Wednesday 13 April 2022

"35 बनाम 1 यानि जाट बनाम नॉन-जाट के षड्यंत्र का पटाक्षेप", सीरीज पोस्ट - 1

 "35 बनाम 1 यानि जाट बनाम नॉन-जाट के षड्यंत्र का पटाक्षेप", सीरीज पोस्ट - 1

("Decoding of 35 vs. 1 i.e. Jat vs. Non-Jat Propaganda", Series Post -1):

इस सीरीज में 17 ओबीसी-दलित जातियों के ऐतिहासिक उधोगों व् कारोबारों की प्राचीनकाल से ले वर्तमान स्थिति व् इनका जाट जैसी किसान-जमींदार जाति के साथ बरतेवा-भाईचारा कैसे रहा व् इसको किसने डंसा व् किसपे इल्जाम लगा इसका एक-एक करके रोज एक पोस्ट के जरिए पटाक्षेप करूँगा| आज पेश है:

नाई व् जाट के कारोबारी-बरतेवे के प्रोफेशनल संबंध व् भाईचारे के सामाजिक संबंध:

पहले 35 बनाम 1 का मुख्य उद्देश्य जान लेते हैं: ओबीसी-दलित बिरादरी में आने वाली तमाम जातियों की अपनी-अपनी ख़ास कारीगरी रही व् उस कारीगरी पर आधारित कुटीर उधोग व् छोटे कारखाने रहे| जिनको एक चालाकी के तहत उनसे छीन बड़े उधोग वालों ने अपने कब्जे में ले लिया| व् इस कब्जे को कहीं ओबीसी बिरादरी पहचान व् समझ ना ले इसलिए फंडियों के जरिए प्रोपेगंडा पोषित करवा के उसको जाट बनाम नॉन-जाट में उलझा दिया गया है या धक्के से 35 बनाम 1 के नारे में फंडियों ने ओबीसी/दलित को 35 में शामिल कर लिया है या शामिल मान लिया है| हकीकत में शायद नाई बिरादरी भी इसके पक्ष में ना हो|

अब जानते हैं नाई व् जाट के कारोबारी संबंध: सलंगित तस्वीर को देखिए; यह खोज "खाप-खेड़ा-खेत किनशिप" पुस्तक के पृष्ठ 19 से 24 में पब्लिश हुई है; उसी के हवाले से ली गई है|




इसको पढ़ के आपको स्पष्ट होगा कि इन दोनों जातियों में प्रोफेशनल फ्रंट पर मौखिक अथवा फौरी तौर पर कुछ भी लेनदेन नहीं होता था| हर कार्य-सेवा-सर्विस के मानक तय थे व् खापलैंड की बहुतेरी ग्रामीण अंचल में आज भी चल रहे हैं|

तो यहाँ जानने-समझने की बात यह है कि जब यह सब इतना स्पष्ट रहा है तो नाई के कारोबार को सबसे ज्यादा किसने खाया? जाट ने, या शहरों में बने बड़े-बड़े हेयर-शलून व् ब्यूटी-पार्लर्स ने? और सबसे ज्यादा कौन चलाते हैं इनको, कौन मालिक हैं इनके; जाट या कौनसी बिरादरियां?

बस यही बात एक जाट व् एक नाई को स्पष्ट होनी चाहिए| और सर छोटूराम वाला असली दुश्मन सिर्फ किसान को ही नहीं ओबीसी बिरादरियों को भी देखने-समझने की जरूरत है| हाँ, अगर उस दुश्मन को जानते-पहचानते हुए भी अगर आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं तो जाट जैसी जाति से अपने पीढ़ियों पुराने भाईचारे की ताकत में वापिस आईये (सर छोटूराम ही थे वो जिन्होनें नाईयों की कतरन की लाग यानि टैक्स हटाया था); एक दूसरे की आमदनी का जरिया बनिए; क्योंकि बेरोजगारी की समस्या जाट से कम नहीं आपके यहाँ भी| फंडियों के पास से बहकावे-उकसावे से फ़ालतू कुछ मिला हो या मिलता हो तो इसका भी आंकलन करिए|

नोट: जितना इन तथ्यों को शेयर करोगे, उतनी अपने ओबीसी/दलित - जाट भाईयों की भावना वापिस जुडी पा सकोगे| अगर फंडियों के प्रचार के वेग के आगे आपका प्रचार वेग कम है तो भी घबराना नहीं; कम-से-कम कल को उलाहना या मलाल तो नहीं रहेगा कि दोनों तरफ की नहीं पीढ़ियों को यह साझी विरासत की जानकारी नहीं थी; अन्यथा क्यों फंडियों के बहकावे-उकसावे में रहते|

जय यौधेय! - फूल मलिक

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