Monday 30 May 2022

जाट-जट्ट की अगुवाई वाली किसान एकता व् स्थिरता फंडियों को पागलपन की हद पर ले आई है!

सुनो फंडियों (जिस किसी भी जाति का हो), तुम्हें तुम्हारी भाषा में समझा देता हूँ; हमें तो यह भाषा चाहिए ही नहीं होती परन्तु क्योंकि तुम चलते ही इसके जरिए हो तो इन्हीं शब्दों में सुनो!

अगर अकेले ब्रह्मा में सब कुछ संभालने की क्षमता होती तो तुम्हारे ही ग्रंथ-पुराण वाले त्रिमूर्ति का कांसेप्ट ना रखते, जो साक्षी है इस बात का कि ब्रह्मा अकेला सृष्टि नहीं संभाल सकता| और अकेले विष्णु में ही यह क्षमता होती तो भी त्रिमूर्ति नहीं होती और ऐसे ही शिवजी इस त्रिमूर्ति का हिस्सा है|
ब्रह्मा ही सब कुछ सीखा सकता तो विष्णु अवतार परशुराम, शिवजी का शिष्य नहीं होते|
अब मोटे-तौर पर सांसारिक सरंचना में यह साइकोलॉजिकल तिगड़ी कैसे पूरी होती है वह भी देख लो और अच्छे से यह समझ लो कि जो तुम चाह रहे हो यह हर सिद्धांत पर तुम्हारे बस से बाहर है; वह कैसे?
ब्राह्मण: ब्रह्मा पर कॉपीराइट रखता है|
बनिया: विष्णु पर कॉपीराइट मानता है|
जाट: शिवजी पर कॉपीराइट मानता है, इसीलिए जाटलैंड पर सबसे ज्यादा शिवाले जाटों से जोड़ कर बताए गए हैं; हैं कि नहीं हम तो आज भी फ़िक्र नहीं करते|
शिवजी जाट है, यह हर दूसरे-तीसरे इतिहासकार से ले हर लोक्कोक्ति-कहावतों तक में पढ़ा-बताया जाता रहा है| यह नहीं भी है तो इतना तो फिर भी है कि जाट शिवजी से पैदा हुए बताते हैं तुम्हारे ही तथाकथित इतिहासकार|
अब आज जो तुम कर रहे हो तुम्हारी वर्तमान सरकार के जरिए, जाट को निशाने पर रख कर; इस ऊपर की व्याख्या से समझ जाओ, तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो| क्योंकि यह वह दौर है जब तुम्हारी हर गैर-जिम्मेदारी व् षड्यंत्र की अति हो चुकी है व् उस अति के चलते शिवजी तीसरी आँख खोले चल रहा है व् इसी वजह से किसान आंदोलन में तुमको हार देखनी पड़ी व् तीन कृषि कानून वापिस लेने पड़े|
किसान आंदोलन में हार देख के भी नहीं समझे तो और क्या चाहते हो? नहीं दबा पाओगे, क्योंकि सामने किसानों की एकता की अगुवाई में तुम्हारा ही बताया शिवजी रूप जाट है| समझ लो इस बात को| या हम समझ लें कि फंडी, किसान एकता ने पागल होने के स्तर तक ला छोड़े हैं; और तुम लोग पागल हो चुके हो, दिमाग से पैदल हो चले हो?
यह बहम छोड़ दो कि तुम जाट को आँख दिखा के दो दिन भी चल लोगे| तुम्हारे पुरखे नहीं चल पाए, तुम्हारे पुराण-ग्रंथ लिखने वालों ने यह माना तो तुमको किस बात का बहम हुआ जाता है? यह कहावत यूँ ही नहीं चलती समाज में, पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद से तो सत्यापित तौर पर चलती है कि "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया"|
मुझे नहीं लगता कि इससे शालीन व् सभ्य तरीका और कोई हो सकता था तुम्हें यथास्थिति व् तुम्हारी अवस्था समझाने का| आगे तुम्हारी मर्जी|
और जितना आमने-सामने आते जाओगे, उतना कमजोर होते जाओगे; यह श्राप तुमको ब्रह्मा से ही है कि तुम शिवजी का मुकाबला करोगे तो श्रापित हो के भटकोगे, तुम्हारे ही बताएअश्वत्थामा की तरह|
जय यौधेय! - फूल मलिक

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