Sunday 19 June 2022

आंतरिक रोळा घर का हो या कौम का, गळी में लाने से सदा उलझता ही है, सुलझता नहीं!

बात 2017 की है: फरवरी 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन के बाद, जनवरी 2017 में इंडिया आया था तो आधी जनवरी व् पूरी फरवरी लगा के फरवरी 2016 मुद्दे पर विवेचना करने को एक-के-बाद एक चार खाप कॉन्फरेन्सेस करवाई थी व् शांति से निबटवाई| पहली रोहतक, दूसरी कुरुक्षेत्र, तीसरी दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के प्रांगण वाले लॉ कॉलेज में व् चौथी फिर से रोहतक ही|

इनमें से एक में भवन बुक करने में दिक्कत आई, वह भी वहां के स्थानीय खाप चौधरी साथ होते हुए, भवन भी कौम के नाम का ही था; परन्तु हमारी बात नहीं बनी तो हमने तुरताफुर्ति यूनिवर्सिटी कॉलेज में वह कांफ्रेंस करवाई|

परन्तु उस भवन की देखरेख करने वालों पर ना खुद क्रोधित हुआ व् ना जो मेरे साथ थे उनमें से किसी को होने दिया| सोशल मीडिया पर उनका मीडिया ट्रायल खोल के बैठने की तो सपने में भी नहीं आई|

बल्कि बैठ के उन वजहों पर विचारा गया कि यह नौबत क्यों आई, वह भी खाप तक के चौधरी साथ होते हुए| और कमी खुद की सैडुलिंग, नेटवर्किंग व् जरूरी कम्युनिकेशन में पाई गई| कुछ इशू कुछ स्थानीय लोगों के आपसी तालमेल में अहम् का भी पाया गया| परन्तु सबसे पहले खुद की तरफ से रही कमियां सुधारी गई| आपस में सर-जुड़वाए गए व् आगे इसका ध्यान रखवाया गया तो आगे के कार्यक्रमों में कभी भी नौबत नहीं आई|

एक-दो ने कहा भी कि ऐसा भवन जो समुदाय के नाम से है व् समुदाय के ही काम नहीं आ सकता तो इस मुद्दे को यूँ ना दबाओ या छोटा मानो| लेकिन यह कह के सब शांत करवा दिए कि ऐसे मसले घर के हों या कौम के, गळी में नहीं ले जाए जाया करते| और अगर तुम उनको घर-कौम के भीतर रख के, आपस में जरूरी सरजोड़ करके नहीं सुलटा सकते तो तुम उनको भी दुश्मन बना लोगे जो उस भवन में थे व् तुम्हारे काम आ सकते थे या उनकी नजर में तुम्हारा मामला गया ही नहीं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

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