Monday 30 May 2022

अभी सिद्धू मुसेवाला की मौत का बहाना बना कर, एंटरटेनमेंट जगत में "गन कल्चर" व् पंजाबी-हरयाणवी गानों में "जट्ट-जाट" के जिक्रे होने को निशाना बनाया जाएगा; इनके ललित निबंधों/उपदेशों से घबराने का नहीं!

बल्कि ऐसे लोगों को एक तो बॉलीवुड की "एंग्री यंगमैन" यानि "लम्बू" यानि "अमिताभ बच्चन" के जमाने से चले इस "गन" व् "डॉन" कल्चर की याद दिला देना, जो आज तक बदस्तूर जारी रहते हुए इतना वाहियात स्तर ले चुका है कि "धाकड़" फिल्म जैसा गोबर तक परोसने लगे हैं|
और जो "जाट-जट्ट" की बात करे, उनको "विनम्रता से, जी लगा के" फिल्मों में फेरे एक ही जाति का पंडित/शास्त्री ही करवाता क्यों दिखाया जाता है इसकी याद दिलवा देना; वह आर्य समाजी जरूर याद दिलवा देना, जहाँ सभी जाति के शास्त्री हवन-फेरे करवाते आए परन्तु आज इस धंधे पर सिनेमा-मीडिया के जरिए जैसे एक जाति विशेष ही अपना कब्जा चाहती हो| क्यों नहीं दूसरी जाति का पंडित-शास्त्री फेरे करवाता दिखाते, नाम लेने तक को भी?
और अभी इधर हरयाणा में "फरसे" व् "तलवारों" वालों समेत सड़कों पर कंधे लाठी धर यात्राएं निकालने वालों की याद दिला देना; स्टेडियम-अखाड़ों की बजाए पार्कों में लाठियां भांजने वालों की याद दिला देना|
जाट-जट्ट के जिक्रे कम-से-कम झूठे तो नहीं होते और ना ही किसी अन्य को रोकते| लगभग-लगभग हर जाति किसी न किसी गाने में मेंशन हो चुकी है| जाट-जट्ट ज्यादा होते हैं तो किस बात की जलन इस बात से? और इनको यह भी याद दिलाना कि यह बॉलीवुड की फ़िल्में देखो इनमें 90% पॉजिटिव कैरेक्टर कौनसे गौत-जात वाले होते हैं व् नेगेटिव कौनसे वाले? इस जातिवाद पर कब बोलोगे, अगर जाट-जट्ट गानों में आने से ही जातिवाद हो जाता है तो?
जाट-जट्ट कभी गानों में जिक्र आता है तो झूठे क्लेम्स का नहीं आता| इसलिए यह रोते हैं तो इनको रोने दो| अपनी अणख यही कहती है कि खुद को महान बताने को "माफीवीरों" को वीर हम तो नहीं कहेंगे व् दूसरों को बहु-बेटियां दे राज बचाने व् रण छोड़ कर भाग जाने वालों को "वीर", "महान", "राष्ट्रवादी" प्रचारित, हम तो करेंगे नहीं|
हम युगों से "सीरी-साझी" का कल्चर पालने जाट-जट्टों को अब यह बहरूपिए फंडी बताएंगे क्या कि जातिवाद क्या होता है| मुंह धो के आओ, जन्म से मरण तक आकंठ जातिवाद व् वर्णवाद में जीने वाले दोगले लोगो|
जाट-जट्ट अपने को गानों में प्रमोट कर लेते हैं तो इसलिए कि वह असल "सीरी-साझी" कल्चर पालते हैं, जो पालना तुम्हारे फरिश्तों की भी औकात नहीं| इसी कल्चर से जाट-जट्ट में यह आत्मबल आता है कि वह इतने आत्मविश्वास से समाज में अपनी बात कह लेता है| तुम पाल के देख लो इस कल्चर को, यह आत्मविश्वास तुम में भी आ जाएगा|
परवर्दिगार, मुसेवाला की आत्मा को शांति दे व् उनके परवार समेत तमाम पंजाबी-हरयाणवी फिल्म-म्यूजिक इंडस्ट्री व् इनके फोल्लोवेर्स समेत किसान यूनियनों को इस क्षति को खेने का संबल दे!
जय यौधेय! - फूल मलिक

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