Sunday 4 October 2020

"जब ऐसे ही जाट जी के से पुरुष हों तो पोपलीला संसार में ना चले" - गुजराती ब्राह्मण महर्षि दयानन्द उर्फ़ मूल शंकर तिवारी|

जयंत चौधरी पर लाठियां भंजवाने वाले योगी आदित्यनाथ को आर्य-समाज के सत्यार्थ-प्रकाश के ग्यारहवें सम्मुलास (एक पन्ना सलंगित है) का यह जाट जी और पंडा जी वाला चैप्टर पढ़वाया जाए| और उसको बताया जाए कि हमारे पुरखों और ब्राह्मणों के बीच 1875 में एक समझ लिखित में हुई थी कि ब्राह्मण जाट को "जाट जी" का आदर देगा और जाट ब्राह्मण को भाई का आदर देगा| पर मुझे लगता है कि यह बाबा बन के भी अपने अंदर का ब्राह्मण का बॉडीगार्ड यानि क्षत्रिय वाला किरदार निकाल नहीं पाया है और जाटों को ऐसे ट्रीट कर रहा है कि जैसे जाटों पे जुल्म दिखा के इसको अपने मालिकों को खुश करना हो|


ऐसा है क्षत्रिय जी, इस चतुर्वर्णीय व्यवस्था में तुम रहते होंगे, ओबीसी व् दलित भी मान लिया रहते होंगे; परन्तु जाट, "जाट जी" बन के रहते हैं वह भी तब जब ब्राह्मण तक जाट को "जाट जी" व् "जाट देवता" लिखते हैं| सबूत हाथों-हाथ दिया है| याद दिलाओ इस मोड्डे को कि हम जाट हैं, हम 4 में से किसी वर्ण में नहीं आते क्योंकि वर्ण बनाने वालों के लिए ही हम "जाट जी" होते हैं; इसलिए हम हैं अवर्ण| और योगीनाथ आपको कोई बहम हो गया हो कि जाटों को जैसे चाहो ट्रीट करो, ओबीसी व् दलित की भांति सिर्फ शिकायत करेंगे, कोसेंगे परन्तु यहीं पड़े रहेंगे तो अपना बहम दूर कर ले मोड्डे|

मत हम पर वही 1840 से ले 1875 तक के हालात लाओ, जब तुम्हारी इन्हीं परजीवी हरकतों से पैंडा छुड़वाने को कैथल-करनाल-सफीदों तक लगभग-लगभग गामों का जाट सिख बन गया था और फिर चिंता हुई थी ब्राह्मणों को कि जाट ही चला गया तो हमारे पास बचेगा क्या? और तब जा के जाटों की स्तुति में यह "जाट जी" का अध्याय लाया गया था 1875 में| हम दोबारा से धार्मिक पलायन करने में या खुद का धर्म घोषित करने में देर ना लगाएंगे; अगर दोबारा किसी भी जाट नेता या हस्ती पर कल जैसी जुर्रत करने की सोची भी तो| साले ना लगते थम म्हारे, तिरस्कार और धिक्कार का जूत सा मार के अलग छिंटक देंगे| मत भूलो, हम राजपूत-ओबीसी या दलित नहीं, जाट हैं हम| यह बात धर्म के ब्राह्मण समझा दें इस सरफिरे मोड्डे को, और लगे हाथों उस सेण्टर में बैठे बड़े ढाढे वाले बड़बुज्जे को भी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक



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