लिम देशों में बैठे हैं और यह ऊपर कही बातें प्रैक्टिकल में रोज देखते-बरतते हैे परन्तु फिर भी इन बातों पर गौर नहीं फरमाते? और तो और मूर्ती-पूजा नहीं करने वालों के वंशों वाले भी ना फरमाते|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Thursday, 1 October 2020
"सांझी की सांझ - 2020" - जानें पहले दिन के क्रिया-कलाप दादीराणी फूलपति पहल की जुबानी!
सौजन्य: उज़मा बैठक| Video Credit: शोधार्थी शालू पहल|